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दर्द |
काली रातों के गहन साये में
कितने ही दर्द सिमट कर बैठे हैं
हर दर्द फूट-फूट कर गिरता है
हर रोज़ ,धरती के आँचल में
और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें
हँस-हँस कर पी जाती हैं
दर्द के हर उन कतरों को
फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा
जैसे कुछ हुआ ही न हो.......
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दर्द पी जाती हैं सूरज कि किरणे और देतीं हैं उजाला सभी को ....
ReplyDeleteतभी जीवन सुचारू रूप से चलता रहता है ....
गहन,सार्थक और बहुत सुंदर रचना .....
शुभकामनायें ....
हर रात की एक सुबह होती है..................
ReplyDeleteहोती ही है..................
तभी ना जीवन चल पाता है...
बहुत सुंदर रचना महेश्वरी जी.....
सादर
अनु
सच कहा महेश्वरीजी....रात के अँधेरे में बहुत दर्द दुबक कर सुबकते रहते हैं .....लेकिन सवेरा होते ही अपने दर्द को समेत फिर जुट जाना होता है ...जैसे कुछ हुआ ही नहीं ....कितना सच...कितनी सरलता से कहा हुआ ......
ReplyDeleteहर दिन नया दिन .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete*सब कुछ शान्त और शाश्वत सा ,
ReplyDeleteजैसे कुछ हुआ ही न हो......*
रात गई बात गई नयी सुबह नए सपने ,
पिछले दर्द का कोई नामो निशान बाकी नहीं ....
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
जीवन में सुख दुःख का क्रम चलता रहता है ...बहुत सुन्दर भाव छिपे हैं दर्द की बूंदों में
ReplyDeleteहर सुबह सूरज की चंचल किरणें
ReplyDeleteहँस-हँस कर पी जाती हैं
दर्द के हर उन कतरों को
फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा
जैसे कुछ हुआ ही न हो.......और पूरब से पश्चिम की यात्रा करती है अथक
हर दर्द फूट-फूट कर गिरता है
ReplyDeleteहर रोज़ ,धरती के आँचल में
और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें
हँस-हँस कर पी जाती हैं
बहुत अच्छे तरीके से धैर्य को परिभाषित किया है आपने
बहुत सुन्दर
एक सार्थक सन्देश देती आपकी यह भावपूर्ण कविता अच्छी लगी.
ReplyDeleteइस प्रस्तुति के लिए आभार !
धरती का धैर्य..
ReplyDeleteअधिक व्यस्त था |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
बधाई ||
हर रात के बाद सुबह आती है,
ReplyDeleteवैसे ही दर्द भी।
बहुत खूब आंटी!
ReplyDeleteसादर
सुन्दर! अति सुन्दर!
ReplyDeleteहर सुबह सूरज की चंचल किरणें
ReplyDeleteहँस-हँस कर पी जाती हैं
दर्द के हर उन कतरों को
.... ....... सुंदर अभिव्यक्ति .....खुबसूरत प्रस्तुति हेतु आपका आभार.
वाह ... बहुत खूब ।
ReplyDeleteभावों की अप्रतिम अभिव्यक्ति..बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह बहुत सही कमाल का लिखा है आपने, बहुत सुंदर एवं सार्थक भावों से सुसजित प्रभावशाली पोस्ट। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव
ReplyDeleteकिरणों के भी काम निराले
ReplyDeleteसुबह सुबह कतरे पी डाले
खूबसूरत रचना......
बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteफिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा
ReplyDeleteजैसे कुछ हुआ ही न हो.......
बहुत अर्थपूर्ण...सबके लिए शान्त और शाश्वत
किन्तु उनके लिए नहीं जिन्हें दर्द मिला...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही गहन भाव अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली रचना....
हर रात की सुबह ओर दर्द की शाम होती है जीवन चलता रहता है किरणों के रथ पे हो सवार .बहुत सुन्दर भाव कविता विचार कणिका है यह पोस्ट .बधाई स्वीकारिये .
ReplyDeleteलम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.हटमल
आरोग्य समाचार :
और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें
ReplyDeleteहँस-हँस कर पी जाती हैं
दर्द के हर उन कतरों को कितनी doori manzil की हो ,dhire dhire ghat jaati है ,
कितनी raat andheri हो पर dhire dhire dhal jaati है . ।।कृपया यहाँ भी पधारें -
रोग जो अधेड़ों को ले आता है बचपन की गलियों में
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_03.html
Posted 3rd May by veerubhai
dard bhare nagme hi yaadgaar saugaat ban jaaten hain zindgee kee .sukh ke baad dukh aur fir dukh ke baad sukh aur isi kram kee punraavritti hi jivan saar hai .aabhaar.
ReplyDeleteहर सुबह सूरज की चंचल किरणें
ReplyDeleteहँस-हँस कर पी जाती हैं
दर्द के हर उन कतरों को
फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा
जैसे कुछ हुआ ही न हो.....
कविता की सशक्त पंक्तियां
हर दर्द फूट-फूट कर गिरता है
ReplyDeleteहर रोज़ ,धरती के आँचल में
और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें
बहुत खूब
सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteफिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा
ReplyDeleteजैसे कुछ हुआ ही न हो
‘कुछ होने‘ की यही नियति है।
बहुत अच्छी कविता।
एक शे’र याद आ गया,
ReplyDeleteअब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें,
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं।