एक आग सी जलती थी मुझ में
आज राख का एक ढ़ेर हूँ मैं
मत छेड़ना इसे तुम
वरना सब कुछ बिखर जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
अलमस्त सा उड़ता था गगन में
आज पंखहीन सा लाचार हूँ मैं
मत पूछना कुछ मुझे तुम
वरना दर्द फिर जाग जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
एक खुशनुमा इमारत था कभी मैं
आज खंडहर बन गया हूँ मैं
मत छूना इसे कभी तुम
वरना गिरकर ढह जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
वक्त का कफ़न ओढ़े
मौत से लड़ रहा हूँ मै
रोकना मत मुझे तुम
वरना मौत फिर जीत जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
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महेश्वरी कनेरी
वक्त की हर शै गुलाम...!
ReplyDeleteअच्छी रचना लिखी है आपने!
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति...
दी खंडर लिखा गया है खंडहर की जगह...
सादर
अनु
सुंदर अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteवक्त बीतने के साथ सब कुछ बदल जाता है और इंसान कुछ नहीं कर पाता
बहुत बढिया
ReplyDeleteहकीकत को बयां करती रचना
कभी कभी वक्त अपने साथ
ReplyDeleteचीजो कि काया पलट हि कर देता है...
गहन भाव व्यक्त करती रचना...
वक्त का कफ़न ओढ़े
ReplyDeleteमौत से लड़ रहा हूँ मै
रोकना मत मुझे तुम
वरना मौत फिर जीत जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
बहुत बढ़िया आंटी!
सादर
वक्त बदल रहा तेजी से,फिर न लौट के आएगा
ReplyDeleteजो भी पैदा हुआ यहाँ,एक दिन वो मिट जाएगा,,,,
सशक्त,प्रभावशाली रचना.....
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई ||
ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे-
Deleteस्वस्थ रहें सानंद रहें -
वक्त वक्त की बात है, बढ़िया था वह दौर |
समय बदलता जा रहा, कुछ बदलेगा और |
कुछ बदलेगा और, आग से राख हुई जो |
पानी धूप बयार, प्यार से तनिक छुई जो |
मिट जायेगा दर्द, सर्द सी सिसकारी में |
ढक जाएगा गर्द, और फिर लाचारी में |
समय के पार शरीर निरुत्तर है, मन का साहस अदम्य है..
ReplyDeleteजीवन के सर्वसत्य का खूबसूरती से बयां किया है आपने अपनी कविता के माध्यम से. आभार !
ReplyDeleteएक खुशनुमा इमारत था कभी मैं
ReplyDeleteआज खंडहर बन गया हूँ मैं
मत छूना इसे कभी तुम
वरना गिरकर ढह जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
sab kushal-mangal hai naa Didi .... ? agar ye kewal kavitaa to ati uttam hai .... :)
वक्त कभी एक सा नहीं रहता
ReplyDeleteबदलाव तो प्रकृति का नियम है .
सुंदर रचना !
सादर !
समय के साथ बदल ही जाता सब कुछ ...गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुंदर भावमय गीत.
ReplyDeleteअन्यथा न लें तो या पंक्ति "वरना मौत फिर जीत जाएगा" क्या यूँ नहीं हो सकती ?
मौत का दिल कभी भी मचल जाएगा"
मौत से लड़ रहा हूँ मै
ReplyDeleteरोकना मत मुझे तुम
वरना मौत फिर जीत जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
बहुत खूब ...
वक्त का कफ़न ओढ़े
ReplyDeleteमौत से लड़ रहा हूँ मै
रोकना मत मुझे तुम
वरना मौत फिर जीत जाएगा
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
....बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण..
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत खूब ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सही विचार!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति .....!!!
ReplyDeleteवेदना और करुणा घोल दीं हैं आपने कविता में .मानसिक अवरोध न आये बस ,फिर जो आये सो आये ..हौसले से जिए हारता हौसला है आदमी कभी हारा है .
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 7 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteये नामुराद वक्त भी
पता नहीं
क्या क्या करवायेगा
वैसे आदमी का वक्त है
आदमी ही की तरह
तो पेश आयेगा !
बहुत ही बेहतरीन!
ReplyDeleteइश्वर से प्रार्थना है कि वक़्त बदल जाए पर आपकी लेखनी ऐसी ही सुन्दर रहे!
sab kuch badal jata hai samay ke sath par man na badle aapke shabd na badle bas yahi kaamne...bahut gahri vedna likhi hai aapne
ReplyDeleteसमय हर चीज़ के रूप-रंग को बदल देता है. इसमें कड़ुवी यादों को मिटा देने की भी शक्ति है. सुंदर कविता.
ReplyDeleteवक्त सदा एक सा नहीं रहता..यही तो सत्य है
ReplyDeleteसुंदर गीत... चिंतनीय भी....
ReplyDeleteसादर।
waah...great creation !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..!!
ReplyDeleteवक्त कब कैसे बदलता है सच मे पता नहीं चलता बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteडॉ. जेन्नी शबनम has left a new comment on my post "पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा":
ReplyDeleteवक्त का बदलना तब पता चलता है जब हठात ज़िंदगी चौंकाती है... सुदर प्रवाहमय अभिव्यक्ति, बधाई.
सुंदर अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteवक्त ऐसे बदल जाएगा...किसको पता होता है..चेताने के लिए आभार..
ReplyDeleteसमय के साथ सब बदल जाता है गहन भाव अभिव्यक्ति
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