वो शाम .....
हरे भरे लहलहाते गेहूँ के खेत ,उन खेतों के
बीच थोड़ी सी चौड़ी पगडंडीनुमा कच्ची सड़क जो मुझे गाँव की याद दिला रही थी | इस
खुबसूरत सी जगह जिसे बंजारावाला नाम से जाना जाता है |
ये
जगह मेरे लिए एकदम नयी थी घर ढूढने में मुझे परेशानी न हो सोच कर अतुल जी और उनकी
बहन रेखा मुझे सामने ही मोड़ पर खड़े मिले | मैं करीब डेढ़ दो साल बाद अतुल जी के
परिवार से मिलने आरही थी ,मन में थोड़ी झिझक थी मगर वही सरलता वही अपनापन ,कुछ भी न
बदला था | मेरा इस परिवार से मिलना भी एक
अजब सा इत्तेफाक था |एक बार किसी मित्र के पुस्तक विमोचन में मै गई हुई थी वहां बगल में बैठी हुई एक महिला मेरे नजदीक
आकर बोली ‘तुम महेश्वरी हो न?’ मैंने कहा ‘हाँ ‘ उन्होंने फिर
पूछा ‘तुम एन .सी.सी. में थी ’? मैंने कहा
‘हाँ ‘ फिर पूछा ‘तुम लेफ्टी हो न?’मैंने
कहा ‘ हाँ ‘ अब मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा |थोड़ी देर तक तो मैंने उन्हें
ध्यान से देखा,अब प्रश्न पूछने की मेरी
बारी थी मैंने पूछा ‘आप मुझे कैसे जानती हो ’? मुस्काते हुए वो बोली ‘मै रेखा
शर्मा हूँ... मै भी तुम्हारे साथ एम.के.पी में पढा करती थी’ | अरे बाप रे !ये
तो वर्षो पुरानी बात है जब मै इंटरमिडिएट या बी.ए. में रही होंगी |
मै समझ
नहीं पा रही थी कि बिना किसी संबंध या किसी रिश्ते के एक साधारण से इंसान को कई सालो साल
तक कैसे याद रख सकता है |ये तो मेरे लिए एक पहेली से कुछ बड़ कर ही थी | कुछ
अलग सा सुखद अहसास सा जाग उठा मन में | कुछ इधर उधर की बात करते हुए ही रेखा जी ने
मुझे बताया कि अतुल जी उनके भाई है और रंजना उनकी बहन है |वैसे अतुल जी को मै
नवाभिव्यक्ति में काव्य गोष्ठी के दौरान मिली थी ,मगर उनसे बात नहीं हो पाती थी बस इतना ही जानती थी उन्हें
जन कवि कहा जाता है उनके गाए गीत लोगो को अन्दर तक झकझोर देते है |मै
उनसे कम, उनके गीतों से ज्यादा मिली हूँ
बस धीरे-धीरे
मै अनायास ही मै इस परिवार से घुलने मिलने लगी,इन्होने भी मुझे बहुत मान
सम्मान और प्यार दिया जैसे मै उनके परिवार की ही कोई हिस्सा थी | धीरे धीरे मुझे पता
चला कि ये साधारण सा दिखने वाला परिवार वास्तव में असाधारण पृष्ट भूमि को संजोये
हुए है ये तो एक महान जन कवि स्वतंत्रा संग्राम
के सेनानी श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’ जी के पुत्र और पुत्रियाँ है | इस परिवार से जुड़ कर मै अभिभूत हुई सच में मेरे लिए ये बहुत ही गर्व की बात थी |
अब उनके घर में होने वाले हर
साहित्यिक चर्चा, काव्य गोष्ठी में प्राय मै उपस्थित रहने लगी | इस परिवार
से मुझे बहुत कुछ सिखाने को मिला | अतुल जी मुझे हर बार प्रोत्साहित करते रहे
है कहानी हो या कविता मै हर बार कुछ नया
ही ले जाने की कोशिश करती रहती ,हर बार मिलाने पर यही पूछते “और नया क्या लिखा?’
होली के आस पास की ही बात है इस बार मै
होली पर एक नयी कविता लेकर पहुंची थी |
सभी ने अपनी अपनी रचनाएं सुनाई अतुल जी का नया गीत ‘बंजारा मन को छू गयी ,रंजना ने
बहुत ही सुन्दर होली गीत सुनायी ,अब मेरी बारी थी मैंने भी होली पर अपनी कविता| कविता
सुनाने के बाद अतुल जी ने अचानक मुझसे कहा
इससे गा कर सुनाइए |मै थोड़ी घबरा गई क्यों कि कविता पाठ तो बहुत बार किया पर गाकर
कभी नहीं ,हाँ अन्दर से मन जरुर गाने को करता था पर मुझे अपनी आव़ाज पर भरोसा नहीं
था | मेरे झिझकने पर वे मेरी दो पंक्तियों को स्वर देकर गाने लगे, उनके गाते ही
मेरी कविता स्वत:ही गीत बन कर खिल उठी | मै
बहुत खुश थी और उत्साहित भी मैंने मोबाइल में उस धुन को रिकार्ड कर लिया और वादा
किया की घर जाकर प्रेक्टिस करुँगी और जल्दी ही गा कर सुनाउंगी |
बस फिर क्या था एक धुन सी मुझे लग गयी और
मै दिन रात गाने की प्रेक्टिस करने लगी तीन चार दिन के अथक प्रयास से मैंने उस
कविता को गीत के रंगो में ढाल दिया, सच ही
कहा था किसी ने सिखाने की कोई उम्र नहीं होती| इतना ही नहीं एक जगह होली के कार्यक्रम
में मैंने उसे बेझिझक हो गाकर भी सुना दिया |ये बात जब मैंने रेखा और अतुल जी को
बताई तो वे लोग बहुत खुश हुए और बोले ‘ कब सूना रही हो’? वास्तव में
ये पल मेरी जिंदगी का एक अलग किन्तु सुखद सा अनुभव था क्यों
कि मंच में समूह गान तो बहुत गाया था
परन्तु एकल गीत पहली बार | |सच
कहूँ तो ये अतुल जी की प्रेरणा और शुभकामनाओं का ही प्रतिफल था |होली से पूर्व की उनके
घर की वो
शाम मेरे जीवन की लिए एक नयी सुबह थी .....
मरे पास शब्द नहीं है ...बहुत बहुत’ धन्यवाद
अतुल जी रेखा जी और रंजना जी मेरे जीवन
में रंग भरने के लिए आभार
शुभकामनाओं सहित
महेश्वरी कनेरी
७९ /१ नेशविला रोड देहरादून