मेरे घनश्याम सलोने |
अवतरित हुए तुम आज
मेरे घनश्याम सलोने
अँजली भर-भर लाए नीर
तपित हिये की प्यास बुझाने
कब से तरसे व्याकुल
चातक मन अकुलाए
देख हर्षित तरंग उठे
कंपित अधर मुस्काए
धुले कलुष मन आज
भर-भर अश्रु बहाए
करते निर्मल जग को
पतित पावन कहलाए
हर्षित हुआ मन उपवन
आशा के पल्लव जागे
भाव बहे जीवन चले
घनश्याम जब तुम आए
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महेश्वरी कनेरी
घनश्याम बरसते जाते-
ReplyDeleteमन-गोपी हरसे हरसाते |
विरह वियोगी काया-
जग-जीव भीग अब पाते |
वाह! मधर सुन्दर सी प्रस्तुति.
ReplyDeleteमन को हर्षाती हुई.
आभार
बहुत सुन्दर महेश्वरी जी...
ReplyDeleteमनभावन रचना....
सादर.
वाह सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut sundar mohak rachana..
ReplyDeletesundar;-)
घनश्याम धरा को भी अनुप्राणित करता है...और मन को भी, सुंदर भाव !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात है
बहुत सुन्दर भावमयी रचना...
ReplyDeleteभावमय करती शब्द रचना ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आंटी !
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteसुन्दर प्रेमपगी अभिव्यक्ति..अहा..
ReplyDeleteघनश्याम के आने से मन प्रफुल्लित हो गयाः)...खूबसूरत प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसावन आने को है, पर मूसलाधार आरिश का अता-पता नहीं है। फिर भी कुछ छींटों और कुछ बौछारों ने राहत पहुंचाई है।
ReplyDeleteसुन्दर.....भिगो दिया आपकी रचना ने ......बारिश की कमी पूरी कर दी !
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना !
ReplyDeleteबहुत उम्दा भावमयी अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST...:चाय....
मेघों के रूप में घन घन करते घनश्याम आए ... भिगोती हुयी रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना बरसते मेघों के साथ
ReplyDeleteजीवन, भक्ति और प्रेम को इस कविता ने एक कर दिया है. बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeletevery impressive creation Maheshwari ji.
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