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Wednesday 28 May 2014

इंसान का कद




 इंसान का कद

इंसान का कद आज

इतना ऊँचा हो गया

कि इंसानियत उसमें

अब दिखती नहीं

दिल इतना छोटा होगया

कि भावनाएं उसमें अब

 टिक पाती नहीं

जिन्दगी कागज़ के फूलों सी

सजी संवरी दिखती तो है

पर प्रेम, प्यार और संवेदनाओ

की वहाँ खुशबू नहीं

चकाचौंध भरी दुनिया की

 इस भीड़ में इतना आगे

 निकल गया इंसान

कि अपनों के आँसू

अब उसे दिखते नहीं

आसमां को छूने की जिद्द में

पैर ज़मी पर टिकते नहीं

सिवा अपने, छोटे-छोटे

कीड़े मकोड़े से दिखते सभी

कुचल कर उन्हें, आगे बढ़ो

यही सभ्य समाज की

नियति सी बन गई अब

ऐसा कद भी किस काम का

जिससे माँ का आँचल ही

 छोटा पड़ जाए

और पिता गर्व से उन

कंधों को थपथपा भी न पाए

जिस पर बैठ,वह

बड़ा हुआ था कभी

ऐसा कद भी किस काम का…


*****************
महेश्वरी कनेरी

22 comments:

  1. यही सच है....क्या करें..
    बहुत अच्छी और सच्ची अभिव्यक्ति...

    सादर
    अनु

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  2. आधुनिकता की आपाधापी में जीवन के आदर्श तिरोहित होते जा रहे हैं , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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  3. आज के परिवेश का सच ..... दुखद है

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  4. इन्सान अब अपना पीठ खुद थप थपाने में गर्व महसूस करने लगे |
    new post ग्रीष्म ऋतू !

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  5. माहेश्वरी जी , आदमी नामक पशु (शरीर से हम सब पशु हैं ) अपना क़द इतना बढ़ा लिया है कि इंसानियत नामक चीज़ उसके सामने बड़ी तुच्छ हो गई है !

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  6. जैसे पेड़ खजूर...सुन्दर भाव...

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  7. कल 30/मई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  8. bahut sahi kaha aapne
    badhai
    rachana

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  9. काफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |

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  10. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  11. सच्चाई को उकेरती खूबसूरत प्रस्तुति

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  12. जमीन से जुड़े रहना बहुत जरुरी है
    बहुत ही सुन्दर, प्रभावी रचना
    सादर !

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  13. इंसान आज अपने से आगे किसी को नहीं देखना चाहता ...
    बदलव की जरूरत है आज ...

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  14. सुन्दर प्रस्तुति !
    आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !

    मेरे ब्लॉग की नवीनतम रचनाओ को पढ़े और अगर आपको सही लगे तो फॉलोवर बनकर कमेंट के रूप में सुझाव देकर हमारा मार्दर्शन करें !

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  15. बिल्‍कुल सच्‍ची अभिव्‍‍यक्ति

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  16. भावपूर्ण ……

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  17. सुन्दर और सार्थक लिखा
    मन को छूता हुआ
    सादर---


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  18. आज के यथार्थ की बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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