झूले सावन के पड़े,
गाए गीत हजार ।
बरखा के सुर ताल पर,
धरा करे श्रृंगार ।।
मोती बन बूंदे गिरी,
हरित पात पर आज
देख देख मुस्का रही
लिए अजब अंदाज।।
अंबर पर बादल सजे,
ज्यूं मोती की थाल।
गिर बूंद बन पात पर,
हुई धरा खुश हाल।।
गगन बना घनघोर हैं
बूंद बनी उल्लास ।
भीग रहे तन मन सखी
लो आया चौमास॥
नव वधु सी धरती सजी ,
हरियाली चहुं ओर।
हर्षित उपवन गारहे,
देख सुखद ये भोर।।
डाल सजी पाती हरी,
खिलते फूल सफ़ेद ।
सोच सोच हैरान सब
मिला न कोई भेद।।
********"