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Monday, 2 July 2012

मेरे घनश्याम सलोने

मेरे घनश्याम सलोने

अवतरित हुए तुम आज
मेरे घनश्याम सलोने
अँजली भर-भर लाए नीर
तपित हिये की प्यास बुझाने
कब से तरसे व्याकुल
चातक मन अकुलाए
देख हर्षित तरंग उठे
कंपित अधर मुस्काए
धुले कलुष मन आज
भर-भर अश्रु बहाए
करते निर्मल जग को
पतित पावन कहलाए
हर्षित हुआ मन उपवन
आशा के पल्लव जागे
भाव बहे जीवन चले
घनश्याम जब तुम आए
***************
महेश्वरी कनेरी

23 comments:

  1. घनश्याम बरसते जाते-
    मन-गोपी हरसे हरसाते |
    विरह वियोगी काया-
    जग-जीव भीग अब पाते |

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  2. वाह! मधर सुन्दर सी प्रस्तुति.
    मन को हर्षाती हुई.
    आभार

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  3. बहुत सुन्दर महेश्वरी जी...

    मनभावन रचना....
    सादर.

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  4. वाह सुन्दर प्रस्तुति

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  5. घनश्याम धरा को भी अनुप्राणित करता है...और मन को भी, सुंदर भाव !

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  6. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात है

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  7. बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  8. भावमय करती शब्‍द रचना ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  9. बहुत बढ़िया आंटी !


    सादर

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  10. सुन्दर प्रेमपगी अभिव्यक्ति..अहा..

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  11. घनश्याम के आने से मन प्रफुल्लित हो गयाः)...खूबसूरत प्रस्तुति !!!

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  12. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....

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  13. सावन आने को है, पर मूसलाधार आरिश का अता-पता नहीं है। फिर भी कुछ छींटों और कुछ बौछारों ने राहत पहुंचाई है।

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  14. सुन्दर.....भिगो दिया आपकी रचना ने ......बारिश की कमी पूरी कर दी !

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  15. बेहद प्रभावशाली रचना !

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  16. बहुत उम्दा भावमयी अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना,,,,

    MY RECENT POST...:चाय....

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  17. मेघों के रूप में घन घन करते घनश्याम आए ... भिगोती हुयी रचना ...

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  18. बहुत ही सुन्दर रचना बरसते मेघों के साथ

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  19. जीवन, भक्ति और प्रेम को इस कविता ने एक कर दिया है. बहुत सुंदर कविता.

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  20. सुन्दर रचना.सार्थक प्रस्तुति।

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  21. very impressive creation Maheshwari ji.

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