मन में उठने वाले हर भाव हर अह्सास को शब्दों में बाँध, उन्हें सार्थक अर्थों में पिरोकर एक नया आयाम देना चाह्ती हूँ । भावनाओ के इस सफर में मुझे कदम-कदम पर सहयोगी मित्रों की आवश्यकता होगी.. आपके हर सुझाव मेरा मार्ग दर्शन करेंगे...
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Friday, 17 February 2012
Friday, 10 February 2012
कविता
कविता
अविरल कल-कल
भावों की बहती सरिता
कभी युगों का कभी
मन का दर्पण कविता
सुखद अनुभूति की
सतरंगी संसार कविता
कभी भूखे की रोटी
कभी तलवार की धार कविता
कभी सखी ,कभी बेटी सी
मुखरित प्यार कविता
कभी जीवन का आधार
कभी पतवार कविता
सदियों से गुंजित जग में
जन-जन की आवाज़ कविता
मन में उठते भावों
की परवाज कविता
ह्रदय भूमि में उपजी
लहलहाती गाती कविता
पल्लवित पुष्पित होकर
बढ़ती जाती कविता
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महेश्वरी कनेरी
Saturday, 4 February 2012
ये पत्र एक दुखी माँ के ह्रदय की पुकार है ,उन सभी बेटों के लिए जो अपने बूढ़े माँ बाप को अकेला छोड़ कर विदेश चले जाते हैं और पीछे मुड़ कर देखने की भी आवश्यकता नही समझते ……..
एक पत्र बेटे के नाम
बेटा ! घर कब आओगे ?
तुम्हें देखे बरस बीत गए हैं
आँखें भी पथरा गई अब तो
बोलो कब तक आओगे ?
घर आँगन सब सूना सूना है
बोल सुनने को तरस गये हैं
बेटा घर कब आओगे ?..........
पैरों से लाचार तेरे बाबा
सूनी आँखों से बस
रस्ता देखते रहते है
मुख से कुछ न कहते हैं
जीवन संध्या भी ढल रही अब तो
न जाने कब आँख लग जाए
बेटा घर कब आओगे ?........
तुम्हारे जाने के बाद यहाँ
कितना कुछ बदल गया है
हरिया, जग्गू रमिया भी
सभी शहर चले गये हैं
घर गाँव सब बिरान हो गए हैं
खेत खलिहान सब उजड़ गए हैं
अब तो यहाँ गिनती के बस
बूढ़े ही बूढ़े रह गए हैं
बेटा ! घर कब आओगे ?
तुम्हारे जाने के बाद यहाँ
न कोयल कूकती है
न घुघुती बोलती है
न होली न दिवाली लगती है
बसंत भी पतझड़ सा लगता है
आँखों के आँसू भी सूख गए हैं
तुम्हें देखे बरस बीत गए हैं ।
बेटा ! घर कब आओगे ?
बोलो कब तक आओगे ?
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महेश्वरी कनेरी
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