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Wednesday, 23 March 2016

होली पर … (कह मुकरी )

होली पर … (कह मुकरी )  शुभ कामनाओ सहित
(१)    घर घर में उल्लास जगाता
         प्रेम रंग चुपके से लाता
         बरबस करता रहे ढिढोली
         क्या सखि साजन..?
         ना सखी होली
  (२)    हर फागुन में वो आजाता
        प्रेम फाग की अलख जगाता
        महल बस्ति हो या फिर खोली
        रंग रंग उसकी हम जोली
        क्या सखि साजन..?
        ना सखी होली

        महेश्वरी कनेरी
************************




5 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2291 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. महल बस्ति हो या फिर खोली
    रंग रंग उसकी हम जोली..
    ....जहाँ नज़र गयी वहीँ रंग ही रंग ...

    बहुत सुन्दर ...
    होली की शुभकामना!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-03-2016) को "हुई होलिका ख़ाक" (चर्चा अंक - 2292) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    रंगों के महापर्व होली की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. रंगोत्सव के पावन पर्व पर हर्दिक शुभकामनायें...सार्थक प्रस्तुति...

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  5. महेश्वरी जी आपने होली के पावन पर्व पर आपने यह रोचक लेख लिखा है...ऐसे रोचक लेखों को अब आप शब्दनगरी पर भी लिख सकतें हैं....

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