abhivainjana


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Saturday 8 February 2014

गज़ल


गज़ल
बादलों का धूप पर आज पहरा हुआ है
उदासी का सबब और गहरा हुआ है
 
वक्त से कह दो ज़्ररा ठहर जाए यही पर
मौसम यहाँ खुशनुमा हुआ है
 
अज़ब दुनिया का ये बाजार सजा है
हर रिश्ता यहाँ बिका हुआ है
 
रात की स्याही से लिखी थी दर्दे-दास्तां
निशां जख्मों का और गहरा हुआ है
 
हालात देश की मत पूछो तो अच्छा है
इंसान यहाँ इंसान से डरा हुआ है
 
देख खुशनुमा ये मंज़र हैरान हूँ नैं
एक फूल से सारा चमन महका हुआ है
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महेश्वरी कनेरी
गजल लिखने का ये मेरा पहला प्रयास है .. हो सकता है बहुत कमियाँ होंगी क्यों कि मुझे अभी शेर क़ो  “बहर” में बाँधना नही आता सीख रही हूँ.
                              धन्यवाद