मन में उठने वाले हर भाव हर अह्सास को शब्दों में बाँध, उन्हें सार्थक अर्थों में पिरोकर एक नया आयाम देना चाह्ती हूँ । भावनाओ के इस सफर में मुझे कदम-कदम पर सहयोगी मित्रों की आवश्यकता होगी.. आपके हर सुझाव मेरा मार्ग दर्शन करेंगे...
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Sunday, 29 April 2012
Saturday, 14 April 2012
एक आलौकिक अनुभूति
एक आलौकिक अनुभूति |
कभी मंदिर में ढ़ूँढ़ा
कभी मस्जिद में ,
कभी चर्च में देखा ,
कभी गुरुद्वारे में
माथा टेका
दर-दर भटकती रही
पत्थरों को पूजती रही
मंदिरों में धंटी बजा बजा
पुकारती रही..
“कहाँ हो ? कहाँ हो प्रभु तुम ?
मुझे तुम से कुछ कहना है “
मैं रोती रही , बिलखती रही
और, पुकारती रही..
पर कोई असर नहीं..
फिर हार थक ,आँखें मूंदे
हताश हो बैठ गई
तभी अचानक एक आवाज आई….
“कहो मुझसे क्या कहना है”
मैंने इधर –उधर देखा
वहाँ कोई न था
मैं फिर बोल उठी..
“कहाँ हो प्रभु…. कहाँ हो तुम ?
मुझे दर्शन दो… प्रभु”
फिर से आवाज आई….
“मैं यही हूँ ..तुम्हारे पास
तुम्हारी धड़कन में”
मैं समझ न पाई
मैंने अपने ह्रदय में हाथ रखा
वो धड़क रहा था
तभी मुझे एक आलौकिक अनुभूति का
आभास होने लगा
बस उसी क्षण मैं समझ गई
प्रभु मुझ में ,मेरी धड़कन में है
और मैं दर-दर भटकती रही
ये सुखद अहसास मेरे लिए अद्भुत था
मैंने स्वयं को बहुत हलका पाया
मेरा अब सारा संशय समाप्त हो चुका था
मन स्थिर और शान्त हो गया
सच ! कितना अद्भुत था वो क्षण
और वो आलौकिक अनुभूति ……
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महेश्वरी कनेरी
Tuesday, 10 April 2012
“प्रेम” क्या है ?
“प्रेम” जो सिर्फ ढाई अक्षर के शब्दों से मिल कर बना है । ये शब्द जितना छोटा है उतनी ही गहराई लिए हुए है ,इसके अनेक रूप है अनेक रंग हैं । ये इतना विस्तृत है कि सारा संसार इसमें समाया हुआ है। इस विषय पर कई विद्वानों ने बहुत कुछ कहा है बहुत कुछ लिखा भी है, सारा साहित्य इससे भरा पड़ा है ।फिर भी आज मैं अपनी इस पचासवीं पोस्ट के लिये इसी विषय पर कुछ लिखने का दुस्साहस कर रही हूँ । ये मेरी छोटी सी कोशिश होगी.. इसे समझने के लिए इसे जानने के लिए कि वास्तव में “प्रेम” क्या है ?.......
“प्रेम” क्या है ?.......
प्रेम समर्पण है,
भावों का अर्पण है
सिर्फ न्योछावर है ।
प्रेम सिर्फ प्रेम के लिए है
न कुछ माँगता है न देता है ,
वह तो अपने में ही पूर्ण
और पर्याप्त है
प्रेम में कोई आडम्बर नहीं,
कोई आवरण नहीं
प्रेम सिर्फ आनंद और उन्माद नहीं
एक करुण दर्द भी है,
जिसे स्वेच्छा और प्रसन्नता से
और उसे अपना कर
स्वयं को पूर्ण बना सको ।
प्रेम में स्वयं को इतना पिघला दो
कि वह झरना बन बह निकले
उसमें से निकता संगीत ही
निश्छल प्रेम की अमृत धारा होगी
जो स्वयं ही भीतर धीरे-धीरे प्रवाहित हो कर
सब कुछ अपने अंदर समा लेगी
बस…..यही प्रेम है……
हाँ यही तो प्रेम है
शाश्वत प्रेम ……
Friday, 6 April 2012
डाली
डाली
मैं तो सपाट सीधी सी एक डाली थी
जो न झुकी, न टूटी थी कभी
उम्र भी न झुका सकी थी मुझे
आसमां को छूने की जिद में
ऊपर ही ऊपर बढ़ती जाती थी
लेकिन क्या कहूँ…..
आज हार गई हूँ मैं
देखो मुझे..
मैं तो
अपने ही फूलों के
बोझ से
झुकी जारही हूँ…..टूटी जारही हूँ….
लेकिन ये हार ही मेरी जीत है
क्योंकि झुकना और टूटना
मेरी विनम्रता का द्योतक है
मेरी खुशी है
मेरा मान सम्मान है
यही मेरे जीवन का सार है
महेश्वरी कनेरी
Wednesday, 4 April 2012
अभिव्यंजना का जन्मदिन
अभिव्यंजना का जन्मदिन |
आज मेरी अभिव्यंजना का जन्मदिन है । वह आज पूरे एक वर्ष की हो गई है।पिछले वर्ष ४ अप्रेल २०११ को ब्लांग जगत में मैंने उसे जन्म दिया और बड़े प्यार से उसका नाम रखा “अभिव्यंजना” ।आप सब के प्यार दुलार स्नेह और मार्ग दर्शन से वह पोषित और पल्लवित होती रही और बढ़ती रही….अपने दुख-सुख बाँटती रही और चलती रही । हर पल नये अहसासों अनुभवों से जुड़ते हुए और् सुधी जनों के संगत में रहते हुए उसे एक वर्ष कब पूरा हो गया पता ही न चला । समय भी कैसे बीत जाता है….
आप को पता है एक बार मेरी अभिव्यंजना कहीं खो गई थी मैं समझ नपाई क्या करूँ मुझे लगा मेरा सब कुछ खत्म होगया । हार कर मैंने यशवन्त को अपना दर्द सुनाया,उसने मेरी काफी मदद की पर जब दो दिन तक न मिली तो , यशवन्त ने श्री पाबला जी के थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी और मुझे उनसे पर्सनली मिलवा भी दिया । पाबला को माज़रा समझने में देर न लगी और उन्होंने कुछ ही समय में उसे ढूँढ़कर मेरे सुपुर्द कर दिया । मै आप दोनों की ही बहुत शुक्रगुजा़र हूँ ।
मैं आशा करती हूँ कि आगे भी मेरी अभिव्यंजना को इसी तरह प्यार दुलार और मार्ग दर्शन मिलता रहेगा । वह अपने जन्मदिन पर अपने सभी मित्र-बंघुओ से बहुत सारी शुभकामनाओं और स्नेह की कामना करती है….आप सभी का पुन: आभार…
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महेश्वरी कनेरी
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