abhivainjana


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Friday 25 November 2011

मैं चलती रही, बस चलती रही



जीवन में कई बसंत सी खिली मैं
कई पतझड़ सी झरी मैं
कई बार गिरी 
गिर कर उठी
मन में हौसला लिए
जीवन पथ पर बढ़ी
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।

कभी मोम बन पिघलती रही
कभी बाती बन जलती रही
मन में अनंत अहसास संजोए
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।

कई बार फूलों की चाह में
काँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
 फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
मैं बढ़ती रही,चलती रही  ।

पीछे मुड़ कर देखने का वक्त कहाँ..
वक्त  बदलता गया
मान्यताए बदलती रही
अपनी ही अनुभव की गठरी संभाले
मैं बढ़ती रही, चलती रही

कब तक और चलना है ? कौन जाने
शायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
 मैं चलती रही, बस चलती रही  ……..
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Monday 14 November 2011

संदेश… नन्हें पथिक को



बहुत साल पहले सन १९९४ में अपने स्कूल के नन्हें मुन्हें बच्चों के लिए ये पंक्तियाँ लिखी थी …… और आज मैं  बाल दिवस के उपलक्ष में सभी नन्हें मुन्हें प्यारे- प्यारे बच्चों को इसे समर्पित कर रही हूँ ।
 संदेश… नन्हें पथिक को

एक से बढ़ कर एक हो तुम
एक में भी अनेक हो तुम
तुम से ही, पहचान हमारी
देख रही, तुम्हें दुनिया सारी ।
ग्यान के नन्हें दीप हो तुम
सूर्य के नन्हें प्रतीक  तुम
वक्त के साथ अब बढ़ना है ,
 उच्च शिखर पर चढ़ना है ।
अंजली भर सपने बटोर रहे
हर सपना सच करना है
दूर बहुत चलना है, पथिक
हैसला और बुलन्द करना है ।
चाहत की तस्वीर हो तुम
भारत की तकदीर हो तुम
बुलंदी के उस पार जाना है
तुम्हें सारा जहाँ जगाना है ।
न होना निराश कभी तुम
न खोना विश्वास कभी तुम
सिर्फ हाथ भर की  ही दूरी है
छूने को सारा आसमां है ।
नित नया निर्माण करो तुम
कण-कण में प्राण भरो तुम
नव चेतन जोत जगाना है
नव भारत तुम्हें बनाना है ।
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Wednesday 9 November 2011

कुछ साँस बची है जीने को...



कुछ साँस बची है जीने को

कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
            टूटे बिखरे सपनों को मैं
सहेज रही थी जीवन भर
आशा की इस बगिया में
दो बूँद बारिश का गिरने दो
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
जीवन सागर के इन लहरों में
उफान भरा, तूफा़न भरा था
थक कर  खामोश हुए अब
             इस खामोशी को सुनने दो
कुछ साँस बची है जीने को,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
      मुट्ठी में भरी   रेत सी
    फिसल रही अब जिन्दगी
    क्या खोया क्या पाया मैंने
    आज इसे  बस रहने दो 
कुछ साँस बची है जीने को,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
  पत्थर के  निर्मोही जग में
  प्यार का  अहसास  नहीं है
  पल-पल पीया है आँसू मैंने
    आज इसे तुम बहने दो
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
          **************