१- वक्त सर पर बैठा
टुकड़े- टुकड़े कर जिन्दगी ले रहा
कर्ज़ तो चुकानी ही है
वक्त से जो ली है
हमने जिन्दगी उधार में
२- वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
हर सांस लेते सोचते हैं
नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..
३- पहाड़ो में अब बर्फ पिघलने लगा
घाटियों में फूल खिलने लगे
हवाओ में खुशबू फैलने लगी
नदियों में पानी बहने लगा
लेकिन बीते वक्त का दर्द
महकते फूलों में आज भी है
४- पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
मुझे पता भी न चला………..
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