चाँद
चाँदनी को ढू़ँढ़ते -ढू़ँढ़ते परेशान
चाँद आज धरती पर उतर आया
कभी पेड़ों के झुरमुठ से
कभी घर की खिड़की से
झाँक -झाँक कर ढू़ँढ़ रहा बेचारा..
सूरज
तेज़ प्रखर सूरज
आज किस दुख से दुखी है
जो बादलो के पीछे छुप-छुप
कर आँसू बहा रहा है…
तारे
आज सब के सब तारे न जाने कहाँ खो गए
मानो किसी ने एक एक को
चुन-चुन कर अपनी झोली में भर लिया
और फिर कहीं रख कर भूल गया हो …
बादल
किसी आतंकवादी की तरह
इन काले-काले बादलों ने आज
सारा आकाश घेर लिया है
और फिर भयानक स्वरों में
गरज़ गरज कर मानो
सब को डरा रहे रहे हों….
बारिश
कोमल सी नन्हीं-नन्हीं वर्षा की ये बूँदें
बादलों के चुगुल से छूट कर
कितनी तेजी़ से धरती की ओर
दौड़ती चली आरही हैं
जैसे पुराने साथियों से
मिलने की जल्दी हो..
हवा
जब भी तुम आती हो
मेरे सारे पन्ने बिखेर देती हो
पर आज मैंने पहले ही से सम्भाल लिये हैं
अरे ! ये जानी पहचानी प्यारी सी खुशबू कैसी ?
क्या आज फिर तुम गुलमोहर से मिल कर आई हो ?
धरती
तृप्त सी हरी भरी धरती
सज-धज कर निश्चिंत सी चली जा रही है
शायद आज किसी सीता का इंतजार नहीं है…
****
महेश्वरी कनेरी
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteक्या कहने
घरती
ReplyDeleteतृप्त सी हरी भरी धरती
सज-धज कर निश्चिंत सी चली जा रही है
शायद आज किसी सीता का इंतजार नहीं है…
शायद नहीं दीदी ,अब यकीनन कोई सीता मिलेगी भी नहीं .... !
बहुत सुन्दर ,चाँद ---- सूरज ---- बादल ---- तारें ---- बारिश ---- हवा का वर्णन लाजबाब की हैं ..... !!
बहुत भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteएक से एक बढ़ कर |
आशा
प्रकृति का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने!
ReplyDeleteशब्द नहीं मिल रहे ....
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति,प्रकृति का लाजबाब वर्णन किया इस रचना में,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
अरे ! ये जानी पहचानी प्यारी सी खुशबू कैसी ?
ReplyDeleteक्या आज फिर तुम गुलमोहर से मिल कर आई हो ?
बहुत-बहुत-बहुत सुन्दर... मन बाग-बाग हो गया
वाह वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रकृति के सारे रंग समाहित है
बहुत बेहतरीन रचना...
बहुत सुन्दर:-)
आज धरती सीता की प्रतीक्षा में नहीं है.....बहुत खूब कहा है. सुंदर कविता.
ReplyDeletepoori prakarti ko samet liya apni rachna mein.....
ReplyDeleteसुंदर शाब्दिक अलंकरण लिए पंक्तियाँ ......
ReplyDeleteवाह!!मजा आ गया...गुलमोहर की खुशबू भी महसूस कियाः)
ReplyDeleteकिसी नाट्यशैली में अपनी अपनी बात रखते सभी प्रकृति तत्व..
ReplyDeleteबहुत प्यारी क्षणिकाये....
ReplyDeleteचाँद,सूरज,बादल,बारिश धरती.....सभी खूबसूरत...एक से बढ़ कर एक.
(दी पहली और आखरी क्षणिका में धरती की जगह घरती टाईप हो गया है)
सादर
अनु
थैक्स अनु..
Deleteबहुत बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
चाँद आज धरती पर उतरा, रहा चांदनी खोज ।
ReplyDeleteतारे बंधते इक गठरी में, उठा रहा अनजाना बोझ ।
सूरज से रज कण तक जल कर, आर्तनाद जल-धर से करते
सवाशेर सावन बन जाता, कर देता सूरज को सोझ ।।
बारिश
ReplyDeleteकोमल सी नन्हीं-नन्हीं वर्षा की ये बूँदें
बादलों के चुगुल से छूट कर
कितनी तेजी़ से धरती की ओर
दौड़ती चली आरही हैं
जैसे पुराने साथियों से
मिलने की जल्दी हो.. इसे कहते हैं ख्यालों की बूंदें
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक ... उत्कृष्ट प्रस्तुति आभार
ReplyDelete्वाह वाह वाह बहुत ही खूबसूरत अन्दाज़
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं एक से बाद कर एक .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपने आज प्रकृति से मुलाकात करा दी ....
ReplyDeleteआभार!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नाज़ुक से एहसासों की खूबसूरत कविता ...
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखनी ...
ReplyDeleteबधाई !
वाह सुंदर चित्र व बहुत सुंदर पंक्तियाँ !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रभाव शाली
ReplyDeleteचाँद भी लग गया अब
ढूँढने अपनी चाँदनी ।