नस्कार मित्रो। नव वर्षा की शुभकामनाओं के साथ मै सर्दी का एक तौहफा लेकर आई हूँ
सर्दी ने ढाया सितम
ठिठुरती काँपती ऊँगलियाँ
माने नहीं छूने
को कलम
कैसे लिख दूँ अब कविता मैं
अजब सर्दी ने
ढाया सितम
शब्द मेरे ठिठुरे पड़े हैं
भाव सभी शुन्य से हुए हैं
कंठ से स्वर निकलते नहीं
लगता है सब जाम हुए है
धूप भी किसी भिखारिन सी
थकी
हारी सी आती है
कोहरे की चादर ओढे कभी
कभी गुमसुम सो जाती है
घर से बाहर निकले कैसे
दाँत टनाटन बजते है
मौसम की मनमानी देखो
कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं
गरम चाय और नरम रजाई
अब तो यही सुखद सपने हैं
कैसे छोड़ूँ इन को अब मैं
यही लगते बस अपने है
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महेश्वरी कनेरी
ठण्ड में गरमागरम चाय और पकोड़े खाने के मजा ही कुछ और है
ReplyDeleteबहुत खूब सामयिक रचना
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 13 जनवरी 2018 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वाआआह बहुत खूब
ReplyDeleteसर्दी ने कैसा गजब ढाया है..आपकी कलम से अपना कच्चा चिठ्ठा लिखवाया है
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-01-2018) को "कुहरा चारों ओर" (चर्चा अंक-2846) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आप का
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, स्वामी विवेकानन्द जी की १५५ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार आप का
Deleteगरम चायऔर नरम रजाई उँगलियाँ गरमा देंगी ,कलम से रिश्ता बना रहे बस .
ReplyDeleteसुंदर रचना
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आप सभी का बहुत आभार
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वाह! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता हैं
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