मैं नारी,
कभी अबला कभी सबला,
कभी शक्ति स्वरुपा, कभी बेचारी
मैं नारी,
कभी माँ ,कभी बेटी बहन ,
कभी सहचरी बन ,रिश्ते निभाती
मैं नारी,
तृण-तृण चुन घर बसाती
निराशा की गहन रातों में
दीया बन जूझती
मैं नारी,
ह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
होठों में मुस्कान लिए
उन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती
मैं नारी,
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महेश्वरी कनेरी
प्रकृति की सबसे अनमोल उपहार है नारी..अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteमैं नारी.............
ReplyDeleteईश्वर की कृतियों में सबसे प्यारी..................
सुंदर रचना महेश्वरी जी.
सादर.
बढिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
उन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती
मैं नारी,…………बस यही तो है नारी…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
नारी=न +अरि= जिसका कोई शत्रु न हो। उत्तम भावों की उत्तम प्रस्तुति है इस कविता मे।
ReplyDeleteनारी...सभी रिश्तों में मिठास भरती...बहुत प्यारी प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
ह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
उन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती
मैं नारी,
अति सुन्दर रचना
स्त्री के विभिन्न आयामों को दर्शाती एक भावप्रवण रचना। आभार !
ReplyDeleteगर्व का सहज अनुभव।
ReplyDeleteनारी का उन्मुक्ता रूपी स्वरूप ....
ReplyDeleteमन भाया ...!!
सुंदर रच्ना ...महेश्वरी जी ...!!
वाह !!! बेहतरीन रचना...महेश्वरी जी
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
ReplyDeleteउन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती
मैं नारी,
सुन्दर रचना...आभार
सब दुखों की हरता ...ये नारी
ReplyDeleteफिर भी रहे ...बेचारी ...क्यों ??
शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति .... नारी जीवन की धुरी ...फिर भी खुद अधूरी
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....शुभकामनाएँ
ReplyDeleteह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
उन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती!!!
एक साथ कई भावों को जीती नारी !
सुन्दर !
Umda kavita.
ReplyDeleteऔरत की हक़ीक़त Part 4 (प्रेम और वासना की रहस्यमय प...
http://auratkihaqiqat.blogspot.com/2012/05/part-4-dr-anwer-jamal.html
यही रही परम्परा
ReplyDeleteयही है परम्परा
............. सीता बनो या द्रौपदी या आज की तथाकथित जाग्रत नारी - मोल तो चुकाना ही होगा
जीवन को सँवारते हुए -नारीत्व के विभिन्न रूप. सुन्दर !
ReplyDeleteनारी के विभिन्न रूपों और कर्तव्य को दर्शाती सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
उन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती
मैं नारी,
भावमय करते शब्द ...
सहसा नारी होने पर गर्व होने लगा ...सार्थक रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना...आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसंकटों में मुस्कुरायी
अन्तरिक्ष भी नाप आयी
काल भी से कभी न हारी
मैं नारी...
सादर।
sab kuchh sama gaya is nari me.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक ,बेहतरीन रचना,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
तिनके चुन कर घर बनाने वाली ही मुक्ति-गीत गा सकती है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteAkeli khadi hu fir bhi sab par bhari....me nari... :)
ReplyDeleteYes, that is how a woman is ! Great presentation.
ReplyDeleteनारे शक्ति है, जो पुरुषों को संबल देती है।
ReplyDeleteदीया बन जुझती
ReplyDeleteमैं नारी,
बढिया भाव -वेरेचक प्रस्तुति याद दिलाती हुई मुक्ति गान -हम होंगे कामयाब एक दिन .....कृपया जूझती करलें .
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
ReplyDeleteह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
नारी तो आधार है सृष्टि का. नारी के बिना सृष्टि भी नहीं.. कुछ भी नहीं..
सादर
मधुरेश
ह्रदय में पीर ,आँखों में नीर
ReplyDeleteहोठों में मुस्कान लिए
उन्मुक्त कंठ से
मुक्ति का गाना गाती
मैं नारी,
मुक्ति गान गाती हुई नारी, पर मुक्ति का कोई मार्ग नहीं... हर युग में देख लिया, वही रीति वही नियति. सार्थक रचना, बधाई.
.बेहतरीन प्रस्तुति
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