abhivainjana


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Thursday, 14 March 2013

देव आशीष


देव आशीष
अचरज़ भरे खोल नयन,
टुकुर टुकुर देख वो मुस्काया
उतर कर नन्हा चाँद जैसे
 गोदी में मेरे आ समाया
झूम झूमकर ,चूम रहा
 मस्तक पवन भी इठलाके
भोर ने भी किया स्वागत
 किरणों की थाल सजाके
सरस अनुभूति का
 अहसास जगा विहल मन में
खिल उठा नवल धूप
 आज फिर मेरे आँगन में
धन्य हुई ,नत मस्तक हूँ
 पाकर ये आशीष तुम्हारा
कोटि-कोटि नमन प्रभु ,
सब में बसा स्वरूप तुम्हारा
****************
महेश्वरी कनेरी
मित्रों आज बहुत समय बाद वापस ब्लांग जगत में लौटकर आई हूँ..कारण .मेरे घर एक नन्हा सा मेहमान मेरा पोता आया है. जिसने मेरे वक्त को अपने ही इर्द गिर्द
चारों तरफ घेर कर रख दिया..चाह कर भी समय निकाल नहीं पारही हूँ.शायद यही है मोह माया का बधंन.....लेकिन ये बंधन भी बहुत प्यारा लगता है..