एक साँझ |
सूरज ,अपनी स्वणिम किरणों को समेटे
पश्चिम दिशा की ओर धीरे- धीरे ढलता
उम्मीदों का सूर्ख रंग नभ में बिखेरे
मानो कह रहा हो …
“कल मैं फिर आऊँगा”
चौंच में दाना दबाए,घोंसले की ओर उड़ते पंछी
दूर से आती किसी चरवाह की
बाँसुरी की मधुर धुन
घर वापस आते जानवरों का झुंड
गले की बजती घंटी की टुन- टुन
दुल्हन की तरह सजी साँझ
शर्माती सकुचाती
रात्रि के बाँहो में सिमटने को व्याकुल
प्रियतम के राह में बिछती
दीए की लौ और घनी होती जाती
ढलती संध्या की इस अनुपम छटा को
देखने चाँद और तारे..भी
अपना मोह न छोड़ पाए
और उन्हें निहारते रहे
**************
ढलती संध्या के इस अनुपम सुन्दरता को देखते हुए सोचती हूँ कि क्या जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दर होती है…….?
महेश्वरी कनेरी
मन खुश तो हर सांझ सुकून देती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
जीवन संध्या भी सुन्दर स्वर्णिम क्यूँ न होगी....
ReplyDeleteअच्छाई और सच्चाई व्यर्थ नहीं जाती.....
बहुत प्यारी सी रचना...
सादर
अनु
हर पल एक नया एहसास कराता है बहुत सुन्दर रचना है!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteकल 01/08/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' तुझको चलना होगा ''
ढलती संध्या की इस अनुपम छटा को
ReplyDeleteदेखने चाँद और तारे..भी
अपना मोह न छोड़ पाए
और उन्हें निहारते रहे
अपना मोह छोड़ पाए ,तो जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दर होती है .... :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसान्ध्य वेला का सुंदर वर्णन और काव्याभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
काश सबकी ही साँझ इतनी लालिमामयी हो, नींद में सुख तो तभी मिलेगा।
ReplyDeleteकाश सबकी जीवन संध्या ऐसी ही खुबसूरत हो !
ReplyDeleteसादर !
सूरज ,अपनी स्वणिम किरणों को समेटे
ReplyDeleteपूरव दिशा की ओर धीरे- धीरे ढलता
यदि अन्यथा न लें तो कहूँगा कि थोड़ी सी त्रुटी रह गयी महेश्वरी दी, सूरज तो पश्चिम में ढलता है, हां उसकी लालिमा पूरब में अधिक दिखाई आकर्षक दिखाई देती है। शायद आपका आशय भी यही होगा।
जीवन सन्ध्या की चिंता अवश्य सताने लगी है....... सुन्दर कविता। आभार !!
खूबसूरत सोच जीवन की संध्या भी खूबसूरत बना देती है ... सुंदर रचना
ReplyDeleteजी हाँ जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दरहोगी... बहुत सुन्दर भाव... आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..... जीवन में यकीनन कई सारे रंग हैं... कौन क्या कह सकता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |रंगों से भरी |
ReplyDeleteआशा
काश जीवन संध्या इतनी ही खूबसूरत हो ....
ReplyDeleteहाँ माहेश्वरी कनेरी जी जीवन की सांझ भी इतनी ही सुन्दर होती है बा -शर्ते संतोष का धन आदमी के पास हो जीवन हाय माया में न कटा हो ,लो प्रोफाइल जिया हो .
ReplyDeleteसांझ का शब्द चित्र किसी चित्रकार की कूंची और कमेंटेटर की वाक् -विदग्धता को मात दे गया .
कृपया सकुचाती कर लें-
घर वापस आते जानवरों का झुंड
गले की बजती घंटी की टुन- टुन
दुल्हन की तरह सजी साँझ
शर्माती "सुचुकाती"
बहुत खूब !
ReplyDeleteजीवन की ढलती संध्या
जरूर सुंदर होती होगी
बस लौट के कल नहीं
आउंगा ही तो कहती होगी !
नहीं सुशील जी, जीवनकी अंतिम संध्या भी यही कहती है कि लौट के फिर आना है..बल्कि न आना न जाना बस रूप बदलना है..
ReplyDeleteढलती संध्या के इस अनुपम सुन्दरता को देखते हुए सोचती हूँ कि क्या जीवन की ढलती संध्या भी इतनी ही सुन्दर होती है…….?
ReplyDelete....हमारी सोच ही जीवन संध्या को मनोरम बना सकती है...संध्या का बहुत सुन्दर और मनोरम चित्रण...
.. मन को छूती हुई
ReplyDeleteप्रकृति ही प्रेरणा देती है...
ReplyDeleteजब ढलती संध्या इतनी मनोरम है तो जीवन संध्या क्यों न होगी...
खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteआदरणीया,
ReplyDeleteपूरव दिशा की ओर धीरे- धीरे ढलता
इस पंक्ति पर पुन: गौर करने का कष्ट करें.
साँध्य का मनोरम चित्रण. जीवन की साँझ भी निश्चय ही ऐसी ही मनोरम होती होगी.
साँध्य का मनोरम खूबशूरत चित्रण. बधाई
ReplyDeleteरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
.
ReplyDeleteआदरणीया महेश्वरी कनेरी जी ,
सादर प्रणाम !
कभी भोर , कभी सांझ के रंगों में रंगी आपकी काव्य रचनाएं पढ़ कर मन को शांति मिलती है …
जिसने जीवन को सुंदरता के साथ जिया है … उसके लिए हर घड़ी-वेला, हर क्षण सुंदर ही है … चाहे जीवन के अंतिम क्षण भी क्यों न हों …
हमें हर क्षण को अंतिम क्षण मानते हुए आनंद-उत्साह के साथ प्रत्येक पल को जीना चाहिए … स्वतः ही जीवन-संध्या भी सुहावनी सुखदायिनी ही होगी …
आभार आप सभी मित्र जनो का ..
Deleteआगत जीवन संध्या के बारे में बहुत अंदाजा नहीं पर काश सबकी संध्या इतनी ही खूबसूरत होती जैसी अपने कल्पना की है
ReplyDeleteमहेश्वरी जी आपने याद दिला दी ......................... है बिखेर देती वसुंधरा ..........गुप्त जी की कविता ..........
ReplyDeleteदिल को सुकून देती है यह प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई.
सुन्दर भावविभोर करती हुई प्रस्तुति.
ReplyDeleteजीवन की संध्या की सुखद अनुभूति
सकारात्मक चिंतन का ही परिणाम होती
है.
आभार.
आपने जीवन की सांझ को इस खूबसूरती से शब्दों में कैद किया है ...
ReplyDeleteसकारात्मक पक्ष हो तो सब सुन्दर हो जाता है ...
जीवन की ढलती संध्या विश्वास दिलाती है कि फिर से सुबह होगी. सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteशाश्वत सा..जीवन की सांझ..
ReplyDeleteरश्मि दी की बात से सहमत हूँ सब मन का खेल है मन खुश तो हर दिन सुहाना और शाम मस्तानी वरना सब बेगाना।
ReplyDelete