गज़ल
बादलों का धूप पर
आज पहरा
हुआ
है
उदासी
का
सबब
और
गहरा
हुआ
है
वक्त से
कह
दो ज़्ररा
ठहर जाए
यही पर
मौसम यहाँ
खुशनुमा
हुआ है
अज़ब दुनिया का ये बाजार
सजा है
हर
रिश्ता
यहाँ
बिका
हुआ है
रात की स्याही से लिखी थी दर्दे-दास्तां
निशां जख्मों का और गहरा हुआ
है
हालात देश की मत पूछो तो अच्छा
है
इंसान यहाँ इंसान से डरा हुआ
है
देख खुशनुमा ये मंज़र हैरान
हूँ नैं
एक फूल से सारा चमन महका हुआ
है
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महेश्वरी कनेरी
गजल लिखने का ये मेरा पहला प्रयास है .. हो सकता है बहुत कमियाँ होंगी क्यों कि मुझे अभी शेर क़ो “बहर” में बाँधना नही आता सीख रही हूँ.
धन्यवाद