abhivainjana


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Tuesday 31 July 2012

मेरे जीवन की एक साँझ

 एक साँझ

सूरज ,अपनी स्वणिम किरणों को समेटे
पश्चिम दिशा की ओर धीरे- धीरे ढलता
उम्मीदों का सूर्ख रंग नभ में बिखेरे
मानो कह रहा हो …
“कल मैं फिर आऊँगा”
चौंच में दाना दबाए,घोंसले की ओर उड़ते पंछी
दूर से आती किसी चरवाह की
 बाँसुरी की मधुर धुन
घर वापस आते जानवरों का झुंड
गले की बजती घंटी की टुन- टुन
दुल्हन की तरह सजी साँझ
शर्माती सकुचाती
रात्रि के बाँहो में सिमटने को व्याकुल
प्रियतम के राह में बिछती
दीए की लौ और घनी होती जाती
ढलती संध्या की इस अनुपम छटा को
 देखने चाँद और तारे..भी
अपना मोह न छोड़ पाए
और उन्हें निहारते रहे
**************
ढलती संध्या के इस अनुपम सुन्दरता को देखते हुए सोचती हूँ कि क्या जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दर होती  है…….?
                                                                                                         महेश्वरी कनेरी                                                                                             

36 comments:

  1. मन खुश तो हर सांझ सुकून देती है

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  2. जीवन संध्या भी सुन्दर स्वर्णिम क्यूँ न होगी....
    अच्छाई और सच्चाई व्यर्थ नहीं जाती.....

    बहुत प्यारी सी रचना...
    सादर
    अनु

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  3. हर पल एक नया एहसास कराता है बहुत सुन्दर रचना है!

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  4. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार
    कल 01/08/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' तुझको चलना होगा ''

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  5. ढलती संध्या की इस अनुपम छटा को
    देखने चाँद और तारे..भी
    अपना मोह न छोड़ पाए
    और उन्हें निहारते रहे
    अपना मोह छोड़ पाए ,तो जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दर होती है .... :)

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. सान्ध्य वेला का सुंदर वर्णन और काव्याभिव्यक्ति.

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  8. बहुत बढ़िया आंटी


    सादर

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  9. काश सबकी ही साँझ इतनी लालिमामयी हो, नींद में सुख तो तभी मिलेगा।

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  10. काश सबकी जीवन संध्या ऐसी ही खुबसूरत हो !
    सादर !

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  11. सूरज ,अपनी स्वणिम किरणों को समेटे
    पूरव दिशा की ओर धीरे- धीरे ढलता
    यदि अन्यथा न लें तो कहूँगा कि थोड़ी सी त्रुटी रह गयी महेश्वरी दी, सूरज तो पश्चिम में ढलता है, हां उसकी लालिमा पूरब में अधिक दिखाई आकर्षक दिखाई देती है। शायद आपका आशय भी यही होगा।
    जीवन सन्ध्या की चिंता अवश्य सताने लगी है....... सुन्दर कविता। आभार !!

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  12. खूबसूरत सोच जीवन की संध्या भी खूबसूरत बना देती है ... सुंदर रचना

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  13. जी हाँ जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दरहोगी... बहुत सुन्दर भाव... आभार

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  14. बहुत सुंदर ..... जीवन में यकीनन कई सारे रंग हैं... कौन क्या कह सकता है ...

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  15. बहुत सुन्दर रचना |रंगों से भरी |
    आशा

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  16. काश जीवन संध्या इतनी ही खूबसूरत हो ....

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  17. हाँ माहेश्वरी कनेरी जी जीवन की सांझ भी इतनी ही सुन्दर होती है बा -शर्ते संतोष का धन आदमी के पास हो जीवन हाय माया में न कटा हो ,लो प्रोफाइल जिया हो .
    सांझ का शब्द चित्र किसी चित्रकार की कूंची और कमेंटेटर की वाक् -विदग्धता को मात दे गया .
    कृपया सकुचाती कर लें-
    घर वापस आते जानवरों का झुंड
    गले की बजती घंटी की टुन- टुन
    दुल्हन की तरह सजी साँझ
    शर्माती "सुचुकाती"

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  18. बहुत खूब !

    जीवन की ढलती संध्या
    जरूर सुंदर होती होगी
    बस लौट के कल नहीं
    आउंगा ही तो कहती होगी !

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  19. नहीं सुशील जी, जीवनकी अंतिम संध्या भी यही कहती है कि लौट के फिर आना है..बल्कि न आना न जाना बस रूप बदलना है..

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  20. ढलती संध्या के इस अनुपम सुन्दरता को देखते हुए सोचती हूँ कि क्या जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दर होती है…….?

    ....हमारी सोच ही जीवन संध्या को मनोरम बना सकती है...संध्या का बहुत सुन्दर और मनोरम चित्रण...

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  21. प्रकृति ही प्रेरणा देती है...
    जब ढलती संध्या इतनी मनोरम है तो जीवन संध्या क्यों न होगी...

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  22. खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  23. आदरणीया,
    पूरव दिशा की ओर धीरे- धीरे ढलता
    इस पंक्ति पर पुन: गौर करने का कष्ट करें.
    साँध्य का मनोरम चित्रण. जीवन की साँझ भी निश्चय ही ऐसी ही मनोरम होती होगी.

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  24. साँध्य का मनोरम खूबशूरत चित्रण. बधाई

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  25. .

    आदरणीया महेश्वरी कनेरी जी ,
    सादर प्रणाम !

    कभी भोर , कभी सांझ के रंगों में रंगी आपकी काव्य रचनाएं पढ़ कर मन को शांति मिलती है …

    जिसने जीवन को सुंदरता के साथ जिया है … उसके लिए हर घड़ी-वेला, हर क्षण सुंदर ही है … चाहे जीवन के अंतिम क्षण भी क्यों न हों …

    हमें हर क्षण को अंतिम क्षण मानते हुए आनंद-उत्साह के साथ प्रत्येक पल को जीना चाहिए … स्वतः ही जीवन-संध्या भी सुहावनी सुखदायिनी ही होगी …

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    Replies
    1. आभार आप सभी मित्र जनो का ..

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  26. आगत जीवन संध्या के बारे में बहुत अंदाजा नहीं पर काश सबकी संध्या इतनी ही खूबसूरत होती जैसी अपने कल्पना की है

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  27. महेश्वरी जी आपने याद दिला दी ......................... है बिखेर देती वसुंधरा ..........गुप्त जी की कविता ..........

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  28. दिल को सुकून देती है यह प्रस्तुति.

    बधाई.

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  29. सुन्दर भावविभोर करती हुई प्रस्तुति.
    जीवन की संध्या की सुखद अनुभूति
    सकारात्मक चिंतन का ही परिणाम होती
    है.

    आभार.

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  30. आपने जीवन की सांझ को इस खूबसूरती से शब्दों में कैद किया है ...
    सकारात्मक पक्ष हो तो सब सुन्दर हो जाता है ...

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  31. जीवन की ढलती संध्या विश्वास दिलाती है कि फिर से सुबह होगी. सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.

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  32. शाश्वत सा..जीवन की सांझ..

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  33. रश्मि दी की बात से सहमत हूँ सब मन का खेल है मन खुश तो हर दिन सुहाना और शाम मस्तानी वरना सब बेगाना।

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