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Friday, 17 February 2012

खाली पन्ने


खाली पन्ने
बहते अश्रु जल ने शायद सब अक्षर मिटा दिए हैं
तभी तो जीवन की किताब के कुछ पन्ने खाली रह गए हैं
इन खाली पन्नो में फिर से कुछ लिख तो लूँ
लेकिन वो जज्बात वो अहसास कहाँ से लाऊँ
जिसे मैं आरंभ समझती हूँ
 वही अंत हो जाता है 
पन्ना फिर खाली का खाली रह जाता है
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महेश्वरी कनेरी

Friday, 10 February 2012

कविता

कविता
अविरल कल-कल
भावों की बहती सरिता
कभी युगों का कभी
मन का दर्पण कविता

सुखद अनुभूति की
सतरंगी संसार कविता
कभी भूखे की रोटी
कभी तलवार की धार कविता

कभी सखी ,कभी बेटी सी
मुखरित प्यार कविता
कभी जीवन का आधार
कभी पतवार कविता

सदियों से गुंजित जग में
जन-जन की आवाज़ कविता
मन में उठते भावों
की परवाज कविता

ह्रदय भूमि में उपजी
लहलहाती गाती कविता
पल्लवित पुष्पित होकर
बढ़ती  जाती कविता
******
महेश्वरी कनेरी


Saturday, 4 February 2012


 ये पत्र एक दुखी माँ के ह्रदय की पुकार है ,उन सभी बेटों के लिए  जो अपने बूढ़े माँ बाप को अकेला छोड़ कर विदेश चले जाते हैं और पीछे मुड़ कर देखने की भी आवश्यकता नही समझते ……..

एक पत्र बेटे के नाम
बेटा ! घर कब आओगे ?
तुम्हें देखे बरस बीत गए हैं
आँखें भी पथरा गई अब तो
बोलो कब तक आओगे ?
घर आँगन सब सूना सूना है
बोल सुनने को तरस गये हैं
बेटा घर कब आओगे ?..........
पैरों से लाचार तेरे बाबा
सूनी आँखों से बस
रस्ता देखते रहते है
मुख से कुछ न कहते हैं
जीवन संध्या भी ढल रही अब तो
न जाने कब आँख लग जाए
बेटा घर कब आओगे ?........
तुम्हारे जाने के बाद यहाँ
कितना कुछ बदल गया है
हरिया, जग्गू रमिया भी
सभी शहर चले गये हैं
घर गाँव सब बिरान हो गए हैं
खेत खलिहान सब उजड़ गए हैं
अब तो यहाँ गिनती के बस
बूढ़े ही बूढ़े रह गए हैं
बेटा ! घर कब आओगे ?
तुम्हारे जाने के बाद यहाँ
न कोयल कूकती है
 न घुघुती बोलती है
न होली न दिवाली लगती है
बसंत भी पतझड़ सा लगता है
आँखों के आँसू भी सूख गए हैं
तुम्हें देखे बरस बीत गए हैं ।
बेटा ! घर कब आओगे ?
बोलो कब तक आओगे ?
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महेश्वरी कनेरी