abhivainjana


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Sunday, 29 April 2012

दर्द

दर्द



काली रातों के गहन साये में

कितने ही दर्द सिमट कर बैठे हैं

हर दर्द फूट-फूट कर गिरता है

हर रोज़ ,धरती के आँचल में

और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें

हँस-हँस कर पी जाती हैं

दर्द के हर उन कतरों को

फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा

जैसे कुछ हुआ ही न हो.......

******

33 comments:

  1. दर्द पी जाती हैं सूरज कि किरणे और देतीं हैं उजाला सभी को ....
    तभी जीवन सुचारू रूप से चलता रहता है ....
    गहन,सार्थक और बहुत सुंदर रचना .....
    शुभकामनायें ....

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  2. हर रात की एक सुबह होती है..................
    होती ही है..................

    तभी ना जीवन चल पाता है...

    बहुत सुंदर रचना महेश्वरी जी.....
    सादर
    अनु

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  3. सच कहा महेश्वरीजी....रात के अँधेरे में बहुत दर्द दुबक कर सुबकते रहते हैं .....लेकिन सवेरा होते ही अपने दर्द को समेत फिर जुट जाना होता है ...जैसे कुछ हुआ ही नहीं ....कितना सच...कितनी सरलता से कहा हुआ ......

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  4. हर दिन नया दिन .... सुंदर प्रस्तुति

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  5. *सब कुछ शान्त और शाश्वत सा ,
    जैसे कुछ हुआ ही न हो......*
    रात गई बात गई नयी सुबह नए सपने ,
    पिछले दर्द का कोई नामो निशान बाकी नहीं ....

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  6. जीवन में सुख दुःख का क्रम चलता रहता है ...बहुत सुन्दर भाव छिपे हैं दर्द की बूंदों में

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  7. हर सुबह सूरज की चंचल किरणें

    हँस-हँस कर पी जाती हैं

    दर्द के हर उन कतरों को

    फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा

    जैसे कुछ हुआ ही न हो.......और पूरब से पश्चिम की यात्रा करती है अथक

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  8. हर दर्द फूट-फूट कर गिरता है

    हर रोज़ ,धरती के आँचल में

    और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें

    हँस-हँस कर पी जाती हैं


    बहुत अच्छे तरीके से धैर्य को परिभाषित किया है आपने

    बहुत सुन्दर

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  9. एक सार्थक सन्देश देती आपकी यह भावपूर्ण कविता अच्छी लगी.
    इस प्रस्तुति के लिए आभार !

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  10. अधिक व्यस्त था |

    सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई ||

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  11. हर रात के बाद सुबह आती है,
    वैसे ही दर्द भी।

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  12. बहुत खूब आंटी!


    सादर

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  13. सुन्दर! अति सुन्दर!

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  14. हर सुबह सूरज की चंचल किरणें
    हँस-हँस कर पी जाती हैं
    दर्द के हर उन कतरों को
    .... ....... सुंदर अभिव्यक्ति .....खुबसूरत प्रस्तुति हेतु आपका आभार.

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  15. वाह ... बहुत खूब ।

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  16. भावों की अप्रतिम अभिव्यक्ति..बहुत सुंदर

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  17. वाह बहुत सही कमाल का लिखा है आपने, बहुत सुंदर एवं सार्थक भावों से सुसजित प्रभावशाली पोस्ट। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  18. बेहद खूबसूरत भाव

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  19. किरणों के भी काम निराले
    सुबह सुबह कतरे पी डाले

    खूबसूरत रचना......

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  20. बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  21. फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा

    जैसे कुछ हुआ ही न हो.......

    बहुत अर्थपूर्ण...सबके लिए शान्त और शाश्वत
    किन्तु उनके लिए नहीं जिन्हें दर्द मिला...

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  22. भावपूर्ण अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना

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  23. बहुत ही गहन भाव अभिव्यक्ति
    बहुत ही प्रभावशाली रचना....

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  24. हर रात की सुबह ओर दर्द की शाम होती है जीवन चलता रहता है किरणों के रथ पे हो सवार .बहुत सुन्दर भाव कविता विचार कणिका है यह पोस्ट .बधाई स्वीकारिये .
    लम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.हटमल
    आरोग्य समाचार :

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  25. और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें

    हँस-हँस कर पी जाती हैं

    दर्द के हर उन कतरों को कितनी doori manzil की हो ,dhire dhire ghat jaati है ,
    कितनी raat andheri हो पर dhire dhire dhal jaati है . ।।कृपया यहाँ भी पधारें -
    रोग जो अधेड़ों को ले आता है बचपन की गलियों में
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_03.html

    Posted 3rd May by veerubhai

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  26. dard bhare nagme hi yaadgaar saugaat ban jaaten hain zindgee kee .sukh ke baad dukh aur fir dukh ke baad sukh aur isi kram kee punraavritti hi jivan saar hai .aabhaar.

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  27. हर सुबह सूरज की चंचल किरणें

    हँस-हँस कर पी जाती हैं

    दर्द के हर उन कतरों को

    फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा

    जैसे कुछ हुआ ही न हो.....


    कविता की सशक्त पंक्तियां

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  28. हर दर्द फूट-फूट कर गिरता है

    हर रोज़ ,धरती के आँचल में

    और हर सुबह सूरज की चंचल किरणें

    बहुत खूब

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  29. सुंदर अभिव्यक्ति!

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  30. फिर सब कुछ शान्त और शाश्वत सा
    जैसे कुछ हुआ ही न हो

    ‘कुछ होने‘ की यही नियति है।
    बहुत अच्छी कविता।

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  31. एक शे’र याद आ गया,
    अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें,
    कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं।

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