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Tuesday, 10 April 2012

“प्रेम” क्या है ?



“प्रेम” जो सिर्फ ढाई अक्षर के शब्दों से मिल कर बना है । ये शब्द जितना छोटा है उतनी ही गहराई लिए हुए है ,इसके अनेक रूप है अनेक रंग हैं । ये इतना विस्तृत है कि सारा संसार इसमें समाया हुआ है। इस विषय पर कई विद्वानों ने बहुत कुछ कहा है बहुत कुछ लिखा भी है, सारा साहित्य इससे भरा पड़ा है ।फिर भी आज मैं अपनी इस पचासवीं पोस्ट के लिये इसी विषय पर कुछ लिखने का दुस्साहस कर रही हूँ । ये मेरी छोटी सी कोशिश होगी.. इसे समझने के लिए इसे जानने के लिए कि वास्तव में “प्रेम” क्या है ?.......
  
   “प्रेम” क्या है ?.......


प्रेम समर्पण है,

भावों का अर्पण है

प्रेम कोई अभिलाषा नहीं ,

सिर्फ न्योछावर है ।

प्रेम सिर्फ प्रेम के लिए है 

न कुछ माँगता है न देता है ,

वह तो अपने में ही पूर्ण

 और पर्याप्त है

प्रेम में कोई आडम्बर नहीं,

कोई आवरण नहीं

प्रेम सिर्फ आनंद और उन्माद नहीं

एक करुण दर्द भी है,

जिसे स्वेच्छा और प्रसन्नता से 

अनुभव कर सको

और उसे अपना कर

स्वयं को पूर्ण बना सको ।

प्रेम में स्वयं को इतना पिघला दो

कि वह झरना बन बह निकले

उसमें से निकता संगीत ही

निश्छल प्रेम की अमृत धारा होगी

जो स्वयं ही भीतर धीरे-धीरे प्रवाहित हो कर

सब कुछ अपने अंदर समा लेगी

तभी निर्मल प्रेम का एक सुन्दर रूप खिलेगा ।

बस…..यही प्रेम है……

हाँ यही तो प्रेम है

शाश्वत प्रेम ……

35 comments:

  1. आपकी 50 वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई।
    सच कहूं तो ब्लाग परिवार में जो जंग छिड़ी है, उसे ठंडा करने के लिए ऐसी रचना की बहुत जरूरत थी।
    पर मुश्किल ये है कि लोग पढ़कर आगे निकल जाएंगे, आत्मसात करने की कोशिश कोई नहीं करेगा।
    बहरहाल... बहुत सुंदर रचना के लिए एक बार फिर बधाई

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    Replies
    1. सही कहा ..जंग की शान्ति के लिए निर्मल प्रेम की जरुरत है..धन्यवाद..

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  2. ५०वीं पोस्ट की बधाई......

    प्रेम में स्वयं को इतना पिघला दो
    कि वह झरना बन बह निकले....................

    रचना के एक एक शब्द परिभाषित करता है प्रेम को...
    बहुत सुंदर रचना.

    सादर.

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  3. प्रेम की सुंदर अनुभूति से परिभाषित किया ...
    प्रेम सिर्फ प्रेम के लिए है

    न कुछ माँगता है न देता है ,

    वह तो अपने में ही पूर्ण

    और पर्याप्त है

    बहुत सुंदर .... जहां मांग हो वहाँ प्रेम नहीं कुछ और होता है

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  4. ५०वीं पोस्ट की बधाई...
    निश्छल प्रेम की निर्मल गंगा बहती रहे...
    शुभकामनाएँ!!!

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  5. प्रेम की सुन है क्या परिभाषा, सुंदर सपने कोमल आशा और ये सपने तभी पूरे होंगे जब समर्पण, अर्पण और न्योछावर होना कोई सीख ले...बहुत सुंदर कविता, बहुत बहुत बधाई!

