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Tuesday 19 August 2014

पीपल (छन्द - गीतिका)


                   पीपल (छन्द - गीतिका)
             ऐतिहासिक वृक्ष पीपल, मौन वर्षो से खड़े
पारहे आश्रय सभी है ,गोद में छोटे बड़े

 मौन तरुवर हो अडिग तुम  , श्रृष्टि का वरदान हो
हे सकल जग प्राणदाता, सद् गुणों की खान हो

हो घरोहर पूर्वजों का ,पीढियों से मान है
पूजते नर और नारी,भक्ति आस्था ग्यान है

सर्वव्यापी सर्वदा हो चेतना  बन बोलते
सर्वसौभाग्य हे तरुवर, धर्म रस हो घोलते
*******

महेश्वरी कनेरी
                        
 मित्रों कुछ घरेलु व्यवस्था के कारण आज बहुत समय बाद ब्लांग पर आना हुआ ...माफी चाहुँगी... छंद विधा में यह मेरा प्रथम प्रयास है..उम्मीद है आप सभी मुझे प्रोत्साहित करेंगे.....आभार

17 comments:

  1. सुन्दर रचना

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  2. पीपल पर लेखन समय की आवश्यकता है। वाह ................

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  3. शायद इसलिए पुराणों में भी तीन वृक्ष लगाने का महत्व बताया गया है वटवृक्ष नीम और पीपल यूं भी पेड़ ही मानव जाती के लिए जीवन दाता है बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति...

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  4. बहुत ही सुन्दर भाव लिए हैं पंक्तियाँ

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  5. बहुत बढ़िया आंटी !

    सादर

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  8. सर्वव्यापी सर्वदा हो चेतना बन बोलते
    सर्वसौभाग्य हे तरुवर, धर्म रस हो घोलते
    अनुपम भाव संयोजन .... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति
    सादर

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  9. हो घरोहर पूर्वजों का ,पीढियों से मान है
    पूजते नर और नारी,भक्ति आस्था ग्यान है..bhawon se bhara ......

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  10. वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  11. भावों और शब्दों का ख़ूबसूरत संयोजन...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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