प्रस्तुत पंक्तियाँ उन स्त्रियों को समर्पित है जिनके पति उन्हें अकेला छोड़ इस दुनिया से कहीं दूर चले जाते हैं… और दे जाते है एक दर्द और अकेलापन । अपनी रोती बिलखती सहचरी का ये दर्द उससे देखा नहीं जाता और जाते जाते अपने मूक होठॊं से ये संदेशा देता जाता हैं…….और .यही संदेशा उसकी प्रियसी की ताकत और हिम्मत बन जाती है..जीने के लिए और क्या चाहिए….?
मैं फिर आऊँगा…
मत होना उदास प्रिये तुम
मैं फिर आऊँगा…
कभी भोर की किरणें बन
कभी साँझ की लाली बन
आँगन में तेरे बस जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा…..
जो पल हमने साथ गुजारे
याद कर उनको मत रोना
कभी सावन का मेघ बन
कभी जलधार बन
आँगन में तेरे बरस जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा……
ठंडी हवा का झोंका
जब तुम को छू कर निकले
उसे मेरा अहसास समझना
कभी ओस की बूँद बन
कभी फूलों की खुशबू बन
आँगन में तेरे खिल जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा…
वक्त के रुपहले सायों को देख
तुम मत घबराना
कभी सबल शक्ति बन
कभी आस विश्वास बन
मैं तुम्हारे ही साथ रहूँगा
मैं फिर आऊँगा….
अकेली समझना न खुद को कभी
हर मोड़ पर मुझको पाओगी
कभी वृक्षो की छाह बन
कभी तुम्हारा साया बन
जीवन पथ पर साथ चलूँगा
मैं फिर आऊँगा….
मत होना उदास प्रिये तुम
मैं फिर आऊँगा
मैं फिर आऊँगा
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महेश्वरी कनेरी
बहुत बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
बहु्त बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteफिर आने की आस...प्रियतम को फिर पाने की आस, काफी है साँसों के चलते रहने के लिए.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना दी.
सादर
अनु
MANN KO CHHU GAI PANKTIYA..BAHUT MARMIK
ReplyDeleteसंदेशे की शक्ति से, राह कंटीली पार |
ReplyDeleteचरैवेति का मन्त्र है, स्वामी पर ऐतबार |
स्वामी पर ऐतबार, याद जब भी करती हूँ |
आस-पास एहसास, आह सांसे भरती हूँ |
पति मज़बूरी समझ, स्वयं को समझा लेती |
बायाँ हाथ उठाय, दाहिने को दे देती ||
कविता का मर्म बेहद खूबसूरत हैं
ReplyDeleteपर मैं आप से सहमत नहीं हूँ ..जाने वाले कभी नहीं आते ...आँसू सूख जाते हैं
उम्मीद टूट जाती हैं और अकेलापन कभी नहीं खत्म होता ....
जिसे जाना होता है वो चला ही जाता है
ReplyDeleteपर उसकी खुबसूरत यादे हमेशा जिवंत रहती है..
कभी होंठो की हसी तो कभी आँखों का पानी बनकर..
मर्म अहसास है आपकी इस रचना में..
एकदम दिल तक पहुंचती...
शानदार...
:-)
मार्मिक!
ReplyDeleteप्रकृति के हर उपादानों में उस साथी की उपस्थिति का अहसास कराती रचना दिल को छू गई।
मन को छू गयी आपकी रचना............
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति.... जीवन की आस और विश्वास को बढाती सी.....
ReplyDeleteकितनी प्यारी सांत्वना देती रचना है .... बहुत मन भायी ...
ReplyDeleteमन को अनंत तक सहारा देती पंक्तियाँ और आश्रय की संवेदनाओं को जगाती रचना. वाह.
ReplyDeleteअकेली समझना न खुद को कभी
ReplyDeleteहर मोड़ पर मुझको पाओगी
दुनिया से कहीं दूर जाने वाले लौट कर नहीं आते .... !!
लेकिन जिन्दगी जीने के लिए उम्मीद का बहाना उत्तम है .... !!
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteखुबसूरत एहसास लिए आस और विश्वास की डोर बढ़ाते अनोखी रचना जहाँ जीवन जागृत है बहुत खुबसूरत
ReplyDeleteजीवंत सुन्दर सृजन किया है आपने |बहुत भावपूर्ण |
ReplyDeleteआशा
यही विश्वास ताकत और उर्जा है स्त्री के लिए
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी...रचना के भाव अंतस को छू गये..उत्कृष्ट प्रस्तुति..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत पंक्तियां
ReplyDeleteकैसे नहीं आयेगा
ReplyDeleteआँखिर कहाँ जायेगा?
बहुत सुंदर !
मार्मिक प्रस्तुति........
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteकाश कि जाने वाले लौट कर आ सकते . पूर्णतया आत्मनिर्भर महिलाएं कम से कम शरीर की सही दशा में तो जीवन यापन कर लेती हैं , वरना तो दुर्दशा होनी ही है !
ReplyDeleteकविता आस जगाती है !
बहुत ही कोमल भाव, मन छू गयी..
ReplyDeletevery touching.
ReplyDeleteमार्मिक ... कोमल एहसास ... प्रेम जो कभी भूलता नहीं है ... बस यादें रह जाती हैं ...
ReplyDeleteAasha se bhari rachnaa.
ReplyDelete............
कितनी बदल रही है हिन्दी!
यही आशा आगे जीने का संबल दे देती है...बहुत सुंदर लगी कविता !!
ReplyDeleteयादों के अतीत के साए आज का वर्तमान का उजाला बनें और क्या चाहिए जीवन में एक पथ -प्रदर्शक संतोष ही तो चाहिए .बहुत उत्कृष्ट रचना भाव जगत को रागात्मक आधार देती रचना .अगला आलेख TMJ SYNDROME AND CHIROPRACTIC.
ReplyDeleteसाथ होने का एहसास बना रहे, बस इतना काफी होता है ...
ReplyDeleteसुंदर भावमयी अभिव्यक्ति !
बहुत सुंदर बात कही है आपने..बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत ही मामार्मिक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
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