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  6. प्रेम सिर्फ आनंद और उन्माद नहीं
    एक करुण दर्द भी है ....
    हाफ सेंचुरी वाह दीदी..... !!बहुत-बहुत बधाई.... :)))))

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  7. पचासवीं पोस्ट की हार्दिक बधाई ....निर्मल आनंद दे रही है आपकी रचना ...
    शुभकामनायें ....

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  8. 50वीं पोस्ट की बधाई......सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  9. 50वीं पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई ... अनुपम भाव लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

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  10. प्रेम जीवन आधार है ....

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  11. पचासवीं पोस्ट पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  12. prem nigahon ki khushbu hae ruhani takat hae ................
    jane kaese paribhashit karun? 50 vin post par aseem bdhai.

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  13. आधा सौ पोस्ट लेखन हेतु अनेकों मंगलकामनाएं।

    'प्रेम' त्याग और तपस्या पर आधारित होता है। इसके अतिरिक्त बाकी सब छ्लावा।

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  14. 50 वीं पोस्ट बहुत शानदार है आंटी!


    सादर

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  15. 50 वीं पोस्ट की ढेरों बधाई, प्रेम तो बस पूर्ण समर्पण है।

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  16. प्रेम जीवन का आधार है
    विश्वास है , परवाह है
    एक ऐसी गहराई है
    जिसमे डूबता जाना ही
    हमारी चाह है |

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  17. बस…..यही प्रेम है……

    हाँ यही तो प्रेम है

    शाश्वत प्रेम ……

    पचासवीं पोस्ट की हार्दिक बधाई... प्रेम सिर्फ प्रेम होता है, वहां किसी और के लिए कोई स्थान नहीं, इसका कोई पर्याय नहीं... सुन्दर अभिव्यक्ति

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  18. ५० वीं पोस्ट के लिए बहुत२ बधाई,...
    बहुत सुन्दर रचना,बेहतरीन प्रेम भाव की प्रस्तुति,.....


    RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

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  19. 50 वीं पोस्ट की ढेरों बधाई.... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  20. प्रेम मयी इस ५०वी पोस्ट की बधाई ... प्रेम के कितने रूप हैं ...

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  21. ढ़ाई आखर प्रेम का ,परिभाषित अति खूब.
    पार उतरता है वही, गया प्रेम जो डूब ..

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  22. प्रेम
    सिर्फ न्योछावर है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  23. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडत होय ! प्रेम अपनी ही मोमल भावना का आस्वादन है .जुड़ाव है .देह की वाणी है .आत्मा का संगीत है .वाद्य संगीत का माधुरी और झंकार ,तबले की झपताल है .गोरी का नैनी -ताल है कान्हा की बंसरी है गोपियों का मुग्धा भाव है .माँ की लोरी है ,स्तन पान है .

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  24. बढ़िया भाव संसार है इस रचना का .अर्थ छटा भी न्यारी है .

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  25. प्रेम सिर्फ प्रेम के लिए है
    न कुछ माँगता है न देता है ......

    ..सच्चा प्यार unconditional होता है .....बहुत सुन्दर भाव .!

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  26. प्रेम तो बस मिटने का नाम है। समर्पण त्याग और विसर्जन!

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  27. 'प्रेम के लिए प्रेम' एक कठिन लेकिन गमनीय पथ है. 50वीं पोस्ट पर आपको हार्दिक बधाई.

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  28. प्रेम कोई अभिलाषा नहीं ,

    सिर्फ न्योछावर है .................100% agreed.

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  29. 50 वीं पोस्ट की ढेरों बधाई और बहूत ही सुंदर रचना

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  30. बहुत खूब ! प्रेम को बहुत सुन्दर परिभाषित किया है...

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  31. पचासवीं पोस्ट के लिए और प्रेम की सुंदर व्याख्या के लिए बधाई स्वीकारें!

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  32. बेहतरीन|||प्रेम को बहुत ही सुन्दरता एवं गहनता से परिभाषित किया है..
    बहुत ही प्रभावशाली और हृदयस्पर्शी रचना....

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