खामोश है आज चाँदनी
भी
खामोश धरती आसमां है
खामोश हैं तारे सभी
खामोश उनका कारवां
है
शाख के हर पात खामोश
है
खामोश हुए प्रकृति
के हर साज़
हवा भी थक कर सो गई
अब
खामोश लहरों के गीत
आज
बस,खामोश
नहीं मेरे मन का शोर
कुछ बैचैन हैं ,परेशान सा
अनबुझ प्रश्नों का सैलाब लिए
उठता है दिल में बस तूफान
अब तो खामोश हो जा मन
मेरे
ये तूफा़न भी टल जायेगा
कल सूरज के आते ही
,देखना
ये वक्त भी बदल जाएगा
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महेश्वरी कनेरी