जीवन की ढ़लती शाम में ना जाने कितने बुजुर्ग कमजोर और थकते शरीर को लेकर अकेले पन के भंवर जाल में जकड़े हुए हैं केवल इस आस में कि विदेश में बसा बेटा एक दिन जरुर लौट कर आएगा । इन बुजुर्ग माता पिता की आँखे पल पल इंतजार में पथरा जाती हैं पर लौट कर कोई नही आता.. बस इंतजार …सिर्फ इंतजार………
इंतजार
जो चला गया अब न
आयेगा इस पार
पंख मिला उड़ चले
मुड़ के देखा न एक बार
पीछे क्या छोड़ा क्या तोड़ा
सोचा भी न एक बार
बोझिल टूटती सांसे,
सिर्फ आँसुओ का अंबार
थकी हारी इन आँखो में
फिर भी है इंतजार
तरसता भटकता ढूँढ़ता
किसे ये मन बार-बार
जो चला गया अब न
आयेगा इस पार
पंख मिला उड़ चले
मुड़ के देखा न एक बार
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महेश्वरी कनेरी
पंख मिला उड़ चले
ReplyDeleteमुड़ के देखा न एक बार
.... यही आज का कटु सत्य है...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति....
महत्वाकांक्षा मानवता और प्रेम को मार डालती है शायद....
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति महेश्वरी जी.
सादर
जब से संयुक्त परिवार की परंपरा खत्म सी हुई हैं ..इस तरह के मामले देखने और सुनने में बहुत आए हैं ...ह्रदय को छू गई आपकी ये रचना
ReplyDeleteस्वार्थ के आगे बेटा माँ-बाप को भी भूल जाता है, और बूढी आँखें करती रहती हैं कभी न ख़त्म होने वाला इंतजार... मार्मिक रचना
ReplyDeleteबोझिल टूटती सांसे,
ReplyDeleteसिर्फ आँसुओ का अंबार
थकी हारी इन आँखो में
फिर भी है इंतजार
कब तक .... ?? आज की यही हक़ीकत है .... !!
जो निश्चय कर लें , माँ-बाप का ख्याल रखना है ,वे जाएँ ही नहीं .... !!
ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना...
ReplyDeleteइंन्तेजार मैं बूढ़ी आँखें पंथ निहारती भूल न जाना...
बहुत मर्मस्पशी प्रस्तुति !!!
बुजुर्गों के मन की व्यथा को बड़ी सटीक अभिव्यक्ति दी है आपने महेश्वरी जी ! बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ! आँखें नम हो गयीं और मन भर आया !
ReplyDeleteसंग हमारे कारवाँ था,
ReplyDeleteनहीं उड़ना अब अकेले।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,दिल को छूती सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
भावमय करते शब्द ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeletebhavmay karati rachana...
ReplyDeletebehtarin prastuti:-)
कारवां लेकर चला था, जानिबे मंजिल मगर,
ReplyDeleteलोग सब कटते गए अब, लो अकेला मैं चला।
खुद में एक गहरा सच लिए कविता ,,,
ReplyDeleteभावमयी अभिव्यक्ति,,,
साभार !!
यथार्थबोध कराती भावमयी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबढ़िया रचना
ReplyDeleteराजस्थान : जातिवादी तत्वों के मुंह पर एक करारा तमाचा
बिलकुल सच्ची बात कही अपने.....
ReplyDeleteबढती उम्र में आदमी आत्मविश्वास खोने लगता है, असुरक्षा की भावना घर करने लगती है मन में....... ऐसे में अपनों की बेरुखी तोड़ देती है......
ReplyDeleteकाश ! इस उम्र में अपने पास हो तो.....!
सुन्दर अभिव्यक्ति !! आभार !!!
सटीक , मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteइसका समाधान ढूँढा था हमारे पूर्वजों ने - वानप्रस्थ .तन से न सही मन से ही !
ReplyDeleteVery touching creation. Elderly people need more love at this stage of life.
ReplyDeleteजब जीवन संध्या उतरती है तब नीड़ में अकेलापन पसरने लगता है. दिल को छूने वाली कविता.
ReplyDeleteअद्भुत |
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
बहुत बदक़िस्मत है वह .....जो माता पिता के होने का महत्व नहीं जानते ...!
ReplyDeleteबुज़ुर्गों के दर्द का बखूबी बयान करती हुई मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteसादर
कल 04/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
इंतजार
ReplyDeleteजो चला गया अब न
आयेगा इस पार
पंख मिला उड़ चले
मुड़ के देखा न एक बार
पीछे क्या छोड़ा क्या तोड़ा
सोचा भी न एक बार
लाजवाब रचना,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
Rajpurohit Samaj
पर पधारेँ।
जो चला गया अब न
ReplyDeleteआयेगा इस पार
पंख मिला उड़ चले
मुड़ के देखा न एक बार
कविता में व्यक्त संवेदना आज का यथार्थ है।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteसुंदर रचना व भावाभिव्यक्ति..अच्छी लगी..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
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