अगला जीवन |
जीवन की शाख पर बैठा
मन का पाखी
भोर का गीत सुनाता..
मैं कहती …
ये तो संध्या है
चीर निन्द्रा की आती बेला है
भोर बीते युग बीता
क्यों है याद दिलाता..?
बहुत जीया इस जीवन को
अब अगले सफर की बारी है
जीर्ण-क्षीण हुए इस चोगे को
बस बदलने की तैयारी है
ये तो जीवन चक्र है
इससे गुजरना पड़ता है
कैसा दुख , कैसा संताप
मोह माया ममता, तेरा मेरा
सब यही रह जाना है
जो मिला, यहीं मिला था
यहाँ का यहीं दे जाना है
खाली हाथ तो आये थे,
खाली हाथ ही जाना है
न भय न कोई चिन्ता
बस एक उत्सुकता है मन में
नया वेश नया परिवेश
कैसा होगा उस पार का देश..?
इस लिए हे पाखी ..
ऐसा कोई गीत सुना
जिससे चिर निन्द्रा में सो जाऊँ
फिर..
अगला जीवन भी तो जीना है…..
**********
महेश्वरी कनेरी
नए परिवेश में मुझे भी साथ ले कर चलिएगा...मुझे भी देखना है...
ReplyDeleteमेरा अनुरोध है इस सफ़र को अभी स्थगित रखें:)
'ये तो जीवन चक्र है'
ReplyDeleteअभी इस जीवन में ही कई चक्र शेष हैं...!
ढ़ेरों उमंगों के साथ चलता रहे जीवन!
थोडा इंतजार कीजिये दीदी ...साथ मुझे भी देना है .... मुझे भी
ReplyDeleteएक उत्सुकता है मन में
नया वेश नया परिवेश
कैसा होगा उस पार का देश..?
(1) ससुर जी वृद्ध हैं ,उनकी सेवा कर ,विदा कर लूँ ....
(2) बेटे की शादी कर दूँ .... बहु का स्वागत कर लूँ ....
(3) बहु घर में रच-बस जाए .... सबका ख्याल रखेगी देख लूँ ....
(4) पोता का मुहं देख ,साथ कुछ खेल लूँ ....
(5) एक पोती भी दीदी ... बिटिया नहीं है न .... कन्यादान तो कर्ज है बाकी ....
साथ चलेगें आप लिखेगीं तो पढ़नेवाला भी तो होना चाहिए .... :D
Waah Vibha ji...Great comment...Loving it !
Deleteबहुत मार्मिक लिखी हैं आंटी!
ReplyDeleteसादर
लोग जीने की कला सीखते हैं लेकिन आप मरने की कला सीखा रही हैं ... बहुत सुंदर रचना ...
ReplyDeleteजो सत्य है उसे क्यों नकारना..जिन्दा दिली से जीए है तो जिन्दा दिली से मरना भी चाहिए..उसके लिए खुद को तैयार कर रही हूँ संगीता जी..आभार..
Deleteउत्कृष्ट सोच-
ReplyDeleteगाना गाना भोर का, संध्या बेला पास |
मन का पाखी नासमझ, नहीं आ रहा रास |
नहीं आ रहा रास, आस का झूला झूले |
करे हास-परिहास, हकीकत शाश्वत भूले |
दीदी की यह बात, नये परिधान पहन कर |
नया देश परिवेश, देखना है जी भरकर ||
ये तो संध्या है
ReplyDeleteचीर निन्द्रा की आती बेला है
अगला जीवन भी तो जीना है
जो आया उसे जाना है
जैसे जीवन का स्वागत किया है
वैसे ही मृत्यू का भी करना है.
सुन्दर रचना...प्रार्थना करते हैं ईश्वर से आप ऐसे ही लिखती रहें, स्वस्थ और प्रसन्न रहें ... सादर
जिसने मरने की कला सीख ली, समझिये जीना आ गया..बहुत उत्कृष्ट रचना।
ReplyDeleteमरना एकदम सत्य है फिर काहे का रोस
ReplyDeleteअगला जनम सुधारिये, आगे की तू सोच
आगे की तू सोच, जी लिया जीवन अपना
धरा यही रह जाय, पूरा करो अपना सपना
मौत शाश्वत सत्य है,बनालो अगला परिवेश
बुलावा कब आ जाये, जाना पड़े दूसरे देश,,,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
मेरी टिप्पणी स्पैम मे देखे...
ReplyDeleteजीना है पहले, जीकर जीना है पहले..
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteमृत्यु जीवन का सत्य है , जिसने स्वीकार किया , जीना सीख लिया !
ReplyDeleteयह भी जीवन से जुड़ा सत्य है....अद्भुत रचना
ReplyDeleteउम्र के बढने के साथ साथ ऐसे प्रष्न स्वाभाविक ही मन मे उठने लगते हैं जिन्हें आपने अच्छे शब्दों से सुन्दर आकार दिया है। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
ReplyDeletesaty ka jivant chitran hai ...jaana to sabhi ko hai
ReplyDeleteachchhi baat to ye hai ki biite palon ko saarthak jiya hai to avsaan kaa bhi swaagat karna chaahiye saarthak rachna aabhar
गहन भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteबहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteबहुत जीया इस जीवन को
ReplyDeleteअब अगले सफर की बारी है
जीर्ण-क्षीण हुए इस चोगे को
बस बदलने की तैयारी है... सत्य का आवरण
अगला जीवन भी तो जीना है ...........गहरे भाव !
ReplyDeleteजीवन का सत्य है ये...
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट रचना...
पर अभी के लिए ये स्माइल लीजिये...
:-) :-) :-) :-) :-)
हकीकत को भुगतना बाकी है ...
ReplyDeleteआभार इस सुंदर रचना के लिए !
bahut acchi abhiwayakti ...
ReplyDeleteमैं एक बार के जीवन में विश्वास रखता हूँ. अगले जन्म का संस्कार मुझे दिया तो गया है लेकिन वह काम नहीं करता, न ही उसका विचार सताता है. इसलिए कविता की आखिरी दो पंक्तियों को छोड़ दें तो बाकी की कविता मुझे बहुत अच्छे से संप्रेषित हुई है. बहुत ही बढ़िया कविता है.
ReplyDeleteनीरवता में भी आशा को अक्षुण रखें .....यही तो असली जीवन है
ReplyDeleteसुन्दर संदेश देती हुई रचना
आभार
उम्दा प्रस्तुति …………सुन्दर संदेश
ReplyDeleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
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