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Friday, 6 January 2017

नव वर्ष

कतरा कतरा बन गिरता रहा,

 मेरे वक्त का एक एक पल

लम्हा   लम्हा  बन ढलता रहा

मेरा   हर  दिन प्रतिदिन  

  कुछ नए  सपने संजोए

    कुछ आस  उम्मीदें बटोरे

 आ गया फिर  नया वर्ष

 नए अंदाज में नए आगाज में

 देखते ही देखते सब कुछ बदलने  लगा 

जो बीत गया  वो यादें बन गई

कुछ खट्टी कुछ मीठी सी 

कुछ अधुरी कुछ अनकही सी 

फिर बुनेंगी आँखे ,वही सपने 
 

अपनी लाल लाल डोरों से

 फिर बोएँगे हम उमीदें 

हर उगते दिनो  के खेतो में

जैसे पतझड़ का दर्द भुला देती है

बसंत की नन्हीं फूटती कोंपलें

 अच्छे मौसम का इंतज़ार भी

 बांधे रखती है व्यथित मन को

इस बार कुछ नया हो ,कुछ अच्छा हो

इसी  चाहत को संजोए समेटे

रखता है ,ये मन  बावरा

यही  आस और विश्वास लिए

 करते है स्वागत नव वर्ष तुम्हारा

स्वागत नव वर्ष ,स्वागत तुम्हारा

**********************

महेश्वरी कनेरी

सभी मित्रो को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 




10 comments:

  1. उम्मीद तो हमेशा बनी रहनी चाहिए ... और उम्मीद हो तो पूरी भी होती है ... नवा वर्ष मंगलमय हो आपको ...

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  2. धन्यवाद आप का शास्त्री जी

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  3. जब तक सास तब तक आस
    उम्मीद पर दुनिया कायम है ..
    बहुत सुन्दर रचना
    आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. कल का विश्वास ही जीवन का संबल है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..शुभकामनाएं

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  6. फिर बुनेंगी आँखे ,वही सपने ....मधुर ...सच उम्मीद दे रही आपकी कविता ...!!

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