खामोशी |
एक दिन ..
खामोशी से ऊब कर मैंने पूछा
तुम इतनी खामोश कैसे रह लेती हो
तुम्हारा कोई संगी साथी नहीं है.?
उसने धीरे से कहा ..हैं..न..
उदासी और अकेलापन..
मैंने समझाते हुए फिर कहा..
तुम इनके साथ सारी जिन्दगी
कैसे गुजार सकती हो..?
बाहर निकलो, और दुनिया देखो
सब तरफ रिश्तों की भीड़ लगी हैं
अहसासों का बाजा़र सजा है
जो चाहो पा सकती हो……..
कुछ सोच … उसने पूछा
क्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???
********
भीड़ में खो जाती शान्ति।
ReplyDeleteबाहर देखो लेकिन बाजार छोड देना
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी रचना है।
ReplyDeleteकुछ सोच … उसने पूछा
ReplyDeleteक्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???
niruttar ker diya n
बेहतरीन कविता।
ReplyDelete-----
कल 18/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कुछ सोच … उसने पूछा
ReplyDeleteक्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???बहुत ही खूबसूरती से मन की उलझन को शब्दों में उतरा है आपने....
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
कुछ सोच … उसने पूछा
ReplyDeleteक्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???
******** bhaut hi miskil ka utar dena...
शान्ति और सूकून......ये दोनों अगर मिल पायें ......
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत लिखा है !
अंतत: खामोशी ने मौन कर दिया ... वाह बहुत खूब ।
ReplyDeleteख़ामोशी की अलग ही दुनिया है, अपनी दुनिया... सुन्दर रचना
ReplyDeleteजहाँ उदासी और अकेलापन है वहाँ भी क्या शांति और सुकून मिल सकता है?
ReplyDeleteवाह..दुनिया में सब कुछ खरीदा जा सकता है शांति और सुकून के सिवा क्यूँ के ये बाहर नहीं हमारे भीतर मिलता है...
ReplyDeleteनीरज
सोच को नयी दिशा देती हुई रचना..
ReplyDeleteसुकून की तलाश में ही खुद में सिमट रहा है आदमी।
ReplyDeleteसच दुनिया में शांति और सुकून कही से भी नहीं मिल सकता है यह हमारे भीतर ही है..........
ReplyDeleteक्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
ReplyDeleteभी मिल सकता हैं..???
बहुत सुंदर...सच है इस भीड़ में शांति और सुकून कहाँ .... ?
बाहर निकलो, और दुनिया देखो
ReplyDeleteसब तरफ रिश्तों की भीड़ लगी हैं
अहसासों का बाजा़र सजा है
जो चाहो पा सकती हो……..
sunder bhav pr uska prash bhi sahi hai
क्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???
saader
rachana
gahari soch liye apki kavita ...bahut badhiya
ReplyDeleteशांति की तलाश तो मानव का अंतर्मन करता ही रहेगा. बहुत सुंदर कविता.
ReplyDelete..उदासी और अकेलापन....
ReplyDeleteयही तो है जो वक्क्त-बेव्क्क्त साथ देने को तत्पर रहते है..
बहुत बढ़िया रचना...
आभार!
माहेश्वरी जी सुन्दर रचना ख़ामोशी .उदासी अकेलापन बहुत करीब है अपने हैं रंग बदल कर साथ देते रहते हैं सुकून शांति भी बाजार में सब कहाँ ?
ReplyDeleteधन्यवाद सुंदर कृति
भ्रमर ५
भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
खामोशी का यक्ष प्रश्न ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteक्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
ReplyDeleteभी मिल सकता हैं..???
...निशब्द कर दिया...बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..
बहुत ही सुन्दर कविता दीपावली की शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कुछ सोच … उसने पूछा
ReplyDeleteक्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???
.........gahan manobhavon ki sahaj-saral prastuti
.............ati sundar.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteमेरी बधाई स्वीकार करें ||
बिल्कुल सही..
ReplyDeleteजीवन के इस भागमभाग में सबके पास सबकुछ होते हुए भी वो उसका नहीं है, क्योंकि शुकून और शांति के बिना सबकुछ निरर्थक जो है।
sahi kaha rishton kee bheed mein sukoon kahaan milta. gahri abhivyakti, badhai.
ReplyDeleteaapki ye post padh kar ek bahut purana sher yaad aa gaya...
ReplyDeleteduniyan me kahin sacchi preet nahi..
aansuon se badh kar koi meet nahi..
chaahe ji bhar kar rulate hain aansu..
dukh me to sath nibhate hain aansu.
वाकई नहीं मिल पा रहा ....
ReplyDeleteरिश्तों में सब कुछ है ...गर्माहट ही नहीं है !
शुभकामनायें आपको !
सुकून शायद अपने आप तक पहुँच कर ही मिल सकता है....बहुत सुन्दर प्रश्न रखा है आपने
ReplyDeleteइन प्रश्नों में छुपे हैं गहन चिंतन. धन्यवाद.
ReplyDeleteमहेश्वरी जी.....आपकी कुछ रचनाएं मैंने पढ़ी....और और पढते जाने का ऐसा लालच पहले कभी नहीं हुआ.बहुत ही सुन्दर ब्लॉग के लिए आपको बधाई..मेरी कविता पर आपकी प्रशंसा अब और भली लगने लगी :-)आशा है आगे भी आपका मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिलता रहेगा.
ReplyDeleteशान्ति तो क्नामोश रह कर ही मिल सकती है ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सटीक चिंतन .. अच्छी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसकून के दाम बहुत ऊँचे हो गए हैं आजकल,लेकिन फिर भी इसकी तलाश कभी कम नहीं होगी ....सुंदर रचना !
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeleteBloggers Meet Weekly 14 ke liye chayanit ki gayee hai .
अहसासों का बाजा़र सजा है
ReplyDeleteजो चाहो पा सकती हो..
कुछ सोच , उसने पूछा
क्या मुझे वहाँ शान्ति और सूकून
भी मिल सकता हैं..???
बहुत अच्छी कविता।
शांति और सुकून को तो अपने भीतर ही तलाशना होगा।
चुप तुम रहो, चुप हम रहें ...
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बेटी बचाओ - दीवाली मनाओ.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत लिखा है !
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