मुझे ये हक दे दो माँ..
तेरी कोख को मैंने है चुना
मुझे निराश न करना माँ
जीने का हक देकर मुझको
उपकार इतना तुम करना माँ
अहसास मुझे है तेरे दुख का
तू जमाने से न कभी डरना
कोई कुछ भी कहता रहे,पर
हिम्मत कभी न हारना
मुझे पता है मन ही मन
मुझे बहुत चाह्ती हो माँ
फिर क्यों कभी तुम इतनी
बेबस मज़बूर हो जाती ,माँ
मै तो तुम्हारी ही अक्स हूँ
कैसे मुझे मिटा सकती हो ?
मै तो हूँ धड़कन तुम्हारी माँ
मुझे कैसे भूला सकती हो ?
कभी समझना न बोझ मुझे
मैं सहारा बन कर आऊँगी
छँट जाएँगे दुख के बादल
जब खुशियाँ भर कर लाऊँगी
मेरे आ जाने से घर में माँ
कोई खर्च न होगा ज्यादा
तू निश्चित रहकर देखना
तेरी अजन्मी बेटी का ये वादा
बचा-कूचा जो तुम दोगी
वही खुशी-खुशी खा लूँगी
उतरन पहन सब दीदी के
भाग्य पर मैं इठलाऊँगी
मुझको भी जीने का हक है न ?
फिर मुझे ये हक दे दो माँ
ममता के आँचल में अपनी
मुझ को भी तुम ले लो माँ
*****************
बहुत मार्मिक रचना जो आज के हालात का सही चित्रण करती है..
ReplyDeleteकोमल विचार।
ReplyDeleteमुझको भी जीने का हक है न ?
ReplyDeleteफिर मुझे ये हक दे दो माँ
ममता के आँचल में अपनी
मुझ को भी तुम ले लो माँ... bhaut marmik rachna....
आमीन ... माँ की ममता सभी को मिले ...
ReplyDeleteनवरात्रों मे इससे अच्छी कामना कोई हो ही नहीं सकती।
ReplyDeleteसादर
आदर्श विचार हैं। प्रकर्तिक संतुलन के लिए आवश्यक अपील की है।
ReplyDeleteममता के आँचल में अपनी
ReplyDeleteमुझ को भी तुम ले लो माँ
भावमय करते शब्दों का संगम ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
sundar mamtamayee komal bhawanon ki aawaj man ko bahut achhi lagi... sundar prerak prastuti ke liya aabhar....
ReplyDeleteaapko spariwar NAVRATRI kee shubhkamnayen..
अहसास मुझे है तेरे दुख का
ReplyDeleteतू जमाने से न कभी डरना
कोई कुछ भी कहता रहे,पर
हिम्मत कभी न हारना
main tera garv hun, yaad rakhna maa
मार्मिक रचना ||
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत-बहुत बधाई ||
बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति। यहाँ भी देखियेगा……http://vandana-zindagi.blogspot.com
ReplyDeleteभावुक करती हुई रचना .....सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
ReplyDeleteचर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
यह पुकार हर कोई सुने ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमुझको भी जीने का हक है न ?
ReplyDeleteफिर मुझे ये हक दे दो माँ
ममता के आँचल में अपनी
मुझ को भी तुम ले लो माँ
मार्मिक भावपूर्ण रचना.
बेटी के मन से निकले ये आत्म उद्गार मार्मिक हैं।
ReplyDeleteबस, इतना ही तो चाहती हैं बेटियां।
मार्मिक।
ReplyDeleteबिटिया मारें पेट में, पड़वा मारें खेत
नैतिकता की आँख में, भौतिकता की रेत।
बेटी अपनी दृष्टी है...
ReplyDeleteबेटी है तो सृष्टी है....
सार्थक कविता....
सादर....
Dil ko chu lene wali rachna.
ReplyDeleteदिल में उतर गये शब्द शब्द!!
ReplyDeletebahut dil ko choone vali marmik prastuti.dekho humara durbhaagya duniya me aane ke liye apne haq ke liye hume kis tarah gidgidana pad raha hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आदरणीय महेश्वरी जी ..बहुत सुन्दर रचना काश ये बालिकाओं के विरोध करने वालों के कानों को भेद सके ..इतना सब कानून होने के बाद भी भ्रूण हत्या ...
ReplyDeleteबधाई आप को लाजबाब ...
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
मुझको भी जीने का हक है न ?
फिर मुझे ये हक दे दो माँ
ममता के आँचल में अपनी
मुझ को भी तुम ले लो माँ
आद महेश्वरी जी आपकी ये कविता लिए जा रही हूँ ...
ReplyDeleteयहाँ से एक पत्रिका निकलती है आगमन जो आजकल बेटियों की हत्या के विरोध में खूब लिख रही है
उसमें भेजने के लिए आप अपना पता दे दें .....
harkirathaqeer@gmail.com
आद महेश्वरी जी आपकी ये कविता लिए जा रही हूँ ...
ReplyDeleteयहाँ से एक पत्रिका निकलती है आगमन जो आजकल बेटियों की हत्या के विरोध में खूब लिख रही है
उसमें भेजने के लिए आप अपना पता दे दें .....
harkirathaqeer@gmail.com
तेरी मूरत के नीचे, बैठ करें हम भ्रष्टाचार ...
ReplyDeleteबहुत मार्मिक प्रस्तुति...मन को झकझोर देती है..
यहाँ भी कभी आयें :
http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/09/blog-post.html
Gahan....Saarthak vichar...
ReplyDeleteअहसास मुझे है तेरे दुख का
ReplyDeleteतू जमाने से न कभी डरना
कोई कुछ भी कहता रहे,पर
हिम्मत कभी न हारना
मार्मिक एवं सार्थक विचार
सभी मित्र बंधुओ को बहुत-बहुत धन्यवाद..मेरी भावनाओ को सहारा देने के लिए.. आशा है आगे भी आपके उत्साह बढ़ानेवाले सन्देश मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ..कन्या को शक्ति रूप में पूजा करने वाले देश में क्या नवरात्रों में पैरों की पूजा तक सीमित रहेगी कन्या की नियति...?? कितना दुखद है ये सब...
ReplyDeleteसादर !!!
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteमार्मिक रचना .गीत याद आगया -माँ मुझे अपने आँचल में छिपा लो ,गले से लगा लो ,कि और मेरा कोई नहीं ...
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteविडम्बना यह है कि पढ़े-लिखे घर के लोग भी ऐसे अपराधों में लिप्त हैं जहाँ एक जान के साथ खिलवाड़ करना कोई जुर्म नहीं माना जाता..
ReplyDeleteअशिक्षित तो यह नहीं पढ़ सकते पर शिक्षित लोग जो ऐसे काम कर रहे हैं, उनको यह ज़रूर पढ़ना चाहिए..
एक-एक शब्द.... अंतर्मन को उद्देलित करता....मार्मिक ....
ReplyDeleteबेस्ट ऑफ़ 2011
ReplyDeleteचर्चा-मंच 790
पर आपकी एक उत्कृष्ट रचना है |
charchamanch.blogspot.com