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Saturday, 11 August 2012

मैं फिर आऊँगा…



प्रस्तुत पंक्तियाँ उन स्त्रियों को समर्पित है जिनके पति उन्हें अकेला छोड़ इस दुनिया से कहीं दूर चले जाते हैं… और दे जाते है  एक दर्द और अकेलापन । अपनी रोती बिलखती सहचरी का ये दर्द उससे देखा नहीं जाता और जाते जाते अपने मूक होठॊं से ये संदेशा देता जाता हैं…….और .यही संदेशा उसकी प्रियसी  की ताकत और हिम्मत बन जाती है..जीने के लिए और क्या चाहिए….?
मैं फिर आऊँगा…
मत होना उदास प्रिये तुम
मैं फिर आऊँगा…
कभी भोर की किरणें बन
कभी साँझ की लाली बन
आँगन में तेरे बस जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा…..
जो पल हमने साथ गुजारे
याद कर उनको मत रोना
कभी सावन का मेघ बन
कभी जलधार बन
 आँगन में तेरे बरस जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा……
ठंडी हवा का झोंका
जब तुम को छू कर निकले
उसे मेरा अहसास समझना
कभी ओस की बूँद बन
कभी फूलों की खुशबू बन
 आँगन में तेरे खिल जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा…
वक्त के रुपहले सायों को देख
तुम मत घबराना
कभी सबल शक्ति बन
कभी आस विश्वास बन
मैं तुम्हारे ही साथ रहूँगा
मैं फिर आऊँगा….
अकेली समझना न खुद को कभी
हर मोड़ पर मुझको पाओगी
कभी वृक्षो की छाह बन
कभी तुम्हारा साया बन
जीवन पथ पर साथ चलूँगा
मैं फिर आऊँगा….
मत होना उदास प्रिये तुम
मैं फिर आऊँगा
मैं फिर आऊँगा
**************
महेश्वरी कनेरी

32 comments:

  1. बहुत बढ़िया आंटी


    सादर

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  2. बहु्त बढिया प्रस्तुति

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  3. फिर आने की आस...प्रियतम को फिर पाने की आस, काफी है साँसों के चलते रहने के लिए.
    बहुत सुन्दर रचना दी.
    सादर
    अनु

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  4. संदेशे की शक्ति से, राह कंटीली पार |
    चरैवेति का मन्त्र है, स्वामी पर ऐतबार |
    स्वामी पर ऐतबार, याद जब भी करती हूँ |
    आस-पास एहसास, आह सांसे भरती हूँ |
    पति मज़बूरी समझ, स्वयं को समझा लेती |
    बायाँ हाथ उठाय, दाहिने को दे देती ||

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  5. कविता का मर्म बेहद खूबसूरत हैं
    पर मैं आप से सहमत नहीं हूँ ..जाने वाले कभी नहीं आते ...आँसू सूख जाते हैं
    उम्मीद टूट जाती हैं और अकेलापन कभी नहीं खत्म होता ....

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  6. जिसे जाना होता है वो चला ही जाता है
    पर उसकी खुबसूरत यादे हमेशा जिवंत रहती है..
    कभी होंठो की हसी तो कभी आँखों का पानी बनकर..
    मर्म अहसास है आपकी इस रचना में..
    एकदम दिल तक पहुंचती...
    शानदार...
    :-)

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  7. मार्मिक!
    प्रकृति के हर उपादानों में उस साथी की उपस्थिति का अहसास कराती रचना दिल को छू गई।

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  8. मन को छू गयी आपकी रचना............

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  9. गहरी अभिव्यक्ति.... जीवन की आस और विश्वास को बढाती सी.....

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  10. कितनी प्यारी सांत्वना देती रचना है .... बहुत मन भायी ...

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  11. मन को अनंत तक सहारा देती पंक्तियाँ और आश्रय की संवेदनाओं को जगाती रचना. वाह.

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  12. अकेली समझना न खुद को कभी
    हर मोड़ पर मुझको पाओगी

    दुनिया से कहीं दूर जाने वाले लौट कर नहीं आते .... !!
    लेकिन जिन्दगी जीने के लिए उम्मीद का बहाना उत्तम है .... !!

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  13. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  14. खुबसूरत एहसास लिए आस और विश्वास की डोर बढ़ाते अनोखी रचना जहाँ जीवन जागृत है बहुत खुबसूरत

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  15. जीवंत सुन्दर सृजन किया है आपने |बहुत भावपूर्ण |
    आशा

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  16. यही विश्वास ताकत और उर्जा है स्त्री के लिए

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  17. बहुत मर्मस्पर्शी...रचना के भाव अंतस को छू गये..उत्कृष्ट प्रस्तुति..

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  18. बेहद खूबसूरत पंक्तियां

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  19. कैसे नहीं आयेगा
    आँखिर कहाँ जायेगा?

    बहुत सुंदर !

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  20. मार्मिक प्रस्तुति........

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  21. बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

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  22. काश कि जाने वाले लौट कर आ सकते . पूर्णतया आत्मनिर्भर महिलाएं कम से कम शरीर की सही दशा में तो जीवन यापन कर लेती हैं , वरना तो दुर्दशा होनी ही है !
    कविता आस जगाती है !

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  23. बहुत ही कोमल भाव, मन छू गयी..

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  24. मार्मिक ... कोमल एहसास ... प्रेम जो कभी भूलता नहीं है ... बस यादें रह जाती हैं ...

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  25. यही आशा आगे जीने का संबल दे देती है...बहुत सुंदर लगी कविता !!

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  26. यादों के अतीत के साए आज का वर्तमान का उजाला बनें और क्या चाहिए जीवन में एक पथ -प्रदर्शक संतोष ही तो चाहिए .बहुत उत्कृष्ट रचना भाव जगत को रागात्मक आधार देती रचना .अगला आलेख TMJ SYNDROME AND CHIROPRACTIC.

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  27. साथ होने का एहसास बना रहे, बस इतना काफी होता है ...
    सुंदर भावमयी अभिव्यक्ति !

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  28. बहुत सुंदर बात कही है आपने..बहुत सुंदर !

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  29. बहुत ही मामार्मिक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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