रे मन धीरज रख ज़रा
,समय बड़ा बलवान.
मिलना हो मिल
जाएगा,बात यही तू मान |
पढ़ना लिखना आगया
,कहते हो विद्वान ,
राग द्वेष मन में
बसा .कैसा है ये ज्ञान |
तितली बोली फूल से
,दिन मेरे दो चार ,
जी भर के जी लूँ ज़रा
बाँटू,रंग हजार |
समझ न पाय भावना ,खूब छला बन नेक ,
होश में आय जब ज़रा,
बचा न कुछ भी शेष |
निज हित में भूले
सभी ,रिश्तो की सौगात ,
अपने ही करते रहे
,अपनो पर आघात |
प्रेम भाव मन में
रखे .करे सभी का मान ,
जाने कब किस रूप में,
मिल जाए भगवान
सहज सरलता खो गई
,झूठों का संसार
आडम्बर के भीड़ में
,सत्य हुआ लाचार
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महेश्वरी कनेरी
सुंदर सरल दोहे..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-08-2017) को "'धान खेत में लहराते" " (चर्चा अंक 2694) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आडम्बर की भीड़ में सत्य हुआ लाचार...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत ही सुन्दर...
अति सुन्दर ! क्रांतिकारी दोहे आभार ,"एकलव्य"
ReplyDeleteकमाल के दोहे दीदी!
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