जीवन की ढ़लती शाम में ना जाने कितने बुजुर्ग कमजोर और थकते शरीर को लेकर अकेले पन के भंवर जाल में जकड़े हुए हैं केवल इस आस में कि विदेश में बसा बेटा एक दिन जरुर लौट कर आएगा । इन बुजुर्ग माता पिता की आँखे पल पल इंतजार में पथरा जाती हैं पर लौट कर कोई नही आता.. बस इंतजार …सिर्फ इंतजार………
इंतजार
जो चला गया अब न
आयेगा इस पार
पंख मिला उड़ चले
मुड़ के देखा न एक बार
पीछे क्या छोड़ा क्या तोड़ा
सोचा भी न एक बार
बोझिल टूटती सांसे,
सिर्फ आँसुओ का अंबार
थकी हारी इन आँखो में
फिर भी है इंतजार
तरसता भटकता ढूँढ़ता
किसे ये मन बार-बार
जो चला गया अब न
आयेगा इस पार
पंख मिला उड़ चले
मुड़ के देखा न एक बार
**********
महेश्वरी कनेरी