एक आलौकिक अनुभूति |
कभी मंदिर में ढ़ूँढ़ा
कभी मस्जिद में ,
कभी चर्च में देखा ,
कभी गुरुद्वारे में
माथा टेका
दर-दर भटकती रही
पत्थरों को पूजती रही
मंदिरों में धंटी बजा बजा
पुकारती रही..
“कहाँ हो ? कहाँ हो प्रभु तुम ?
मुझे तुम से कुछ कहना है “
मैं रोती रही , बिलखती रही
और, पुकारती रही..
पर कोई असर नहीं..
फिर हार थक ,आँखें मूंदे
हताश हो बैठ गई
तभी अचानक एक आवाज आई….
“कहो मुझसे क्या कहना है”
मैंने इधर –उधर देखा
वहाँ कोई न था
मैं फिर बोल उठी..
“कहाँ हो प्रभु…. कहाँ हो तुम ?
मुझे दर्शन दो… प्रभु”
फिर से आवाज आई….
“मैं यही हूँ ..तुम्हारे पास
तुम्हारी धड़कन में”
मैं समझ न पाई
मैंने अपने ह्रदय में हाथ रखा
वो धड़क रहा था
तभी मुझे एक आलौकिक अनुभूति का
आभास होने लगा
बस उसी क्षण मैं समझ गई
प्रभु मुझ में ,मेरी धड़कन में है
और मैं दर-दर भटकती रही
ये सुखद अहसास मेरे लिए अद्भुत था
मैंने स्वयं को बहुत हलका पाया
मेरा अब सारा संशय समाप्त हो चुका था
मन स्थिर और शान्त हो गया
सच ! कितना अद्भुत था वो क्षण
और वो आलौकिक अनुभूति ……
******
महेश्वरी कनेरी
तब सच ही कहते है सभी हर नर में नारायण बसते हैं .... आत्मा से परमात्मा का मिलन "एक आलौकिक अद्भुत अनुभूति" होने पर सारा संशय समाप्त तो होना ही था .... :)
ReplyDeleteआर्त पुकार पर प्रभु अपने होने का आभास करवा देते हैं...आत्मा से परमात्मा के मिलन का वो पल अद्भुत शांति देता है|
ReplyDeleteसहज और सरल अभिव्यक्ति!
आध्यात्मिक अनुभूति की सरल और अत्यंत सहज प्रस्तुति जो मार्ग दर्शन करने में सक्षम यदि हम आँखे न मूंद लें. अंतर्मन की आवाज न सुने. आभार इस प्रभावशाली प्रस्तुति हेतु.
ReplyDeleteअध्यात्म तक पहुँचने का रास्ता मिल जाये ...तो क्या कहना ...सहज अभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्रभु धड़कन में हैं बसे |
ReplyDeleteसही तथ्य |
आभार ||
मन में उतरते शब्द.... अति सुंदर
ReplyDeleteमैं तो भीतर हूँ तेरे.....अंतर्मन में............खोज स्वयं को...पहचान खुद को.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर महेश्वरी जी...
सादर.
यह अनुभूति ही खुद को पा लेना है ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, सार्थक कृति
ReplyDeleteवैसे भी खुद को ढूँढ पाना सच में मुश्किल है,
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्यों भटकता है
ReplyDeleteइधर उधर
बसा है हर मन में
ढूँढने वाला चाहिए
खुदा से मांगने से पहले
खुद को पाक साफ़
होना चाहिए
अध्यात्म=अपनी आत्मा का अध्यन।
ReplyDeleteमैं समझती हूँ ....अपनी conscience अपनी अंतरात्मा ही वास्तव में इश्वर ही की आवाज़ है जो हमारे भीतर रहकर हमें सही गलत..अच्छे बुरे ..उचित अनुचित का फर्क बताती है ...और हमेशा सही बताती है .....हम शायद दुनिया को धोका दे दें ...लेकिन उससे झूठ नहीं बोल सकते .....यह इश्वर नहीं तो और क्या है
ReplyDeleteकल 16/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मन की हर धड़कन में प्रभु बसे हैं।
ReplyDeleteहां, वह सर्वशक्तिमान हमारी धड़कनों में है।
ReplyDeleteआलौकिक को अलौकिक कर लीजिए।
आध्यात्मिक अनुभूति.तुम्हारे पास तुम्हारी धड़कन में”
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
कहाँ ढूँढता है मुझे , मैं हूँ तेरे पास
ReplyDeleteमैं तुझ सा साकार नहीं, मैं केवल अहसास.
