कतरा कतरा बन गिरता
रहा,
मेरे वक्त का एक एक पल
लम्हा लम्हा बन ढलता रहा
कुछ नए सपने संजोए
कुछ आस उम्मीदें बटोरे
आ गया फिर
नया वर्ष
नए अंदाज में नए आगाज में
देखते ही देखते सब कुछ बदलने लगा
जो बीत गया वो यादें बन गई
कुछ खट्टी कुछ मीठी सी
कुछ अधुरी कुछ अनकही
सी
फिर बुनेंगी आँखे
,वही सपने
अपनी लाल लाल डोरों
से
हर उगते दिनो के खेतो में
जैसे पतझड़ का दर्द
भुला देती है
बसंत की नन्हीं
फूटती कोंपलें
अच्छे मौसम का इंतज़ार भी
बांधे रखती है व्यथित मन को
इस बार कुछ नया हो
,कुछ अच्छा हो
इसी चाहत को संजोए समेटे
रखता है ,ये मन बावरा
यही आस और विश्वास लिए
करते है स्वागत नव वर्ष तुम्हारा
स्वागत नव वर्ष
,स्वागत तुम्हारा
**********************
महेश्वरी कनेरी
सभी मित्रो को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं