रिश्तों
की ताप
बर्फ सी ठंडी हथेली
में, सूरज
का ताप चाहिए
फिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए
।
बाँध सर पे कफन, कुछ करने की
चाह चाहिए
मर कर भी मिट
न सके, ऐसे
बेपरवाह चाहिए।
पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए
चीख कर दर्द बोल
उठे,अहसासों की
ऐसी थाप चाहिए
मन में उमड़ते भावों
को,शब्दों
का विस्तार चाहिए
शब्द भाव बन छलक
उठे,ऐसे
शब्दों का सार
चाहिए
चीर कर छाती चट्टानों की,नदी की सी
प्रवाह चाहिए
अंजाम जो भी हो
बस, बढ़ते
रहने की चाह
चाहिए ।
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महेश्वरी कनेरी