खिड़की खोलो
शुद्ध हवा को आने दो
घुट-घुट कर क्यों जीते हो
मन में खुशियां छाने दो
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
भरी दोपहरी पेड़ के नीचे
जामुन चुन-चुन खाते
तेरा गुड्ड़ा मेरी गुड्डी
कैसे व्याह रचाते
लड़ते भिड़ते फिर भी
कितना था अपनापन
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
रिमझिम सी बारिश में
कागज़ की नाव बनाते
कुछ डूबते कुछ तैरते
देख- देख खुश होते
छोटी-छोटी खुशियों से
भर जाता था आँगन
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
पहन माँ की साडी सेंड़ल
कभी टीचर बनजाते
ले हाथो में एक छडी
गिटर पिटर हम करते
कितना बेफिक्र सा
भोला भाला था बचपन
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
******************
महेश्वरी कनेरी..
पूरी गर्मी में बच्चे यही सब कर रहे थे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर बालगीत
पहन माँ की साडी सेंड़ल
ReplyDeleteकभी टीचर बनजाते
ले हाथो में एक छडी
गिटर पिटर हम करते
कितना बेफिक्र सा ,भोला भाला था बचपन
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
fleshback में पहुंचा देने के लिए आभार और धन्यवाद .... !1
अपना घर घर खेलना याद आ गया...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
सादर
अनु
खिड़की खोलो
ReplyDeleteशुद्ध हवा को आने दो
घुट-घुट कर क्यों जीते हो
मन में खुशियां छाने दो
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
बिल्कुल इससे प्यारा तो कुछ भी नहीं :)
आभार बचपन के कुछ पल वापस लाने का ...
खेल सुहाना, बचपन बचपन..
ReplyDeleteकितना बेफिक्र सा
ReplyDeleteभोला भाला था बचपन
भूल जाओ सब उलझन
आओ खेले बचपन- बचपन
बचपन को याद दिलाती लाजबाब बेहतरीन रचना,,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
मैं तैयार ... चलो खेलें बचपन बचपन
ReplyDeleteकितना सुन्दर खेल है ना... आओ खेलें बचपन-बचपन... बहुत सुन्दर पलों को याद दिला दी आपने... आभार
ReplyDeleteदे दो मुझे वो दिन
ReplyDeleteजब सब मेरे लिए जीते थे
अब जीता हूँ दूसरों के लिए
खुद किसी तरह
घिसटते घिसटते जीता हूँ,,,,,,
आओ खेले बचपन- बचपन
सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति. सुन्दर रचना. :-).
ReplyDeleteआज का आगरा
बचपन पर उत्कृष्ट पंक्तियाँ
ReplyDeleteपढने को मिली |
सरल प्रस्तुति ||
आभार दीदी |
नाख़ून गड़ा के चलें, चिकनी मिटटी खूब ।
Deleteकीचड़ में फिर भी सनें, मैया जाती ऊब ।
मैया जाती ऊब , नालियाँ नहर बनाते ।
छींक-खाँस हलकान, फिर भी बाज न आते ।
तालाब किनारे जाय, खाय भैया का झापड़ ।
वापस आ के खाय, पकौड़ी हलुआ पापड ।।
हर बचपन की येही कहानी
ReplyDeleteवो कागज की किश्ती ,वो बारिश का पानी ....
सुंदर रचना !
बहुत ही प्यारी रचना
ReplyDeleteसादर
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १०/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं |
ReplyDeleteआपकी रचना अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर....बचपन सदा बना रहे.....
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रवाहमयी रचना..सच कहा ..अब भी मन करता है वही खेल खेलें..बचपन- बचपन..
ReplyDeleteसाधु-साधु
ReplyDeleteबचपन के दिन याद करा दिये ... बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबचपन में लौटने का मौका मिले तो बात ही क्या है ...
ReplyDeleteउन दिनों कों याद करा दिया इस लाजवाब रचना ने ...
वो कागज की नाव,और बरसता पानी,|
ReplyDeleteसिर्फ यादे रह गई,रह गई याद कहानी,|
रहगई याद कहानी,कागज की नाव बहाते
मित्रों के संग भीगते, और मौज मनाते
आज इस पडाव पर,उलझन ही उलझन|
क्या दिन थे जब खलते बचपन बचपन
चर्चामंच पर,,,,,देखे
पुरानी स्मृतियों से धूल झाड़कर ....चहरे पर मुस्कराहट बिखेर दी ....बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन, सुन्दर भाव, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .
रिमझिम सी बारिश में
ReplyDeleteकागज़ की नाव बनाते
कुछ डूबते कुछ तैरते
देख- देख खुश होते
कोई बहुत कुछ लेकर बचपन लौटा दे ले लेंगे .बचपन का भोलापन और निश्छल निर्मल मन ही हमें राजा भोज के राज्य का गडरिया बनाता है . जो निष्कपट न्याय करता है .
बचपन याद आ गया...
ReplyDeleteदेर से आने के लिए सॉरी...नेट की समस्या!!!
आओ खेले बचपन- बचपन....
ReplyDeleteक्या बात है..... शीर्षक पढ़कर ही बचपन याद आता चला गया .....
आम, सह्तुत, पनियल के पेड़ों पर बिताये वो सुनहरे पल ........
आओ खेले बचपन- बचपन
ReplyDeleteमजा आ गया पढकर
बहुत प्यारी कविता।
ReplyDeleteसच है,बचपन की ओर बार-बार निहारना अच्छा लगता है।
इन छुट्टियों में बच्चों को यही खेल खेलते देख अपने बचपन को देखा है. बहुत प्यारी रचना जो उलझन से निकलने को प्रेरित करती है.
ReplyDeleteवो कागज की नाव,और बरसता पानी,|
ReplyDeleteसिर्फ यादे रह गई,रह गई याद कहानी,|
रहगई याद कहानी,कागज की नाव बहाते
मित्रों के संग भीगते, और मौज मनाते
आज इस पडाव पर,उलझन ही उलझन
क्या दिन थे जब खलते बचपन बचपन,,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
सुंदर...बचपन के खेल याद आ गए...
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