abhivainjana


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Thursday, 11 January 2018

सर्दी ने ढाया सितम

 नस्कार मित्रो। नव वर्षा की शुभकामनाओं के साथ मै सर्दी का एक तौहफा लेकर आई  हूँ
 
 सर्दी ने ढाया सितम
ठिठुरती काँपती ऊँगलियाँ  
माने  नहीं छूने को कलम
कैसे लिख दूँ अब कविता मैं
अजब  सर्दी ने ढाया सितम
शब्द मेरे ठिठुरे पड़े हैं
भाव सभी शुन्य से  हुए हैं
कंठ से स्वर निकलते नहीं
लगता है सब जाम हुए है
धूप भी किसी भिखारिन सी
 थकी हारी सी आती है 
कोहरे की चादर ओढे कभी
कभी गुमसुम सो जाती है
घर से बाहर निकले कैसे
दाँत टनाटन बजते है
मौसम की मनमानी देखो
कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं
गरम चाय और  नरम रजाई
अब तो यही सुखद सपने हैं
कैसे छोड़ूँ इन को अब मैं
यही लगते बस अपने है
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महेश्वरी कनेरी