abhivainjana


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Sunday, 15 July 2012

बस यूँ ही….






        चाँद
चाँदनी को ढू़ँढ़ते -ढू़ँढ़ते परेशान
चाँद आज धरती पर उतर आया
    कभी पेड़ों के झुरमुठ से
    कभी घर की खिड़की से                                   
 झाँक -झाँक कर ढू़ँढ़ रहा बेचारा..



सूरज
तेज़ प्रखर सूरज
आज किस दुख से दुखी है
जो बादलो के पीछे छुप-छुप
कर आँसू बहा रहा है…




  तारे
आज सब के सब तारे न जाने कहाँ खो गए
मानो किसी ने एक एक को
चुन-चुन कर अपनी झोली में भर लिया
             और फिर कहीं रख कर भूल गया हो …

  बादल
किसी आतंकवादी की तरह
 इन काले-काले बादलों ने आज
 सारा आकाश घेर लिया है
और फिर भयानक स्वरों में
 गरज़ गरज कर मानो
 सब को डरा रहे रहे हों….


 बारिश
कोमल सी नन्हीं-नन्हीं वर्षा की ये बूँदें
बादलों के चुगुल से छूट कर
कितनी तेजी़ से धरती की ओर
 दौड़ती चली आरही हैं
जैसे पुराने साथियों से
मिलने की जल्दी हो..


  हवा
जब भी तुम आती हो
मेरे सारे पन्ने बिखेर देती हो
पर आज मैंने पहले ही से सम्भाल लिये हैं
अरे ! ये जानी पहचानी प्यारी सी खुशबू कैसी ?
क्या आज फिर तुम गुलमोहर से मिल कर आई हो ?



धरती
तृप्त सी हरी भरी धरती
 सज-धज कर निश्चिंत सी चली जा रही है
शायद आज किसी सीता का इंतजार नहीं है…
****
महेश्वरी कनेरी


27 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना
    क्या कहने

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  2. घरती
    तृप्त सी हरी भरी धरती
    सज-धज कर निश्चिंत सी चली जा रही है
    शायद आज किसी सीता का इंतजार नहीं है…
    शायद नहीं दीदी ,अब यकीनन कोई सीता मिलेगी भी नहीं .... !
    बहुत सुन्दर ,चाँद ---- सूरज ---- बादल ---- तारें ---- बारिश ---- हवा का वर्णन लाजबाब की हैं ..... !!

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  3. बहुत भावपूर्ण रचना |
    एक से एक बढ़ कर |
    आशा

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  4. प्रकृति का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने!

    ReplyDelete
  5. शब्द नहीं मिल रहे ....
    अत्यंत सुंदर ...

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति,प्रकृति का लाजबाब वर्णन किया इस रचना में,,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  7. अरे ! ये जानी पहचानी प्यारी सी खुशबू कैसी ?
    क्या आज फिर तुम गुलमोहर से मिल कर आई हो ?
    बहुत-बहुत-बहुत सुन्दर... मन बाग-बाग हो गया

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  8. वाह वाह बहुत सुन्दर
    प्रकृति के सारे रंग समाहित है
    बहुत बेहतरीन रचना...
    बहुत सुन्दर:-)

    ReplyDelete
  9. आज धरती सीता की प्रतीक्षा में नहीं है.....बहुत खूब कहा है. सुंदर कविता.

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  10. poori prakarti ko samet liya apni rachna mein.....

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  11. सुंदर शाब्दिक अलंकरण लिए पंक्तियाँ ......

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  12. वाह!!मजा आ गया...गुलमोहर की खुशबू भी महसूस कियाः)

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  13. किसी नाट्यशैली में अपनी अपनी बात रखते सभी प्रकृति तत्व..

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  14. बहुत प्यारी क्षणिकाये....
    चाँद,सूरज,बादल,बारिश धरती.....सभी खूबसूरत...एक से बढ़ कर एक.

    (दी पहली और आखरी क्षणिका में धरती की जगह घरती टाईप हो गया है)

    सादर
    अनु

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  15. चाँद आज धरती पर उतरा, रहा चांदनी खोज ।

    तारे बंधते इक गठरी में, उठा रहा अनजाना बोझ ।

    सूरज से रज कण तक जल कर, आर्तनाद जल-धर से करते

    सवाशेर सावन बन जाता, कर देता सूरज को सोझ ।।

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  16. बारिश
    कोमल सी नन्हीं-नन्हीं वर्षा की ये बूँदें
    बादलों के चुगुल से छूट कर
    कितनी तेजी़ से धरती की ओर
    दौड़ती चली आरही हैं
    जैसे पुराने साथियों से
    मिलने की जल्दी हो.. इसे कहते हैं ख्यालों की बूंदें

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  17. सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति आभार

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  18. ्वाह वाह वाह बहुत ही खूबसूरत अन्दाज़

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  19. सभी क्षणिकाएं एक से बाद कर एक .... सुंदर प्रस्तुति

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  20. आपने आज प्रकृति से मुलाकात करा दी ....
    आभार!

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  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  22. नाज़ुक से एहसासों की खूबसूरत कविता ...

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  23. प्रभावशाली लेखनी ...
    बधाई !

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  24. वाह सुंदर चित्र व बहुत सुंदर पंक्तियाँ !

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  25. बहुत सुंदर प्रभाव शाली
    चाँद भी लग गया अब
    ढूँढने अपनी चाँदनी ।

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