डाली
मैं तो सपाट सीधी सी एक डाली थी
जो न झुकी, न टूटी थी कभी
उम्र भी न झुका सकी थी मुझे
आसमां को छूने की जिद में
ऊपर ही ऊपर बढ़ती जाती थी
लेकिन क्या कहूँ…..
आज हार गई हूँ मैं
देखो मुझे..
मैं तो
अपने ही फूलों के
बोझ से
झुकी जारही हूँ…..टूटी जारही हूँ….
लेकिन ये हार ही मेरी जीत है
क्योंकि झुकना और टूटना
मेरी विनम्रता का द्योतक है
मेरी खुशी है
मेरा मान सम्मान है
यही मेरे जीवन का सार है
महेश्वरी कनेरी
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगहन भाव पूर्ण अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteमैं तो
ReplyDeleteअपने ही फूलों के
बोझ से
झुकी जारही हूँ…..टूटी जारही हूँ….
डाली के रूप मे एक परिवार के मुखिया की व्यथा कथा बहुत सरलता से बताई है आंटी।
सादर
वाह! बहुत भाव पूर्ण रचना है।बधाई।
ReplyDeleteयही तो विनम्रता है..
ReplyDeleteजीवन का सच कहती
ReplyDeleteमन की बात कहती ...सुंदर रचना ....!!...
bahut badi baat kahi hai rachna ke maadhyam se apne ajeej hi insaan ko jhuka dete hain gairon me kahaan dam hai.
ReplyDeletebahut gahan bhaavabhivyakti.
गहन भावयुक्त रचना... आभार...
ReplyDeleteयह झुकना हर्ष का द्योतक है और विनम्रता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर................
ReplyDeleteकितनी गहन बात कह दी आपने चंद शब्दों में......
और जिन फूलों की वजह से झुकी है वो फूल उस डाली का मान भी तो हैं!!!!!!
सादर
अनु
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
........बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...गहन अभिव्यक्ति..............
ReplyDeletekya baat ?........umda abhivyakti
ReplyDeleteइंसान अपनों के दिए ग़मों से ही टूटता है .....सुन्दर अवं मर्मस्पर्शी !!!!!
ReplyDeleteजिस पर फूल और फल लगते हैं वही झुकता है ... ठूंठ झुकते नहीं टूट जाते हैं ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर, गहन भावों से भरी रचना...
ReplyDeleteसादर
सुन्दर रचना
ReplyDeletekhubsurat bhaw ma'm...sahan sheel jhuk hi jaata hai saamjasy ke liye..
ReplyDeleteयह गुण विनम्रता से ही आता है।
ReplyDeleteअपने ही फलों के बोझ से झुक जाती है डाली।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...झुकने वाली डाली पर ही फूल खिलते है ..ये ही इस जीवन का सार भी हैं .....
ReplyDeleteविनम्रता की विनम्र अभिव्यक्ति!सार्थक रचना|
ReplyDeleteक्योंकि झुकना और टूटना
ReplyDeleteमेरी विनम्रता का द्योतक है
लाजवाब रचना...बधाई
नीरज
पेड़ों की तरह अपनी खाद बनना सिखा रही है यह रचना .कृपया 'जिद 'कर लें 'जिद्द' को .बेशक जिद से जिद्दी बना है .
ReplyDeleteधन्वाद वीरू भाई ...कर लिया..
Deleteबहुत खूब....भावयुक्त रचना
ReplyDeleteसुन्दर गहन विचार व्यक्त करती रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन भाव अभिव्यक्ति.....
जीवन का यह चक्र निरंतर, जो जाता वह आता ही है ..
ReplyDelete.
क्योंकि झुकना और टूटना
ReplyDeleteमेरी विनम्रता का द्योतक है
मेरी खुशी है
मेरा मान सम्मान है
यही मेरे जीवन का सार है
वाह,
बिल्कुल अनछुए भावों पर आपने कलम चलाई है।
मेरी खुशी है
ReplyDeleteमेरा मान सम्मान है
यही मेरे जीवन का सार हैbilkul sahi bat....
कल 09/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
दी,मैंने आपका वह हाइगा देखा था...टिप्पणी भी दिया था.
ReplyDeleteहार्दिक आभार!आशा है आगे भी आपके हाइगा देख पाऊँगी.
बहुत खूब, बहुत सुंदर रचना,
ReplyDeletebahut hi sundar rachana ....badhai sweekaren
ReplyDeleteक्योंकि झुकना और टूटना
ReplyDeleteमेरी विनम्रता का द्योतक है ....
बहुत खूब !भावयुक्त रचना
कल 10/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर कविता |ब्लॉग पर आने हेतु आभार |
ReplyDeleteलेकिन ये हार ही मेरी जीत है
ReplyDeleteक्योंकि झुकना और टूटना
मेरी विनम्रता का द्योतक है
बहुत सुन्दर और सार्थक
falon se ladi daali hee jhuki rahti hai..khoob padha tha ise ..aaj aapke chintan ne naye roop me parosa..padhkar behad accha laga...sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDelete