हिन्दी ने पंचम फहराया,देश मेरा उठ आगे आया
अखण्ड़ जोत जली हिन्दी की,हर अक्षर में माँ को पाया
सहज सरल है माँ सी हिन्दी,है मॄदुल अमृत रस खान
भर आँचल में प्यार बाँटती,देती निजता की पहचान
निर्मल श्रोत है ग्यान अपार,सुगम इसका हर छंद विधान
वेद पुराणों की वाणी ये ,बसा हर अक्षर में भगवान
बढ़ रही शाखे हिन्दी की,है विश्व में वट वृक्ष समान
फिर क्यों न मिले हिन्दी को.निज देश मे भी उचित सम्मान
हिन्दी गूँजे दिशा दिशा में,लिखुँ कुछ ऐसा मैं रस गान
हिन्दी है आवाज़ हिन्द की,करती रहूँ सदा गुणगान
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महेश्वरी कनेरी