मन में उठने वाले हर भाव हर अह्सास को शब्दों में बाँध, उन्हें सार्थक अर्थों में पिरोकर एक नया आयाम देना चाह्ती हूँ । भावनाओ के इस सफर में मुझे कदम-कदम पर सहयोगी मित्रों की आवश्यकता होगी.. आपके हर सुझाव मेरा मार्ग दर्शन करेंगे...
Followers
Friday, 27 May 2011
Sunday, 15 May 2011
ले चल उस पार
ले चल उस पार
रे मन, मुझे ले चल उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
पंख पसार फैली जहाँ चाँदनी हो
शिशिर में नरम धूप सा अहसास
पल- पल आशा, जहाँ गुनगुनाए
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
निश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
करती लहरे जहाँ, निनाद
तट से अनुबंधित सदा वो चलती
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
राग द्वेष के सघन वन उपजे
यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
मिले जहाँ प्यार और अपनापन
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
रे मन, मुझे ले चल उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
Friday, 6 May 2011
ये कैसी भूख है ?
ये कैसी भूख है ?
किसी को फूट्पाथ में भी
गहरी नींद सोते देखा,
किसी को नरम गद्दों पर
करवट बदलते देखा ।
किसी को पेट में भूख लगती है
किसी की आँखों में भूख दिखती है।
किसी को रोटी की भूख ,
किसी को दौलत की ।
रोटी की भूख तो
खाकर मिट जाती है,
लेकिन दौलत की भूख ,
बढ़ती ही जाती है ।
किसी को चिथड़ो में भी
इज्जत छिपाते देखा ,
किसी को,चंद सिक्कों के लिए
सरे आम होते देखा ।
किसी को आन पर
मरते देखा
किसी का ईमान
बिकते देखा।
लोगों को तिल- तिल
मरते, और मारते देखा ।
मत पूछो यहाँ,
क्या-क्या देखा ?
हर पल इंसानों को,
कैसे-कैसे
भूख से जूझते देखा |
-------------
Subscribe to:
Posts (Atom)