मैं तुझे मिल जाऊंगा, तू बस मैं को भूल
मेरी खातिर हैं बहुत , श्रद्धा के दो फूल.
जिस दिन जल कर दीप सा ,देगा ज्ञान प्रकाश
मुझमें तू मिल जायेगा, होगी खतम तलाश.
सुंदर सृजन, यही जीवन का सत्य है..............
स्व से साक्षात्कार कराते हैं आपके शब्द. आत्म की ओर उन्मुख होना ही उस ईश्वर को पा लेना है. सुन्दर व प्रेरक रचना के लिए आभार !
ReplyDeleteअति सुन्दर , कृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleteअपने अंदर झाँके ॥प्रभु वहीं मिलेगा ... सुंदर रचना
ReplyDeleteधार्मिक जगत में आए सभी जिज्ञासु इस अनुभूति को ढूँढते हैं. पाते हैं अपने भीतर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूति...बधाई !
ReplyDeleteबस उसी क्षण मैं समझ गई
ReplyDeleteप्रभु मुझ में ,मेरी धड़कन में है
sahi anubhav kiya w. to ghat ghat ke vasi hain...
हमारी आत्मा भी तो परमात्मा का ही अंश है....
ReplyDeleteहमारी आत्मा प्रभु का ही एक रूप है। जो हमे हमेशा कोई भी निर्णय लेने से पहले सही मार्ग बताता है मगर हम ही नहीं समझ पाते बिलकुल उस मर्ग कि तरह जिसके अंदर स्वम कस्तुरी छुपी होती है लेकिन वह मगतृष्णा के चलते उसकी तलाश में ता उम्र भटका करता है बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा आपने .सुंदर रचना.
ReplyDeleteसच इश्वर अपने अन्दर ही समाहित है बस जरुरत है उसे जानने की, उससे तारतम्य बनाये रखने की..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अध्यात्मिक अनुभूति..
ओसी आलोकिक अनुभूति बहुत देर में होती है .. पर जब होती है सब कुछ शांत हो जाता है ...
ReplyDelete“कहाँ हो ?........vah !
ReplyDeletehttp://alwidaa.blogspot.in/2012/04/blog-post_3983.html............. yahaan bhee aayiyega kbhi....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. सच है अगर ईश्वर है तो तो हममें ही है, कहीं किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में नहीं. सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteफिर से आवाज आई….
ReplyDelete“मैं यही हूँ ..तुम्हारे पास
तुम्हारी धड़कन में”
मैं समझ न पाई
मैंने अपने ह्रदय में हाथ रखा
वो धड़क रहा था
तभी मुझे एक आलौकिक अनुभूति का
आभास होने लगा
bilkul sachha ahsas .....gahare rahsy ujagar karti ak prabhavshali rachana ..... abhar ke badhai bhi.
बिलकुल सच कहा है...वह हमारे अन्दर ही हर समय रहता है लेकिन हम उसे मंदिर मस्जिद में ढूँढते फिरते हैं. बहुत प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteवो धड़क रहा था
ReplyDeleteतभी मुझे एक आलौकिक अनुभूति का
आभास होने लगा
bhaavpuurn abhivyakti
तभी मुझे एक आलौकिक अनुभूति का
ReplyDeleteआभास होने लगा
बस उसी क्षण मैं समझ गई
प्रभु मुझ में ,मेरी धड़कन में है.
जो यह समझ गया उसे ही अलौकिक अनुभूति सम्भव है.
बहुत सुंदर प्रस्तुति. बधाई.
हमारी अतरात्मा में ही अल्लौकिक अनुभूति है | अपनी रचना के माध्यम से आपने सही भाव प्रदान किया |
ReplyDeleteउपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वर:
ReplyDeleteपरमात्मेति चाप्युक्तो देहेस्मिन्पुरुष: पर:
इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में
परमात्मा ही है.वह साक्षी होने से उपद्रष्टा,
यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता,
सबका धारण पोषण करनेवाला होने से भर्ता.
जीवरूप से भोक्ता,सबका स्वामी होने से महेश्वर,
और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने से परमात्मा,ऐसा
कहा गया है.
आपके अनुभव शास्त्रोक्त ही हैं.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लियें आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा,महेश्वरी जी.
मन के भटकाव को सकून देती रचना
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