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Thursday 14 June 2012

कमजोर नज़र

कमजोर नज़र



 खोगई है जिन्दगी यहीं कहीं


ढ़ूँढ़ रही हूँ , मिलती ही नहीं


शायद सोच की नज़र ही


कमजोर पड़ गई है…

*****

महेश्वरी कनेरी 



28 comments:

  1. बहुत खूब आंटी।


    सादर

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  2. Wah-Wah ---di itni chhoti chhoti paktiyom me kitni gahri baat kah di aapne.
    bahut hi badhiya----
    dhanyvaad sahit
    poonam

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  3. मस्त मस्त दो पंक्तियाँ, भरे अनोखे भाव ।

    दीदी बहुत बधाइयां, गूढ़ दृष्टि पा जाव ।।

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  4. मिल जाये ज़िन्दगी...!

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  5. सुना है अनुभव की नजर तेज होती है...
    आँखों की घटती रोशनी के साथ अनुभव की रोशनी बढ़ती जाती है:)

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  6. सही बात है..
    बहुत सुन्दर....

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  7. फिर से चर्चा मंच पर, रविकर का उत्साह |

    साजे सुन्दर लिंक सब, बैठ ताकता राह ||

    --

    शुक्रवारीय चर्चा मंच

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  8. जिंदगी की खोज सोच की नजर से...
    वाह बहुत सुन्दर... आभार

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  9. कम पंक्तियों बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,,,
    नियमित पोस्ट में आने के लिये बहुत२ आभार ,,,

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  10. सच है, आयाम सिमटने लगते हैं..

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  11. खोगई है जिन्दगी यहीं कहीं
    ढ़ूँढ़ रही हूँ , मिलती ही नहीं
    बहुत खूब दीदी .... !!

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  12. बहुत सुन्दर........................

    सादर

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  13. या कहीं नहीं है .... !

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  14. इससे भी गहरी बात कोई हो सकती है..वाह !

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  15. वाह ... बहुत खूब

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  16. सोच की कुछ दिशाएँ समय के साथ धुँधला जाती हैं. सुंदर पंक्तियाँ.

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  17. कुछ शब्दों में गहन प्रस्तुति...

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  18. इसी खोज में ही जिंदगी छुपी है..

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  19. कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया .......आभार

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  20. वाह,
    छोटी सी डिबिया में समंदर भर के मोती।

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  21. जिंदगी सार यही है. सुंदर प्रस्तुति.

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  22. बहुत ही बढ़िया भाव लिए रचना.

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