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Monday, 29 July 2013

बहुत याद आते हैं…


मिट्टी से लिपा चुल्हा

चुल्हे में सुलगती लकड़ियाँ

उसकी आँच में सिकी हुई

माँ के हाथों की

 गरम रोटियाँ

बहुत याद आते हैं..वो दिन

हाँड़ी में पकती हुई दाल

सिलबट्टे में पीसे ताजे

मसालों की खुशबू

बेसब्री से करते

खाने का इंतजार

बहुत याद आते हैं.. वो दिन

गर्मियों में

खुले आसमान के नीचे

छत पर सोना

किस्से कहानियों का दौर

चाँद तारों को देखते देखते

मीठे सपनों में खोजाना

बहुत याद आते हैं.. वो दिन

बेफिक्र, मन मौजी से

अपनी ही दुनिया में रहना

कभी जिद्द कभी मनमानी करना

देर रात तक

छुप-छुप नावेल पढ़ना

बहुत याद आते हैं.. वो दिन

**************


महेश्वरी कनेरी

35 comments:

  1. wakai bahut yaad aate hain ..sacchi mein yaad a gayi padhte padhte isko sundar yaade

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  2. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

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  3. सही में कितने सुहाने होते थे वो दिन
    बहुत कुछ स्मरण हो आया
    सादर!

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  4. एक एक शब्द उन दिनों की याद दिलाती
    गहन भाव लिए बहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .......!!

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  5. वो भी क्या दिन थे? आपकी रचना पढकर वो मिट्टी के चूल्हे की सौधी महक आने लग गई.

    रामराम.
    दो और दो पांच का खेल, ताऊ, रामप्यारी और सतीश सक्सेना के बीच

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  6. आभार ..आप का शास्त्री जी

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  7. बस यादें रह जाती है...

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  8. आपने बचपन याद दिला दिया , बहुत शुभकामनाये

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  9. यह यादें ही जीवन हैं ...
    सुंदर रचना , बधाई आपको ! !

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  10. सच में हमको भी बहुत याद आते हैं आते हैं वो दिन …
    अब तो माँ भी नहीं बनाती लेकिन चूल्हे पर रोटियां :)

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  11. सचमुच अनमोल हैं वो दिन

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  12. बहुत सुंदर पोस्ट
    सच में बहुत याद आते हैं .... वो दिन
    आभार आप का
    सादर

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर पोस्ट
    सच में बहुत याद आते हैं .... वो दिन
    आभार आप का
    सादर

    ReplyDelete
  14. वो दिन जितने अच्छे थे..क्यों न इन दिनों को उनसे बेहतर बना लें...कुछ वर्षों बाद फिर इनके भी गीत बना लें

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  15. बीत गए वो दिन बीत गए
    केवल यादों में वो रह गए --बहुत सुन्दर भाव युक्त रचना !
    latest post हमारे नेताजी
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

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  16. जीवन के मौलिक सुखों में शामिल रहे हैं, ये सब क्षण। सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  17. आदरणीया, कविता को पढ़कर मन झूम गया.और भी बहुत कुछ याद आ गया...मिट्टी के बर्तन में पका दूध, चूल्हे की आग में भुने हुए आलू, अंगारों पर सिंकी अंगाकर रोटी (नये चाँवल के आटे की मोटी रोटी),चूल्हे की राख से कंडील के काँच को साफ करना,सूखी लकड़ियों और कंडों का स्टोर रूम, बरसात में भीगी लकड़ियों से गुँगवाता धुँआ, धुँए को चीरती हुई फूँकनी.....वाह !!!!! कितने सुनहरे दिन थे....

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  18. बिलकुल आपने सब बचपन की बातें याद करवा दी अब शहर में यह सब कहाँ
    वाकई अरुण निगम जी ने खूब कहा और भी बहुत कुछ याद आ गया

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  19. behad khoobsurat yade jinhe bar bar yad karne ko ji chahe...

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  20. 'सिलबट्टे पर पिसे मसलों की सुगंध' ...बीते दिनों की महक देती है यह कविता..

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  21. याद आना स्वाभाविक भी है।


    सादर

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  22. बहुत ही प्यारी रचना.
    सुन्दर...:-)

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  23. सच कहा बीते पल बहुत याद आते हैं

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  24. बहुत खूब !
    चूल्हा और सिलबट्टा कभी
    मैने भी कहीं देखा था
    याद दिलाया आपने
    तो याद आया !

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  25. बहुत ही सुन्दर…….शहरो में ये सब चीजें जैसे कहीं खो गयी हैं |

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  26. बहुत अच्छी लगी आपकी कविता

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  27. उन दिनों से डोर बंधी रहे .. !

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  28. सच बहुत याद आते हैं वो दिन....
    मगर क्यूँ न ज़रा सी कोशिश की जाय और फिर से जिया जाय उन दिनों को....
    क्या मुश्किल है सिल पर मसाले पीसना या खुली छत पर तारे गिनते सोना :-)

    सादर
    अनु

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  29. waah ..Awesome ! Nostalgia overpowering me.

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  30. वह सहज-सुन्दर जीवन सदा को बीत गया ,प्रकृति के तालमेल में जिये गए दिन अब कहाँ!

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  31. कुछ पुरानी यादों को सुलगा दिया है आपने ... वो लम्हे जाते नहीं जेहन से ...

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  32. कल 18/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  33. took me back to a "past" time, feeling nostalgic and over whelmed.

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