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Tuesday 20 September 2011

बिलखता बचपन


बिलखता बचपन

धूल मिट्टी में सने
ये  धरती के लाल
आँखो में है उदासी
उलझे-उलझे से बाल
 पेट है खाली-खाली
मन में भरा जज्बात
हाथों की आड़ी तिरछी लकीरे
भाग्य को देते हैं मात
खाने खेलने की उम्र में
मेहनत करते दिन रात
मेहनत की कमाई
जब गिनने बैठते
छीन कर ले जाता
उनका शराबी बाप
रोते बिलखते….
फिर…अगली सुबह
चल पड़ते………….बचपन तलाशते
सड़कों में, चौराहों में
न जाने कहाँ-कहाँ
बिखरे हुए हैं
ये मासूम से सौगात
कह दो ,कह दो कोई
देश के इन ठेकेदारों से
जो करते ,विकास की बात
बचपन जहाँ बिलख रहा हो
 वहाँ
कैसे पनप सकता है, विकास
********************

37 comments:

  1. बिलकुल सही कहा आपने। बच्चे देश का भविष्य होते हैं और जब उनकी ही स्थिति अच्छी नहीं होगी तो भविष्य की कल्पना ही की जा सकती है। वक़्त सामी रहते चेत जाने का है।
    ------------
    कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. त्रुटि सुधार-
    ऊपर की टिप्पणी मे कृपया सामी को समय पढ़ें।

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  3. सही बताया है आपने।

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  4. सही लिखा है .....ऐसे विकास करना सही अर्थों विकास में विकास तो है ही नहीं

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  5. मार्मिक परिस्थितियाँ।

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  6. सचमुच, बाल मजदूरी एक अभिशाप है...... सुन्दर व मार्मिक चित्रण..... आभार!!

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  7. बचपन जहाँ बिलख रहा हो
    वहाँ
    कैसे पनप सकता है, विकास... asambhaw hai vikaas , sahi drishtikon diya

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  8. बचपन जहाँ बिलख रहा हो
    वहाँ
    कैसे पनप सकता है, विकास

    ...बहुत सच कहा है..जिस विकास का फायदा सभी तक न पहुंचे, ऐसे विकास के क्या मायने. बहुत मर्मस्पर्शी रचना.

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  9. हाथों की आड़ी तिरछी लकीरे
    भाग्य को देते हैं मात
    खाने खेलने की उम्र में
    मेहनत करते दिन रात

    मर्मस्पर्शी रचना

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  10. सुन्दर व मार्मिक चित्रण....

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  11. desh ke thekedaro ke aas paas hi sabse jyada ye bachpan bilakh raha hota hai jis par inka dhyan kabhi nahi jata.

    marmik prastuti.

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  12. ओह,पढ़ने की उम्र में इतनी मेहनत.मर्मस्पर्शी.

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  13. sach me dukh hota hai dekh-dekh kar ....
    bahut satik likha hai ...

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  14. बहुत सुंदर ...सशक्त रचना

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  15. सत्य को कहती मार्मिक प्रस्तुति

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  16. बाल मजदूरी एक अभिशाप है..सशक्त मार्मिक प्रस्तुति

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  17. bahut marmik kuch shochne par vivash karti hui rachna.

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  18. आज के हालात का सटीक चित्रण किया है।

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  19. जब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....

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  20. बिलकुल सही कहा आपने...

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  21. बहुत सार्थक और मर्म स्पर्शी रचना...बधाई स्वीकार करें

    नीरज

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  22. बहुत ही गहन भाव लिये हुये सार्थक व सटीक लेखन ... ।

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  23. बहुत-बहुत अच्छी रचना , मार्मिक ,कटु जिसे बदलना चाहिए.

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  24. बहुत सही लिखा है बाल समस्या पर कम लोग ही ध्यान देते हैं |
    आशा

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  25. मार्मिक चित्रण और चित्र...
    सादर...

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  26. यही हमारा तथाकथित विकास है |यह मजदूर इस लिए है क्योंकि मजबूर है | सार्थक रचना ,आभार

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  27. मेरे ख्याल से इस महंगाई और भ्रष्टाचार ने देश का बचपन बर्बाद कर दिया है.. और खासकर देश का बचपन..
    जो बचपन अच्छी बातें देखकर देश-निर्माण करता, वही अपने चारों ओर भ्रष्टाचार देखकर देश को आगे चलकर गौण करेगा..
    अनछुए पहलू को आपने उठाया है..

    आभार
    तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...

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  28. बालमन या बच्चों की सम्वेदना से जुडी उत्कृष्ट कविता |आभार

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  29. देश का दर्द संजोये है यह रचना .विकास का खोखलापन नौनिहालों की ज़बानी कह गई है यह रचना .

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  30. ये मासूम से सौगात
    कह दो ,कह दो कोई
    देश के इन ठेकेदारों से
    जो करते ,विकास की बात
    बचपन जहाँ बिलख रहा हो
    वहाँ कैसे पनप सकता है, विकास
    बहुत सही लिखा है आपने .आपका आभार…

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  31. बहुत ही भाव पूर्ण अभिव्यक्ति मजबूर बचपन मजदूर बचपन
    विकास की ये कैसी दशा है एक और पञ्च सितारा सभ्यता का समृद्ध संसार वहीँ दूसरी ओर विवशता और अभावों का बिलखता संसार......

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  32. सभी रचनाओं की अलग अलग क्या तारीफ करू सभी बहुत ही उम्दा है

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