माँ के दूध का कर्ज़ |
बेटा , माँ को तीर्थ के बहाने
बाहर ले गया
और दूर कहीं छोड़ आया
सुबह से शाम हुई
बेटा न आया
माँ अधीर हो उठी
बेटा-बेटा कह रोने लगी
फिर
बेहोश हो वहीं गिर पड़ी
भीड़ में से एक ने उसे उठाया
दौड़ अस्पताल पहुँचाया
रात भर इलाज करवाया
सुबह माँ की जब आँख खुली
पास एक अजनवी को पाया
माँ ने सूनी आँखों से उसे देखा
मानो मन ही मन दुआ देरही हो
फिर धीरे से उसका हाथ थामा
और बोली -बेटा तुम जो भी हो
आज तुमने अपनी माँ के दूध का कर्ज़ चुकाया है
अजनवी पैरों मैं गिर पड़ा और बोला
अभी बेटा होने का फर्ज़ बाकी है
मेरे साथ मेरे घर चलो, माँ..
मेरा घर खाली है
आप के आने से भर जाएगा….
**************
और इस तरह एक अजनवी बेटा बन कर बूढ़ी माँ को अपने घर ले गया, जिसे उसका अपना बेटा बोझ समझ कर बीच रास्ते में छोड़ गया था ……..
महेश्वरी कनेरी
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति....काश माँ का प्यार बेटे समझ पायें...बहुत प्रभावी रचना...आभार
ReplyDeleteअंतस को झकझोर देती हैं ऐसी घटनाएं ... आभार
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना,...बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
काश के ऐसे अजनबी बेटे हर बेसहारा माँ को मिलें.....
ReplyDeleteमगर गिने-चुने ही होंगे ऐसे........
मन भर आया महेश्वरी दी.
बहुत सुंदर.
सादर.
दीदी आपकी अभिव्यक्ति दिल को छू गई .... !!
ReplyDeleteउफ़-
ReplyDeleteतीर्थ-यात्रा का बना, मनभावन प्रोग्राम |
दादी सुमिरन में रमी, राम राम घनश्याम |
राम राम घनश्याम, चले मथुरा से काशी |
दादी गई भुलाय, बाल-मन परम उदासी |
पढ़ी दुर्दशा विकट, भजन गाने पर रोटी |
लाश रहे दफ़नाय, काट के बोटी-बोटी ||
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ....
ReplyDeleteमार्मिक कविता...
ReplyDeleteऐसा भी होता है ...
ReplyDeleteदुनिया शायद ऐसे होनहार बेटों से ही चल रही है ...बहुत सुन्दर सन्देश
ReplyDeleteमार्मिक ...पर सन्देश देती आपकी लेखनी ....
ReplyDeleteअपने बेटे ने ठुकराया...गैर बेटे ने अपनाया...मर्मस्पर्शी!
ReplyDeleteमार्मिक, पर एक सच भी..
ReplyDeleteवाह .........दिल को छू गयी .........आज के समय को स्पष्ट करती ----------
ReplyDeleteदुखद है...पर सच है
ReplyDeleteअसल तस्वीर
ReplyDeleteमार्मिक प्रसंग
दो रंग....
ReplyDeleteभावुक करती रचना...
सादर।
आज का सच है आपकी रचना।
ReplyDeleteसादर
अजनवी पैरों मैं गिर पड़ा और बोला
ReplyDeleteअभी बेटा होने का फर्ज़ बाकी है
मेरे साथ मेरे घर चलो, माँ..
मेरा घर खाली है
आप के आने से भर जाएगा….
Very touching creation...
.
बहुत सुंदर रचना...भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteजिसे अपने ने गंवाया
ReplyDeleteउसे गैर ने अपनाया
तेरी माया भगवान
कोई समझ न पाया....
ऐसा भी हो रहा है ......
शुभकामनाएँ!
काश माँ हमेशा हंसती रहें ....
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
ReplyDeleteमन को छूने वाली रचना।
ReplyDeleteकाश! हर माँ के साथ ऐसा होता ,शायद अनाथालयों की जरुरत नहीं होती ..... संवेदनशील अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteअभागे था वो, उसने माँ को बोझ समझा...
ReplyDeleteपुत्र का फ़र्ज़ निभाते हुए एक अजनबी ने इस बात की पुष्टि कर दी कि दुनिया बहुत बड़ी है, और अच्छी भी...!
नै रचना प्रतीक्षित .प्रस्तुत के लिए आभार .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 21 मई 2012
यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तेरी आँखों की रिचाओं को पढ़ा है -
उसने ,
यकीन कर ,न कर .
मेरे साथ मेरे घर चलो, माँ..
ReplyDeleteमेरा घर खाली है
आप के आने से भर जाएगा….
संवेदनशील अभिव्यक्ति ....
हम आपका स्वागम
ReplyDeleteदूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में .....
कल 23/05/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... ... तू हो गई है कितनी पराई ... ...
sach hi hai ki panchon ungliya samaan nahi hoti. ek umeed ka rasta band hota hai to dusra kahin n kahin khul hi jata hai.
ReplyDeletebahut marmik prastuti.
संतति - ऐसी भी और वैसी भी!
ReplyDeleteदिल को छू गई यह रचना.
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