वक्त की हेरा फेरी
कहने के लिए तो सफर में बहुत मिले
कुछ अपने ,कुछ पराए
न शिकवे थे न शिकायत
फिर भी..
जब होश आया
तब देखा..
कब अपने पराए हुए
और पराए कब अपने
वक्त की ये कैसी हेरा फेरी है
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तन्हाई
जब भी मन को टटोला
एक सूना पन बाहर आया
और ये कह कर मुस्काया
जिन्दगी पहुँच चुकी है
उस मुकाम पर जहाँ तन्हाई
तन्हाई सिर्फ तन्हाई
**************
क्यों
हँसते-हँसते क्यों आँसू निकल आते है..?
और चलते-चलते क्यों साए भी छॊड़ जाते है ?
**********
जिन्दगी की चाक
जिन्दगी की चाक पर
हम तो सब को अपना बनाते चले थे
लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
सब फटने फूटने और बिखरने लगे..
***************
महेश्वरी कनेरी
ओह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
जब भी मन को टटोला
एक सूना पन बाहर आया
और ये कह कर मुस्काया
जिन्दगी पहुँच चुकी है
उस मुकाम पर जहाँ तन्हाई
तन्हाई सिर्फ तन्हाई
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ReplyDeleteतन्हाई की भी अपनी एक आवाज़ होती हैं ...
ReplyDeleteवक्त अपने रंग में रंग लेता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ....
ReplyDeleteअचानक से उभरती विचारों को जोरदार झटका देती हुई..सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आंटी !
ReplyDeleteसादर
ये तो वक्त का मिजाज़ है ,मुझे इससे कोई गिला नहीं ,.....सुन्दर भाव कणिकाएं हैं ,विचारिकाएं हैं ..... .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteसोमवार, 27 अगस्त 2012
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/
sabhi rachnayen behtarin hai ..........
ReplyDeleteलेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
ReplyDeleteसब फटने फूटने और बिखरने लगे..
अब ऐसा नहीं होगा दीदी ♥
sunder bhav ki rachnayein...........
ReplyDeleteवक्त कि हेरा फेरी है .... भावों को क्षणिकाओं में बखूबी बांधा है
ReplyDeletekya baat...khub
ReplyDeleteवक्त ही है जो भटकाता है
ReplyDeleteफिर आदमी कहाँ हिसाब लगाता है
कुछ इधर दे के जाता है
कुछ उधर से ले के आता है
कुछ भी हो जाये लेकिन
बैलेंस ज़ीरो ही आता है !
समय बड़ा बलवान है -कुछ भी नहीं बचा है इससे ,
ReplyDeleteजीवन की भंगुरता की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने !
शब्दों को बहुत अच्छे से पिरोया है बिलकुल अक्षर अक्षर मोती समान
ReplyDeleteव्यवहार की भट्टी कहें या शालीनता .... वहीँ असलियत मिलती है
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर मुझे अपनी ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया.हाज़िर है:-
ReplyDeleteये वक़्त है बेइंतिहा ताक़त है इसके पास,
लड़ना पड़ेगा फिर भी इसी पहलवान से.
वक़्त जख्म देता है तो मरहम भी लगाता है, सारे घाव भर देता है ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति महेश्वरी जी
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना......
ReplyDeleteकब अपने पराए हुए
ReplyDeleteऔर पराए कब अपने
वक्त की ये कैसी हेरा फेरी है.....samajhna bada kathin hai.
सुंदर भाव लिए सभी क्षणिकाए पसंद आई,,,,,बधाई,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST ...: जख्म,,,
जैसा शीर्षक बिलकुल वैसी ही पोस्ट सब वक्त की ही हेरा फेरी है सुंदर भाव से परी पूर्ण सभी क्षणिकाए बहुत अच्छी लिखी हैं आपने आभार ....
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ReplyDeleteक्यों
हँसते-हँसते क्यों आँसू निकल आते है..?
और चलते-चलते क्यों साए भी छॊड़ जाते है ?
बहुत सही कहा है आपने ...आभार
मर्म को छूती हुई क्षणिकायें.वाह !!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक क्षणिकाएं हैं ! प्रतीत हो रहा है मानो जिंदगी का समस्त अनुभव शब्दों में ढल गया हो.
ReplyDeletesab ke dilo se guzarti sabke anubhavo ki bhatti par paki kshanikaayen kamaal k shabdon me dhali hain.
ReplyDeletebadhayi.
जानिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा पर विस्तृत कमेंट देने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteNice post.
बढिया क्षणिकाएं .
ReplyDeleteसमय के साथ बदलता बहुत कुछ ...सवेंदनशील भाव
ReplyDeleteजिन्दगी की चाक पर
ReplyDeleteहम तो सब को अपना बनाते चले थे
लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
सब फटने फूटने और बिखरने लगे.....बहुत खूबसूरत..बहुत सुंदर रचना..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteजिंदगी के पहलुओ को
बहुत खूब व्यक्त किया है...
शानदार...
:-)
उस मुकाम पर जहाँ तन्हाई
ReplyDeleteतन्हाई सिर्फ तन्हाई
sahi hai
लेकिन व्यवहार की भट्टी पर आते ही
सब फटने फूटने और बिखरने लगे..
aesa hi hota hai sunder abhivyakti
rachana
वक्त-वक्त की बात है, वक्त है तो सब साथ हैं, वक्त नहीं तो खाली हाथ हैं
ReplyDeleteबहुत सवेंदनशील रचना......
ReplyDeletesabhi sacchi-sacchi baten....anubhavon ka khajana...
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