हमारे बुजुर्ग.. |
हर बढ़ते कदम
उम्र की उस चौखट तक
पहुँचा देते हैं
जहाँ से लौट नही सकते
बस रह जाती हैं यादें,
और अनुभवों की एक भारी सी गठरी
बहुत कुछ कहने का मन करता है
पर सुनने वाला कोई नहीं
नितांत अकेला खालीपन लिये
सफर बोझिल सा लगता है
पर जीने की चाह नहीं मिटती
निढ़ाल शरीर, लड़खड़ाते कदम
आँखों में अपनों की चाहत लिए
आशीष लुटाते,
हमारे बुजुर्ग..
जिन्हें बेकार और बोझ समझ
किसी कोने में रख,भुला दिया जाता है
क्या सच हैं..?
बुढ़ापा ! एक बोझ है..
परिवार के लिए..
एक अवरोधक
इस प्रगतिशील समाज के लिए ..
सोचो !..सोचो जरा..
मनन करो
कुछ विचारो
क्यों कि..
कल हमें भी
उसी चौखट से गुजरना है
***********
महेश्वरी कनेरी..
जो विचार करेगा वो उन्हें संबल मानेगा.....आशीष मानेगा...अपने सर पर रखी छत मानेगा......मगर वक्त कहाँ है किसी के पास विचारने का...सोचने का....बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी रचना है दी...
ReplyDeleteसादर
अनु
सुंदर प्रस्तुति, आंखे खोलो भाई..
ReplyDeleteक्या सच हैं..?
बुढ़ापा ! एक बोझ है..
परिवार के लिए..
एक अवरोधक
इस प्रगतिशील समाज के लिए ..
बुजुर्गो को बोझ न समझो,तुम पर भी बुढापा आएगा
ReplyDeleteजैसा करोगे मात पिता संग ,वैसा ही फल तू पायेगा,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
कल हमें भी
ReplyDeleteउसी चौखट से गुजरना है
कभी-कभी बहुत डर लगता है .... :(
सोचो !..सोचो जरा..
ReplyDeleteमनन करो
कुछ विचारो
क्यों कि..
कल हमें भी
उसी चौखट से गुजरना है
bas isi bat ko to koi sochna nahi chahta
वृद्धावस्था अनुभव का अंबार है..
ReplyDeleteसमय के साथ अब बूढ़ों ने भी जीने के तरीके इजाद कर लिए हैं. आने वाले समय में और भी बहुत कुछ आएगा लेकिन घर तो घर होता है. बूढ़ों को घर का बेहतर वातावरण चाहिए.
ReplyDeleteबुजुर्गों के प्रति आदर प्रकट करती एक उम्दा कविता |
ReplyDeleteजिस घर में बुज़ुर्गों का आदर होता है वह घर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है...यह बात सबकी समझ में नहीं आती|
ReplyDeleteबुज़ुर्गों से सम्मान के लिए बहुत अच्छी रचना लगाई है आपने !!
ReplyDeleteकल हमें भी
उसी चौखट से गुजरना है... यह समझ रहे तो क्या बात है !
बहुत बहुत धन्यवाद राजेश कुमारी जी..
ReplyDeleteसभी जानते है कि कल उन्हें भी इसी चौखट से गुजरना है फिर भी बहुत कम घरों में बुजुर्गों का सम्मान होता है | मैं बचपन की एक घटना आज भी याद करती हूँ जब मेरे दोस्त की माँ अपने ससुर को खाना फ़ेंक कर दी थी | इत्तेफाक से मेरे पापा उसी घर में मेरी शादी की बात चलाये थे और जब उनसे ये बात मैं बताई तो उन्होंने यही कहा कि ऐसे घर में मेरी बेटी नहीं जाएगी |
ReplyDeleteसब का अपना पाथेय पंथ एकाकी है ,
ReplyDeleteअब होश हुआ ,जब इने गिने दिन बाकी हैं .
एक सक्रीय होबी आपको ज़िंदा रखती है ताउम्र ,अलबत्ता आप आर्थिक रूप से पर तंत्र न हों ,ये ज़रूरी है .आये हो तो कुछ देकर जाओ ,पर -मुख -अपेक्षी क्यों ?
touching ....bahvpurn..
ReplyDeleteउनके अनुभव हमारी थांती हैं...... सच में मनन तो करना ही होगा
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteबुढा़पा कहाँ बोझ होता है
जिसके लिये होता है
उसे कहाँ पता होता है
वो बिना छत के एक
मकान के नीचे रहता है !
'कल हमें भी उस चौखट से गुजरना है' ----ये सब जानते है फिर भी लोग अपने को धोखा दिया करते है और सच को झुठलाने कोशिश करते हैं । बहुत बढियाँ मैम । "साथी" ब्लॉग पर आपका स्वागत है , हमें भी ज्वाइन करें ।
ReplyDeleteकल हमें भी उस चौखट से गुजरना है ....यही खयाल तो नहीं आता .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबुज़ुर्गों के सम्मान के लिए बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteसब सोच का ही तो खेल है कल हमें भी उसी चौखट से ही गुजरना है बस यही ख्याल तो नहीं आता सार्थक रचना....
ReplyDeleteक्यों कि..
ReplyDeleteकल हमें भी
उसी चौखट से गुजरना है
बेहद सशक्त भाव लिए ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
नहीं सुधरे तो कल वो भी वहीँ होंगे जहाँ ये आज हैं... सार्थक रचना...
ReplyDeleteहर जवान कल वृद्ध होगा लेकिन हम इस बात को भुलाये रहते हैं..बुजुर्गों का सम्मान हमने करना चाहिए क्योंकि हम उन्हीं से हैं..
ReplyDeleteआजकल बुजुर्गों को उचित सम्मान और प्यार नहीं मिल पा रहा है। शायद लोग भौतिकवादी ज्यादा हो रहे हैं।
ReplyDeleteआज के बुजुर्गों की अवस्था का बहुत सटीक चित्रण...आज के युवा ये क्यों भूल जाते हैं कि एक दिन वे भी इस स्थिति को पहुंचेंगे..
ReplyDeleteअगर हमें याद रहे कि हम युवा रहने की अमर बूटी नहीं पी कर आये हैं ... तो शायद हम हमारे बुजुर्गों को सच में वह स्नेह और श्रद्धा दे पाएंगे जिस की उन्हें इस उम्र में सबसे अधिक आवश्यकता होती है . हृदयस्पर्शी रचना महेश्वरी जी .
ReplyDeleteसादर .
आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDeleteहां, हम सबको उसी पड़ाव से गुजरना है।
ReplyDeleteवयोवृद्धता तो वह कंचनवय है जो जीवन की भट्ठी से तपकर निखरा हुआ होता है।
बहुत ही भाव-प्रवण कविता। मेरे ब्लॉग " प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteसंझवाती बेला की छटा निराली..अति सुन्दर..
ReplyDeleteसभी को सजग करती कविता.
ReplyDeleteहमारे बुजुर्ग हमारा मान होते हैं लेकिन वही उपेक्षित हैं..
इसी चोखट से सभी को गुजरना है यह बात समझ आये तो समस्या ही न रहे.
बेहद खूबसूरत भाव-अभिव्यक्ति.
atisunder,shobhneeya kritya
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