१- वक्त सर पर बैठा
टुकड़े- टुकड़े कर जिन्दगी ले रहा
कर्ज़ तो चुकानी ही है
वक्त से जो ली है
हमने जिन्दगी उधार में
२- वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
हर सांस लेते सोचते हैं
नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..
३- पहाड़ो में अब बर्फ पिघलने लगा
घाटियों में फूल खिलने लगे
हवाओ में खुशबू फैलने लगी
नदियों में पानी बहने लगा
लेकिन बीते वक्त का दर्द
महकते फूलों में आज भी है
४- पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
मुझे पता भी न चला………..
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वक़्त से यूं वक़्त-बेवक्त की मुलाक़ात भी खूब रही. वक़्त के चारों टुकड़े अच्छे लगे.
ReplyDeleteवक्त यूँ ही हाथ से फिसलता जाता है ... अंतिम दोनों क्षणिकाएँ बहुत पसंद आयीं
ReplyDeleteवक़्त के साथ जिन्दगी के ये छोटे छोटे पल ...बेहद खूबसूरत लगे
ReplyDeleteसभी क्षणिकायें वक़्त को सजीव करती हुई.
ReplyDeletehttp://mitanigoth2.blogspot.com/
बेहतरीन क्षणिकाएं...... सुंदर शब्द पिरोये हैं.....
ReplyDeleteसमय कहाँ कब संग रहा है.......
ReplyDeleteकल 01/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteमेरे वक्त का एक एक कतरा गिरा, लेकिन मुझे पता भी नही चला।
गहन विचार, अच्छी प्रस्तुति
वक्त कब कैसे कितनी जल्दी निकल जाता है पता नही लगता.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना सुंदर पोस्ट.....
वक्त के दिन और रात ...फिसलते हैं फिसलते हैं ..कोई रोक नहीं पाता
ReplyDeleteवक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
ReplyDeleteहर सांस लेते सोचते हैं
नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..
...जीवन के शाश्वत सत्य की बहुत सटीक अभिव्यक्ति...सभी क्षणिकाएं बहुत ख़ूबसूरत...
सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहरेक पंक्ति बहुत मर्मस्पर्शी है। कविता अच्छी लगी ।
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
वाह सुन्दर क्षणिकाएं
ReplyDeleteसादर आभार...
वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
ReplyDeleteहर सांस लेते सोचते हैं
नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..वाह सुन्दर क्षणिकाएं
दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
ReplyDeleteलेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
मुझे पता भी न चला………..
बहुत सुन्दर एवं सटीक पंक्तियाँ! वक्त कब गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता और बीता हुआ वक़्त कभी लौटकर नहीं आता ! बेहद ख़ूबसूरत रचना!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
ReplyDeleteहर सांस लेते सोचते हैं
नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.... :):)
वक़्त के हर शै पर सब गुलाम
आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे
जाने कब बदले वक़्त का मिज़ाज
waah...
ReplyDeletewaqt ko yun ginna, kitna suhawna hai...
behad hi sundar rachit rachna...
वाह ! वक्त के मिजाज को परखती हुईं सुंदर पंक्तियाँ दिल को छू गयीं बहुत गहराई से उपजी पंक्तियाँ!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बेहतरीन क्षणिकाएं अर्थपूर्ण, अच्छी लगी ...
ReplyDeleteकर्ज़ तो चुकानी ही है
ReplyDeleteवक्त से जो ली है
हमने जिन्दगी उधार में.बहुत सुंदर.
४- पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
ReplyDeleteदबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
मुझे पता भी न चला…बेहतरीन भाव कणिकाएं .आभार .
लाजवाब ....बहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteलेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
ReplyDeleteमुझे पता भी न चला………..
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haan bilkul aisa hi hua......
सजीव लिखा अजहि चारों क्षणिकाओं में ... जीवन का अनुभव ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत एवं अर्थपूर्ण क्षणिकायें हैं सभी ! वक्त कब कैसे चुपचाप बीतता चला जाता है और वर्तमान के हर पल को अतीत बनाता चला जाता है पता ही नहीं चलता ! आपके ब्लॉग पर आकर अद्भुत सुखानुभूति हुई है ! साभार !
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर स्वागत है,/////
ReplyDeleteखुदा ने लिख रखे हैं 'वक्त' सबके नाम के, बस लिखा कितना किसके लिए.. यही नहीं पता. यही सच है, नहीं पता इसीलिए जिज्ञासा है..आनंद हैं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आपकी..
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है..
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
बहुत ही खुबसुरत.रचना ...
ReplyDeleteसभी लघु कविताएं गहन भावों को अभिव्यक्त कर रही हैं।
ReplyDeletesabhi kavitaayen bahut gahre bhaav liye hue hai, badhai.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर क्षणिकाएं!
ReplyDeleteजीवन का सारा अनुभव उंढेल दिया इन क्षणिकाओं में. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई.
सच ही तो है
ReplyDeleteवक़्त को भला कौन मुट्ठी में बाँध पाया है
वक्त की फ़ित्रत को सँवारती , सुलझाती हुई
बहुत अच्छी रचना ... !
अभिवादन .
पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
ReplyDeleteदबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
मुझे पता भी न चला………... nihshabd
बेहतरीन अभिव्यक्ति .....मेरा वक़्त कतरा कतरा गिरा और मुझे पता भी न चला ..बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
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