abhivainjana


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Monday, 27 August 2012

वक्त की हेरा फेरी



वक्त की हेरा फेरी

कहने के लिए तो सफर में बहुत मिले
कुछ अपने ,कुछ पराए
न शिकवे थे न शिकायत
फिर भी..
जब होश आया
तब देखा..
कब अपने पराए हुए
और पराए कब अपने
वक्त की ये कैसी हेरा फेरी है
*********

तन्हाई
जब भी मन को टटोला
एक सूना पन बाहर आया
 और ये कह कर मुस्काया
जिन्दगी पहुँच चुकी है
उस मुकाम पर जहाँ तन्हाई
तन्हाई सिर्फ तन्हाई
**************

क्यों
हँसते-हँसते क्यों आँसू निकल आते है..?
और चलते-चलते क्यों साए भी छॊड़ जाते है ?
**********

जिन्दगी की चाक

जिन्दगी की चाक पर
हम तो सब को अपना बनाते चले थे
लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
सब फटने फूटने और बिखरने लगे..
***************
महेश्वरी कनेरी

36 comments:

  1. ओह, बहुत सुंदर
    क्या कहने


    जब भी मन को टटोला
    एक सूना पन बाहर आया
    और ये कह कर मुस्काया
    जिन्दगी पहुँच चुकी है
    उस मुकाम पर जहाँ तन्हाई
    तन्हाई सिर्फ तन्हाई

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. तन्हाई की भी अपनी एक आवाज़ होती हैं ...

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  4. वक्त अपने रंग में रंग लेता है।

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  5. बहुत सुंदर रचनाएँ....

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  6. अचानक से उभरती विचारों को जोरदार झटका देती हुई..सुन्दर..

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  7. ये तो वक्त का मिजाज़ है ,मुझे इससे कोई गिला नहीं ,.....सुन्दर भाव कणिकाएं हैं ,विचारिकाएं हैं ..... .कृपया यहाँ भी पधारें -

    सोमवार, 27 अगस्त 2012
    अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  8. sabhi rachnayen behtarin hai ..........

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  9. लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
    सब फटने फूटने और बिखरने लगे..
    अब ऐसा नहीं होगा दीदी ♥

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  10. sunder bhav ki rachnayein...........

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  11. वक्त कि हेरा फेरी है .... भावों को क्षणिकाओं में बखूबी बांधा है

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  12. वक्त ही है जो भटकाता है
    फिर आदमी कहाँ हिसाब लगाता है
    कुछ इधर दे के जाता है
    कुछ उधर से ले के आता है
    कुछ भी हो जाये लेकिन
    बैलेंस ज़ीरो ही आता है !

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  13. समय बड़ा बलवान है -कुछ भी नहीं बचा है इससे ,
    जीवन की भंगुरता की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने !

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  14. शब्दों को बहुत अच्छे से पिरोया है बिलकुल अक्षर अक्षर मोती समान

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  15. व्यवहार की भट्टी कहें या शालीनता .... वहीँ असलियत मिलती है

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  16. आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे अपनी ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया.हाज़िर है:-
    ये वक़्त है बेइंतिहा ताक़त है इसके पास,
    लड़ना पड़ेगा फिर भी इसी पहलवान से.

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  17. वक़्त जख्म देता है तो मरहम भी लगाता है, सारे घाव भर देता है ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति महेश्वरी जी

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  18. बहुत ही बेहतरीन रचना......

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  19. कब अपने पराए हुए
    और पराए कब अपने
    वक्त की ये कैसी हेरा फेरी है.....samajhna bada kathin hai.

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  20. सुंदर भाव लिए सभी क्षणिकाए पसंद आई,,,,,बधाई,,,,,

    MY RECENT POST ...: जख्म,,,

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  21. जैसा शीर्षक बिलकुल वैसी ही पोस्ट सब वक्त की ही हेरा फेरी है सुंदर भाव से परी पूर्ण सभी क्षणिकाए बहुत अच्छी लिखी हैं आपने आभार ....

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  22. क्यों
    हँसते-हँसते क्यों आँसू निकल आते है..?
    और चलते-चलते क्यों साए भी छॊड़ जाते है ?
    बहुत सही कहा है आपने ...आभार

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  23. मर्म को छूती हुई क्षणिकायें.वाह !!!!!!!!!!!!!

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  24. एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं हैं ! प्रतीत हो रहा है मानो जिंदगी का समस्त अनुभव शब्दों में ढल गया हो.

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  25. sab ke dilo se guzarti sabke anubhavo ki bhatti par paki kshanikaayen kamaal k shabdon me dhali hain.

    badhayi.

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  26. बढिया क्षणिकाएं .

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  27. समय के साथ बदलता बहुत कुछ ...सवेंदनशील भाव

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  28. जिन्दगी की चाक पर
    हम तो सब को अपना बनाते चले थे
    लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
    सब फटने फूटने और बिखरने लगे.....बहुत खूबसूरत..बहुत सुंदर रचना..

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  29. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
    जिंदगी के पहलुओ को
    बहुत खूब व्यक्त किया है...
    शानदार...
    :-)

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  30. उस मुकाम पर जहाँ तन्हाई
    तन्हाई सिर्फ तन्हाई
    sahi hai
    लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
    सब फटने फूटने और बिखरने लगे..
    aesa hi hota hai sunder abhivyakti
    rachana

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  31. वक्त-वक्त की बात है, वक्त है तो सब साथ हैं, वक्त नहीं तो खाली हाथ हैं

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  32. sabhi sacchi-sacchi baten....anubhavon ka khajana...

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