abhivainjana


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Tuesday, 27 August 2013

हवा ये कैसी चली….


फिर छू गया दर्द कोई

हवा ये कैसी चली

यादों ने ली फिर अंगड़ाई

आँख मेरी भर आई

हवा ये कैसी चली……

सब्र का  हर वो पल मेरा

कतरा-कतरा बन गिरता रहा

होठ हँसते रहे , आँख रोती रही

हवा ये कैसी चली….

हालात के लपटों में

झुलसते रहें अरमान सारे

जज्बात चिथड़े बन उड़े

जिन्दगी सिसकने लगी

हवा ये कैसी चली….

खामोशी ने होठ सी लिए

उदासी कहर बरसाने लगी

बेबस जिन्दगी माँगती रही

मुझसे मुस्काने का वादा

दर्द लिए मैं मुस्काती रही

हवा ये कैसी चली………


****************

महेश्वरी कनेरी

Tuesday, 20 August 2013

रक्षा बंधन पर कुछ हायकु

                                                                             

रक्षा बंधन

पवित्र प्यार का

पर्व निराला


राखी का तार

बन नेह बंधन

आया द्वार


भाई का मान

बहन की दुलार

रेशमी तार


तिलक लगा

 भाई के माथे पर

दिया आशीष


इस जग में

प्यार बहन का

है अनमोल


धर्म जाति का

बंधन नहीं जाने

अनोखा नाता


 थाल सजाओ

अक्षत रोली मिठाई

आया है भाई


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सभी मित्रों को रक्षाबंधन  की शुभकामनाएं

महेश्वरी कनेरी

Friday, 16 August 2013

अखण्ड़ भारत का सपना


पग-पग पर फैले भ्रष्टाचार से

खोखले वादे और अत्याचार से

प्रजातांत्रिक तानाशाही की मार से

परेशान आज हर इंसान है

मुद्दों पर गरमाती यहाँ राजनितियाँ

नोट से वोट का यहाँ व्यापार है

भ्रष्ट, मक्कार, स्वार्थी नेता

बने देश के सूत्रधार हैं

पेट के खातिर

बेचती जिस्म यहाँ

 घर की बेटियाँ

भूखे पेट की आग में

सिकतीं यहाँ रोटियाँ

अखण्ड़ भारत का सपना

खण्ड़-खण्ड़ हो गया

कहाँ खो गया,वो स्वर्णिम भारत

कण-कण देश का पूछ रहा


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महेश्वरी कनेरी

Monday, 5 August 2013

फिर कोई आग बुन


क्यों बुझा- बुझा सा है,फिर कोई आग बुन

छेड़ कर सुरों के तार ,फिर कोई राग चुन


गहन अँधेरी रात में.भोर की आवाज़ सुन

जाग नींद से जरा,फिर कोई ख्वाब बुन


मन में विश्वास भर, तू चल अपनी ही धुन

भटक गया राह तो ,फिर नई एक राह चुन



मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़

हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन


रुकता नहीं वक्त कभी,वक्त की पुकार सुन

भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन

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महेश्वरी कनेरी