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Monday 23 January 2012

तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ..

तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ

कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
या जीवन का परिहास लिखूँ
भीगी सी वो रात लिखूँ
या आँखों की बरसात लिखूँ
       तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
तुम्हें दूर कहूँ या पास कहूँ
प्यारा एक अहसास लिखूँ
अपनों के जज्बात लिखूँ
या सपनों की सैगात लिखूँ
      तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ
निश्छल मन का प्यार लिखूँ
सागर  की गहराई भर लूँ
या अम्बर का विस्तार लिखूँ
     तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
भवँरों का गुंजन गान लिखूँ
या कलियों की मुस्कान लिखूँ
बहती बसंत बहार लिखूँ
या धरती का श्रंगार लिखूँ
      तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
*********
महेश्वरी कनेरी

46 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता है आंटी जी
    बहुत बहुत बधाई हो आपको

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  2. भवँरों का गुंजन गान लिखूँ
    या कलियों की मुस्कान लिखूँ
    बहती बसंत बहार लिखूँ
    या धरती का श्रंगार लिखूँ

    बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ हैं आंटी।


    सादर

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  3. कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
    या जीवन का परिहास लिखूँ
    भीगी सी वो रात लिखूँ
    या आँखों की बरसात लिखूँ
    तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ

    पूछते पूछते सब कुछ तो लिख दिया आपने... बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता...

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  4. लिखने बैठने पर , परिहास की बात हो तो , होठो पर हंसी.... :)
    आँखों की बरसात ,कागज गीली करती.... :(
    प्यारा अहसास लिखें , अपनों के जज्बात लिखें.... :)
    बहुत ही प्यारी रचना..... :)

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  5. तुम्हें दूर कहूँ या पास कहूँ
    प्यारा एक अहसास लिखूँ
    अपनों के जज्बात लिखूँ
    shandar panktiyan haen aabhar.aapka mere blog men aakar sujhav dene ke liye shukriya,sda svagat hae.

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  6. महेश्वरी जी, एक-एक शब्द सीधे दिल को छू रहे थे पढ़ते समय! इतना अच्छा!

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  7. तुम्हें दूर कहूँ या पास कहूँ
    प्यारा एक अहसास लिखूँ
    अपनों के जज्बात लिखूँ
    या सपनों की सैगात लिखूँ
    तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ

    BAHUT HI SUNDAR AUR MARMIK RACHANA ......MAHESHWARI JI KUCHH TO LIKHANA HI PADATA HAI ....FIL HAL AK SANGRAHNEEY RACHANA...BADHAI KE SATH HI ABHAR.

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  8. यूँ ही जिंदगी को बेहिसाब लिखो ...

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  9. jiwan ke utar chadav ke beech kitna kuch likhta chala jaata hai, pata kahan chalta hai..
    Manobhavon ki sundar prastuti..

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन!

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  11. jo bhee likho likho zaroor
    man kee baat kaho zaroor
    bahut umdaa

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  12. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,अच्छी पंक्तियाँ .....
    new post...वाह रे मंहगाई...

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  13. बहुत खूबसूरत ! बधाई स्वीकारें।

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  14. इस कलम में जादू है , जीवन का स्पर्श है .... फिर जो लिखो जैसे लिखो

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  15. likh to dil ki jubaani
    suna do koi purani kahani

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  16. कभी-कभी जब
    यह दुविधा घेर लेती है।
    तब मन कहता है,
    बस मन की बात लिखूं।

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  17. खूबसूरत पंक्तियों के साथ ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

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  18. बहुत सुन्दर ....एक अपनी पुरानी रचना आपको समर्पित करती हूँ जो ऐसे ही भाव लिए थी...शायद आपको पसंद आये.
    "गीत"
    तुझ पर क्या कोई गीत लिखूँ

    संग लिखूँ या साथ लिखूँ
    बीच डगर में छोड़ गए तुम
    क्या अनचाही सौगात लिखूँ?

    राग लिखूँ या गीत लिखूँ
    गाये जो तुमने संग नहीं
    फिर मूक सा क्या संगीत लिखूँ?

    आग लिखूँ , अँगार लिखूँ
    धुआं सा जो साँसों में भर गया
    क्या ठंडी सी फिर राख लिखूँ ?

    प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?

    तुम पर कैसे कोई गीत लिखूँ........
    -विद्या

    सादर.

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    Replies
    1. वाह: बहुत खूब..एक खूबसूरत रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद विद्या जी..

      Delete
  19. बहुत खूबसूरत और प्रवाहमयी रचना .

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  20. ▬● बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...

    दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...
    Meri Lekhani, Mere Vichar..
    .

    ReplyDelete
  21. सागर की गहराई भर लूँ
    या अम्बर का विस्तार लिखूँ

    साधु-साधु,

    अतिसुन्दर,

    मर्मस्पर्सी....

    ReplyDelete
  22. बेहद खूबसूरती से लिखी गयी भावपूर्ण रचना |
    'अब हार के कैसे जीत लिखूं 'बहुत प्यारी पंक्ति

    ReplyDelete
  23. कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
    या जीवन का परिहास लिखूँ
    भीगी सी वो रात लिखूँ
    या आँखों की बरसात लिखूँ

    ati sundar !!!!!!!

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  24. सब लिखना है,
    जीवन यह,
    फैला जितना है।

    ReplyDelete
  25. बहुत सुन्दर भावों वाली रचना

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर कविता है

    ReplyDelete
  27. बहुत खूब
    कल 25/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, ।। वक्‍़त इनका क़ायल है ... ।।

    धन्यवाद!

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  28. दिल से कुछ भी कहिये और लिख दीजिये...... बहुत अच्छी लगी रचना.....

