abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Friday 30 March 2012

क्षणिकाएं


                           १
 लोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है,
फिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है ।
 २
ये मतलब की दुनिया है, बेमतलब प्यार नही मिलता है,
मतलब का बाजा़र सजा है, बस दर्द ही दर्द बिकता है ।
 ३
कई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
पास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है ।
  ४  
खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
  ५
चाहो तो चेहरे पर कई चेहरे, नकाब सजालो,
लेकिन भीतर इंसानियत को कभी न मरने दो।
  ****************
  महेश्वरी कनेरी

35 comments:

  1. आदरणीय महेश्वरी कनेरी जी
    नमस्कार !!!

    बहुत सुन्दर और सार्थक बातें, हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  2. रिश्ते रिसियाते रहे, हिरदय हाट बिकाय ।
    परिचित बेगाने हुए, ख़ुशी ढूंढने जाय ।

    ख़ुशी ढूंढने जाय, नहीं अंतर-मन देखा।
    धर्म कर्म व्यवसाय, बदल ब्रह्मा का लेखा ।

    दीदी का उपदेश, सरल सा चलो समझते ।
    दिल में रखे सहेज, कीमती पावन रिश्ते ।।

    ReplyDelete
  3. खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
    खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?

    Sunder Baat Kahi Apne...

    ReplyDelete
  4. वाह ... बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  5. खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?........
    सुन्दर और सार्थक बातें, हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  6. सच है
    सुंदर पंक्तियां है

    ReplyDelete
  7. एक से बढकर एक सार्थक संदेश देती क्षणिकायें।

    ReplyDelete
  8. अरे हमारा कमेंट फिर गायब..........
    महेश्वरी जी खोज लाइए प्लीस...
    :-(
    सादर.

    ReplyDelete
  9. प्रभावी क्षणिकायें।

    ReplyDelete
  10. चेहरों की भीड़ में कुछ भी असली नहीं

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सार्थक और बेहतरीन प्रस्तुति है..

    ReplyDelete
  12. rishton ke chehare aese ho hote haen.sundar rachana .aabhr meri nai post par aapke vichar saadar aamantrit haen.dhanyavad.

    ReplyDelete
  13. कौन है अपना कौन पराया ....बस मुखौटे में छिपा है सब ...

    ReplyDelete
  14. लोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है,
    फिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है

    सच को बयां करती क्षणिकाएं

    ReplyDelete
  15. बहुत शानदार अभिव्यक्ति!सत्य का दर्शन करा गई...

    ReplyDelete
  16. लोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है,
    फिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है ।
    सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.

    ReplyDelete
  17. कितनी सच्ची बातें.... सार्थक प्रस्तुति।
    सादर।

    ReplyDelete
  18. वाह ...बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  19. हाँ - सच है आपकी बातें |

    ReplyDelete
  20. खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
    खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
    खरी बात... सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर और सार्थक क्षणिकाएं...

    ReplyDelete
  22. कई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
    पास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है
    sunder bhav
    rachana

    ReplyDelete
  23. aaderneeya kaneri jee...bahut hee sarthak sandesh diya hai aapne is rachna ke madhyam se ...sadar badhayee ..main bhee aapko amantrit kar raha hoon apne blog par..

    ReplyDelete
  24. खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
    खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?

    बहुत अच्छी क्षणिकाएं।
    विचारणीय और अनुकरणीय।

    ReplyDelete
  25. बेहतरीन क्षणिकाएँ हैं आंटी!

    सादर

    ReplyDelete
  26. आपको रामनवमी और मूर्खदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ----------------------------
    कल 02/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  27. खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
    खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
    सुन्दर विचार कणिकाएं .

    हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी ,जिसको भी देखना ,कई बार देखना .

    ReplyDelete
  28. सुन्दर और सार्थक क्षणिकाएं.

    ReplyDelete
  29. कई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
    पास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है ...

    इंसान की फितरत ही ऐसे होती है ... चहरे पे चेहरे लगाते रहते हैं ...
    बहुत लाजवाब ...

    ReplyDelete
  30. एक से बढकर एक विचारणीय क्षणिकाएं.

    ReplyDelete
  31. वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर क्षणिकाएं ,बेहतरीन प्रस्तुति,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

    ReplyDelete
  32. बहत सुन्दर ...सीधे सच्चे भाव ...सीधी सच्ची बातें !

    ReplyDelete
  33. कई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
    पास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है ।

    जीवन का सच ...बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  34. चाहो तो चेहरे पर कई चेहरे, नकाब सजालो,
    लेकिन भीतर इंसानियत को कभी न मरने दो।

    माहेश्वरी जी ..सुन्दर सीख देती रचना ..ये समाज अब ऐसा ही हो गया है ....
    जय श्री राधे
    भ्रमर 5

    ReplyDelete
  35. बातें सच्ची हैं!

    ReplyDelete