होली पर … (कह मुकरी
) शुभ कामनाओ सहित
(१) घर
घर में उल्लास जगाता
प्रेम रंग चुपके से लाता
बरबस करता रहे ढिढोली
क्या सखि साजन..?
ना सखी होली
(२) हर
फागुन में वो आजाता
प्रेम
फाग की अलख जगाता
महल बस्ति हो या फिर खोली
रंग रंग उसकी हम जोली
क्या
सखि साजन..?
ना सखी होली
महेश्वरी कनेरी
************************
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2291 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
महल बस्ति हो या फिर खोली
ReplyDeleteरंग रंग उसकी हम जोली..
....जहाँ नज़र गयी वहीँ रंग ही रंग ...
बहुत सुन्दर ...
होली की शुभकामना!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-03-2016) को "हुई होलिका ख़ाक" (चर्चा अंक - 2292) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
रंगों के महापर्व होली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रंगोत्सव के पावन पर्व पर हर्दिक शुभकामनायें...सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteमहेश्वरी जी आपने होली के पावन पर्व पर आपने यह रोचक लेख लिखा है...ऐसे रोचक लेखों को अब आप शब्दनगरी पर भी लिख सकतें हैं....
ReplyDelete