    ReplyDelete
  29. कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
    या जीवन का परिहास लिखूँ
    भीगी सी वो रात लिखूँ
    या आँखों की बरसात लिखूँ
    तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ

    अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें

    नीरज

    ReplyDelete
  30. विषयों का इतना बड़ा ख़ज़ाना और दूसरे की पसंद का ख़्याल. बहुत सुंदरता से वर्णन कर दिया है आपने.

    ReplyDelete
  31. यह द्वंद्व है जीवन का
    कहो कैसे सभी लिखूँ!

    ReplyDelete
  32. बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....

    ReplyDelete
  33. कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
    या जीवन का परिहास लिखूँ
    भीगी सी वो रात लिखूँ...........
    जो भी व्यक्त किया है.........पठनीय है...... संग्रहीय है
    उत्कृष्ट रचना

    ReplyDelete
  34. बहुत सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद।

    ReplyDelete
  35. बहुत ही उत्कृष्ट कविता |गणतन्त्र दिवस की बधाई |

    ReplyDelete
  36. सुंदर रचना।
    गहरे भाव।

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

    जय हिंद... वंदे मातरम्।

    ReplyDelete
  37. लिखते चलिये, जिंदगानी बाकी है..

    अच्छी लगी कविता

    ReplyDelete
  38. सुंदर भावो से व्यक्त बहूत सुंदर प्यारी सी रचना है
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  39. बहुत कमाल का लिखा है ... अटल बिहारी जी की शैली की याद आ गयी ...
    आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...

    ReplyDelete
  40. गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  41. aaमैं सोचती हूँ कुछ लिखूँ ,
    पर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ |
    वो कोनसे अल्फाज लूँ ,
    जो आज की कविता लिखूँ |
    हलचल सी कुछ मन में हुई ,
    और शब्द भी सजने लगे |
    गुमसुम सी इस कलम के ,
    हाथ भी चलने लगे |
    फिर भाव ने आकार कलम की ,
    उँगलियाँ भी थांम ली |
    तब ह्रदय ने शब्द चुन कर ,
    पंग्तियाँ कुछ बाँध ली |
    अब प्रश्न मन ही मन उठा ,
    क्या काव्य की सरिता लिखूँ |
    मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
    मैं सोचती हू अब लिखूँ ,
    किस शब्द के संसार पर |
    रूप पर श्रंगार पर या ,
    दुःख के अम्बार पर |
    गाँव की कविता लिखूँ ,
    या गीत कुछ किसान के|
    नीर की सुचिता लिखूँ ,
    या खेत लिखूँ धान के |
    टूटते नाते लिखूँ या ,
    फूटते आँसू लिखूँ |
    मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .......
    पल रहा तूफान है ,
    और चल रहीं हैं आंधियां |
    जल रही बारूद है,
    और दूर तक हैं सिसकियाँ |
    जाने कब चोराहा सुलगा ,
    राख गलियां भी हुई |
    गोद फिर उजड़ी कई और ,
    माँग भी सूनी हुई |
    मो़त का मंजर लिखूँ या ,
    आग का दरिया लिखूँ |
    मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
    सोच कर देखो जरा ,
    क्यों मजहबों की जंग है |
    एक् सा सबका पसीना ,
    एक लहू का रंग है |
    एक कतरा भी लहू का ,
    तुम यहाँ गिरने न दो |
    एक मोती भी किसी की ,
    आँख से झरने न दो |
    छोड़ दो सब नफरतें , क्या लिखू ...पर बहुत से बहुत लोगों ने काफी
    और तोड़ दो इस जंग को | कुछ लिखा है ..इसी क्रम मैं .....aaमैं सोचती हूँ कुछ लिखूँ ,
    पर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ |
    वो कोनसे अल्फाज लूँ ,
    जो आज की कविता लिखूँ |
    हलचल सी कुछ मन में हुई ,
    और शब्द भी सजने लगे |
    गुमसुम सी इस कलम के ,
    हाथ भी चलने लगे |
    फिर भाव ने आकार कलम की ,
    उँगलियाँ भी थांम ली |
    तब ह्रदय ने शब्द चुन कर ,
    पंग्तियाँ कुछ बाँध ली |
    अब प्रश्न मन ही मन उठा ,
    क्या काव्य की सरिता लिखूँ |
    मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
    मैं सोचती हू अब लिखूँ ,
    किस शब्द के संसार पर |
    रूप पर श्रंगार पर या ,
    दुःख के अम्बार पर |
    गाँव की कविता लिखूँ ,
    या गीत कुछ किसान के|
    नीर की सुचिता लिखूँ ,
    या खेत लिखूँ धान के |
    टूटते नाते लिखूँ या ,
    फूटते आँसू लिखूँ |
    मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .......
    पल रहा तूफान है ,
    और चल रहीं हैं आंधियां |
    जल रही बारूद है,
    और दूर तक हैं सिसकियाँ |
    जाने कब चोराहा सुलगा ,
    राख गलियां भी हुई |
    गोद फिर उजड़ी कई और ,
    माँग भी सूनी हुई |
    मो़त का मंजर लिखूँ या ,
    आग का दरिया लिखूँ |
    मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
    सोच कर देखो जरा ,
    क्यों मजहबों की जंग है |
    एक् सा सबका पसीना ,
    एक लहू का रंग है |
    एक कतरा भी लहू का ,
    तुम यहाँ गिरने न दो |
    एक मोती भी किसी की ,
    आँख से झरने न दो |
    छोड़ दो सब नफरतें ,
    और तोड़ दो इस जंग को |
    प्यार से मिल बैठ कर ,
    फिर प्यार की कविता लिखू|

    ममता

    प्यार से मिल बैठ कर ,
    फिर प्यार की कविता लिखू|

    ममता

    ReplyDelete