abhivainjana


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Monday, 22 October 2012

ये वक्त भी बदल जाएगा



खामोश है आज चाँदनी भी
खामोश धरती आसमां है
खामोश हैं तारे सभी
खामोश उनका कारवां है
शाख के हर पात खामोश है
खामोश हुए प्रकृति के हर साज़
हवा भी थक कर सो गई अब
खामोश लहरों के गीत आज
बस,खामोश नहीं मेरे मन का शोर
कुछ बैचैन हैं ,परेशान सा
अनबुझ प्रश्नों का सैलाब लिए
उठता है दिल में बस तूफान 
अब तो खामोश हो जा मन मेरे
ये तूफा़न भी टल जायेगा
कल सूरज के आते ही ,देखना
ये वक्त भी बदल जाएगा
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महेश्वरी कनेरी

Friday, 12 October 2012

और मैं रिश्ते बोती रही


मैं तो रिश्ते बोती रही
पर ये कंटक कहाँ से उगते गए..
मेरे मन स्थिति से विपरीत
ये मेरे फूल से अहसासों को छलनी करते रहे
और मैं रिश्ते बोती रही
स्नेह का खाद डाल
प्यार से सिंचित करती रही
रोज़ दुलारती सवाँरती
पर ये गलत फहमी के फूल कहाँ से उग आए
 दिनों दिन जो बढ़ते ही गए
और मैं रिश्ते बोती रही
एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही
प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
और मैं रिश्ते बोती रही
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महेश्वरी कनेरी

Sunday, 7 October 2012

जीवन के रंग

जीवन के रंग


मन में उमंग
ह्रदय में तरंग
अपनों के संग
यही जीवन के रंग
पुल्कित अंग अंग
न सोच हुई तंग
न विचारों में जंग
न सपने हुए भंग
देख रह गई दंग
सीख गई जीने का ढंग
अगर लेखनी हो संग
भरती रहूँ जीवन में रंग
रंग ही रंग ,रंग ही रंग
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महेश्वरी कनेरी

Wednesday, 3 October 2012

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है..



जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है , तो चलो जी के देख लें
दर्दे दिल ही जब दवा बन जाए, तो चलो पी के देख लें

बेवजह पड़ी हुई थी जिन्दगी, काटे नही कटती थी जिन्दगी
अपने लिए बहुत जी लिए, औरों के लिए भी जी कर देख लें

चलना ही जिन्दगी है अगर, तो फिर धूप क्या छाँव क्या है
फूल से राहों में सब चलते हैं, काँटो में भी चल कर देख लें 

दुनिया के इस अपार भीड़ में, कुछ अपने कुछ पराए भी हैं
अपनों को तो देख लिया अब, गैरों को भी अपना के देख लें

 उदास आँखें ,गुमसुम चेहरा ,जमाना बीत गया शायद हँसे हुए
खुद तो बहुत हँस लिए अब ,चलो उसे् भी हँसा के देख लें

आसमां छूने की जि़द है अगर ,तो हौसले बुलन्द चाहिए
पंखो से करना क्या है,चलो आसमां को ही झुका के देख लें
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महेश्वरी कनेरी