abhivainjana


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Wednesday, 28 May 2014

इंसान का कद




 इंसान का कद

इंसान का कद आज

इतना ऊँचा हो गया

कि इंसानियत उसमें

अब दिखती नहीं

दिल इतना छोटा होगया

कि भावनाएं उसमें अब

 टिक पाती नहीं

जिन्दगी कागज़ के फूलों सी

सजी संवरी दिखती तो है

पर प्रेम, प्यार और संवेदनाओ

की वहाँ खुशबू नहीं

चकाचौंध भरी दुनिया की

 इस भीड़ में इतना आगे

 निकल गया इंसान

कि अपनों के आँसू

अब उसे दिखते नहीं

आसमां को छूने की जिद्द में

पैर ज़मी पर टिकते नहीं

सिवा अपने, छोटे-छोटे

कीड़े मकोड़े से दिखते सभी

कुचल कर उन्हें, आगे बढ़ो

यही सभ्य समाज की

नियति सी बन गई अब

ऐसा कद भी किस काम का

जिससे माँ का आँचल ही

 छोटा पड़ जाए

और पिता गर्व से उन

कंधों को थपथपा भी न पाए

जिस पर बैठ,वह

बड़ा हुआ था कभी

ऐसा कद भी किस काम का…


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महेश्वरी कनेरी

Wednesday, 14 May 2014

गौरैया

गौरैया
माँ ! आँगन में अपने
अब क्यों नहीं आती गौरैया
शाम सवेरे चीं चीं करती
अब क्यों नहीं गाती गौरैया
फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती
पास जाओ तो उड़ जाती
कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर
अब क्यों नहीं दिखती गौरैया
माँ बतला दो मुझ को
कहाँ खोगई  गौरैया ?

विकास के इस दौर में,बेटा !
मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा
काटे पेड़ और जंगल सारे
 और छीना पंछी का रैन बसेरा
रुठ गई हम से अब हरियाली
पत्थर का बन गया शहर
अब आँगन बचा चौबारा
सब तरफ प्रदूषण का कहर
कीट पतंगे चुग्गा दाना
बिन पानी सूखे ताल तलैया
क्या खाएगी कहाँ रहेगी
बेचारी नन्हीं सी गौरैया
भीषण प्रदूषण के कारण
लुप्त हो रहे दुर्लभ प्राणी
दिखेगी कैसे अब आँगन में
बेटा ! नन्हीं प्यारी गौरैया 

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महेश्वरी कनेरी

Saturday, 3 May 2014

दीवार


दीवार

आसमां  में कोई सरहद नहीं

फिर धरती को क्यों बाँटा है

ये तो हम और तुम हैं ,जिन्होंने

दिलों को भी दीवार से पाटा है

कहीं नफ़्रत की तो कहीं अहं की

आओ इस दीवार को गिरा कर देखें

कि दिल कितना बड़ा होता है 

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महेश्वरी कनेरी